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स्वास्थ्य मंत्री के गृह जिले में विभाग बीमार

कहने को प्रदेश सरकार बेतहर स्वास्थ्य सेवाएं देने की दावे करती है। लेकिन बेहतर सेवाएं देने के प्रदेश सरकार के दावे स्वास्थ्य मंत्री के गृह जिले में ही शुन्य हैं।

By JagranEdited By: Published: Tue, 23 Oct 2018 11:18 AM (IST)Updated: Tue, 23 Oct 2018 11:18 AM (IST)
स्वास्थ्य मंत्री के गृह जिले में विभाग बीमार
स्वास्थ्य मंत्री के गृह जिले में विभाग बीमार

कहने को प्रदेश सरकार बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया करवाने के दावे करती है लेकिन इनकी पोल स्वास्थ्य मंत्री के गृह जिले में ही खुल रही है। स्वास्थ्य विभाग का आलम यह है कि अस्पतालों में 50 फीसद डॉक्टरों के पद रिक्त हैं। हैरानी की बात यह है कि 13 स्वास्थ्य खंडों वाले जिले में दो स्वास्थ्य संस्थान बिना मुखिया के रामभरोसे ही चल रहे हैं। स्वास्थ्य खंड डाडासीबा व नगरोटा सूरियां में बीएमओ ही नहीं है। इन खंडों में अगर किसी को कोई समस्या हो जाए तो उन्हें सीधे जिला स्वास्थ्य अधिकारी व मुख्य चिकित्सा अधिकारी कांगड़ा के पास जाना पड़ता है।

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50 फीसद डॉक्टरों के पद खाली

जिला कांगड़ा के अस्पतालों में बीएमओ, एमओ व अन्य स्टाफ के 1970 पद स्वीकृत हैं लेकिन इनमें से केवल 1114 पद ही भरे गए हैं और शेष 856 रिक्त हैं। खाली चल रहे सैकड़ों पदों से अंदाजा लगाया जा सकता है कि जिले में स्वास्थ्य विभाग की क्या स्थिति है। विभाग की स्थिति यह है कि पीएचसी में एमबीबीएस डॉक्टर तैनात करने की बजाए विशेषज्ञ डॉक्टरों की तैनाती कर उनकी कार्य कुशलता को नजरअंदाज किया जा रहा है। धर्मशाला की पीएचसी चड़ी में तीन माह पूर्व स्वास्थ्य विभाग ने टांडा से दंत रोग विशेषज्ञ डॉ. कुलदीप जरयाल की तैनाती कर दी थी, जबकि नियमों के अनुसार पीएचसी में एमबीबीएस डॉक्टर तैनात किए जाते हैं। ऐसे में टांडा के दंत रोग मरीजों को पीएचसी का चड़ी रुख करना पड़ रहा है। छोटी-छोटी बीमारियों पर मरीजों को सीधे डॉ. राजेंद्र प्रसाद मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल टांडा रेफर कर दिया जाता है। अधिकतर सिविल अस्पतालों में एंटी रैबीज व एंटी स्नेक बेनम इंजेक्शन तक नहीं होते हैं, इसलिए मरीजों को सीधे टांडा रेफर कर दिया जाता है। स्वास्थ्य मंत्री के गृह जिले में ही स्वास्थ्य विभाग का यह हाल है तो अन्य जिलों में क्या होगा।

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क्या कहते हैं लोग

जिले में स्वास्थ्य विभाग की हालत यह हो गई है कि अगर प्रसव का मरीज सिविल अस्पताल या जोनल अस्पताल में पहुंचता है तो बिना जांच किए उसे सीधे टांडा रेफर कर दिया जाता है। ऐसे में इतने पीएचसी और सीएचसी खोलने का क्या औचित्य रह जाता है।

-प्रदीप राणा।

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-सरकारी अस्पतालों में भी डॉक्टर लापरवाही बरत रहे हैं। अब सरकारी अस्पतालों में तैनात डॉक्टरों की विश्वसनीयता पर भी शक होने लगा है। लोग अब सरकारी अस्पतालों की बजाए निजी में जाने को प्राथमिकता देते हैं। सरकार को चाहिए कि स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार लाए।

-पुनीत धीमान।

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एक तो सरकारी अस्पतालों में समय पर डॉक्टर नहीं मिलते हैं और ऊपर से स्टाफ मरीजों और तीमारदारों से सही ढंग से बात नहीं करता है। लोग निजी अस्पतालों में भारी भरकम शुल्क देकर जाना ज्यादा पसंद करते हैं।

नरेंद्र बलौरिया।

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अस्पतालों में डॉक्टरों और अन्य स्टाफ की कमी को दूर करना चाहिए, ताकि लोगों को नियमित स्वास्थ्य सेवाएं मिल सकें। अगर स्टाफ की तैनाती नहीं हो सकती है तो अस्पतालों की संख्या बढ़ाने का औचित्य क्या है।

नरेंद्र जंबाल।

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'अस्पतालों में डॉक्टरों व फील्ड स्टाफ के खाली पदों को भरने के संबंध में सरकार को अवगत करवा दिया है। सरकार से स्वीकृति मिलते ही डॉक्टरों की तैनाती की जाएगी।'

-डॉक्टर आरएस राणा, मुख्य चिकित्सा अधिकारी, कांगड़ा

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आप भी दे सकते हैं सुझाव

अपने-अपने क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति के बारे में सुझाव इन वाट्सएप नंबरों पर दें : 94180-01474, 9418080099, 94183-15830।

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जिले में अस्पतालों की स्थिति

स्वास्थ्य खंड : 13

जोनल अस्पताल : 1

मेडिकल कॉलेज : 1

सिविल अस्पताल : 14

सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र : 19

प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र : 88

प्राइमरी सब सेंटर : 445

आशा वर्कर : 1820

स्वास्थ्य टीमें : 37

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विभिन्न पदों की स्थिति

पद स्वीकृत भरे रिक्त

खंड स्वास्थ्य अधिकारी 13 11 2

मेडिकल ऑफिसर 305 232 73

फार्मासिस्ट 168 100 68

स्टाफ नर्स 293 195 98

मेल हेल्थ वर्कर 445 149 296

पुरुष स्वास्थ्य पर्यवेक्षक 68 48 23

फिमेल हेल्थ वर्कर 458 326 132

महिला स्वास्थ्य पर्यवेक्षक 102 83 19

रेडियोलॉजिस्ट 28 13 15

कुल 1970 1114 856 -प्रस्तुति-मुनीष गारिया, धर्मशाला


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