जल के लिए विकल रहेगा हिमाचल
जल के लिए पहाड़ी प्रदेश हिमाचल विकल रहेगा। पिछले 14 वर्षों में सिचाई एवं जन स्वास्थ्य विभाग में पेयजल और सिचाई की स्कीमों की संख्या तो बढ़ी लेकिन स्टाफ में कोई इजाफा नहीं हो पाया। बड़ा सवाल यह है कि बिना स्टाफ के आखिर हर घर को नल से जोड़ने का जल जीवन मिशन कैसे सफल होगा? आज हालत 2005 से भी भी कहीं अधिक अधिक खराब है। करीब 70 लाख की आबादी के हितों से जुड़ा यह मामला विधानसभा में प्रश्नकाल के दौरान उठा। विधानसभा सदस्यों ने सामूहिक चिता तो जताई लेकिन समस्या का कोई ठोस समाधान होता दिखाई नहीं दिया।
राज्य ब्यूरो, धर्मशाला : जल के लिए पहाड़ी प्रदेश हिमाचल विकल रहेगा। पिछले 14 वर्षो में सिचाई एवं जनस्वास्थ्य (आइपीएच) विभाग में पेयजल और सिचाई योजनाओं की संख्या तो बढ़ी लेकिन स्टाफ में कोई इजाफा नहीं हो पाया है। अहम सवाल यह है कि बिना स्टाफ के आखिर हर घर को नल से जोड़ने का जलजीवन मिशन कैसे सफल होगा? आज हालत वर्ष 2005 से भी अधिक खराब है। करीब 70 लाख की आबादी के हितों से जुड़ा यह मामला विधानसभा में प्रश्नकाल के दौरान उठा।
विधानसभा सदस्यों ने इस मामले में सामूहिक चिता तो जताई लेकिन समस्या का ठोस समाधान होता दिखाई नहीं दिया। आइपीएच मंत्री महेंद्र ठाकुर ने इस मुद्दे को मुख्यमंत्री के समक्ष रखने और कोई न कोई समाधान जरूर तलाशने का आश्वासन दिया। माकपा विधायक राकेश सिघा व कांग्रेस विधायक रामलाल ठाकुर के सवाल के जवाब में महेंद्र ठाकुर ने कहा कि वर्ष 2005 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने विभागों में दो तरह के काडर घोषित किए। एक लाइव और दूसरा डाइंग काडर। इससे सबसे ज्यादा नुकसान आइपीएच विभाग को हुआ। उस समय विभाग की 8600 स्कीमें थीं। 11779 पदों को लाइव और 17966 पदों को डाइंग काडर घोषित कर दिया। यह वह काडर होता है जिसके तहत कर्मी के सेवानिवृत्त होने के साथ ही पोस्ट खत्म हो जाती है। इसे दोबारा भरना संभव नहीं होता है। अब विभाग में कुल स्कीमों की संख्या 12362 हो गई हैं। इसमें पेयजल और सिचाईं दोनों स्कीमें शामिल हैं। वर्ष 2005 से लेकर मार्च 2019 तक स्कीमों में 3767 की बढ़ोतरी हुई है। स्टाफ की जरूरत अब 48555 कर्मचारियों की है। स्टाफ एक चौथाई से भी कम रह गया है। 512 स्कीमें आउटसोर्स पर
प्रदेश में 512 स्कीमों को आउटसोर्स पर दिया गया है। इनके लिए कैबिनेट ने 2322 पदों की स्वीकृति दी है। 448 स्कीमें आउटसोर्स के अलावा ठेकेदारों के हवाले हैं। ये स्कीमें ठेके पर दी गई हैं। मंत्री ने माना कि ठेकेदार अप्रशिक्षित लोगों का स्टाफ रखते हैं। कई स्कीमों के पंप जल गए हैं। पंप बैठ गए हैं। राकेश सिघा ने कहा कि पानी लोगों का मौलिक अधिकार है लेकिन बिना स्टाफ के यह लोगों को कैसे मिल पाएगा। उन्होंने कहा कि ठियोग में 122 स्कीमें बिना स्टाफ के चल रही हैं। ऐसे में वह धरने पर नहीं बैठेंगे तो क्या करेंगे? बंद हो आउटसोर्स प्रणाली : मुकेश
नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री ने कहा कि सदन की चिता तो सही है लेकिन सरकार को आउटसोर्स प्रणाली बंद करनी चाहिए। यह कर्मियों का शोषण करने वाली है। ठेकेदार पैसे खा रहे हैं। रोहड़ू के विधायक मोहन ब्राक्टा ने आउटसोर्स में भी आरक्षण मांगा। पांवटा के विधायक सुखराम ने भी सवाल पूछा। आउटसोर्स में हैं खामियां : महेंद्र सिंह
मंत्री महेंद्र सिंह ने माना कि आउटसोर्स में खामियां हैं। प्रदेश भाजपा सरकार ने भी इसे महसूस किया है। सरकार विधायकों के सुझाव पर गौर करेगी। उन्होंने उम्मीद जताई कि मुख्यमंत्री इसका कोई न कोई उचित रास्ता निकालेंगे। उन्होंने कहा कि प्रदेश में करीब 1500 करोड़ की लागत से दो प्रोजेक्ट आरंभ हो रहे हैं। मोदी सरकार का जलजीवन मिशन भी शुरू हो गया है।