जानवरों के अनुकूल नहीं रहे हिमाचल के जंगल
वन्य प्राणी विभाग ने सर्दियों के मौसम में जानवरों के अनुकूल जंगल और तेंदुओं की वर्तमान में स्थिति को लेकर सर्वेक्षण किया था।
धर्मशाला, संवाद सहयोगी। हिमाचल के जंगल जानवरों के अनुकूल नहीं हैं। चाहे मांसाहारी जानवर हों या फिर शाकाहारी, उनको जंगलों में पर्याप्त भोजन नहीं मिल रहा है। यही वजह है कि अब तेंदुए भी रिहायशी क्षेत्रों की ओर रुख करने लगे हैं। जंगलों के अनुकूल न होने का बड़ा कारण चीड़ के पेड़ हैं। इसका खुलासा वन्य प्राणी विभाग को वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट से मिली सर्वे रिपोर्ट में हुआ है। वन्य प्राणी विभाग ने सर्दियों के मौसम में जानवरों के अनुकूल जंगल और तेंदुओं की वर्तमान में स्थिति को लेकर सर्वेक्षण किया था। तेंदुओं के मल के सैंपल वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (डब्ल्यूआइआइ) देहरादून को भेजे थे।
हालांकि अभी तक केवल हमीरपुर जिला के सैंपलों की ही तकनीकी रिपोर्ट आई है। इसमें इतना साफ हो गया है कि जंगली जानवरों के अनुकूल जंगल नहीं हैं और शाकाहारी जानवरों की संख्या भी कम हुई है। इसी कारण तेंदुए रिहायशी क्षेत्र का रुख कर रहे हैं। वन्य प्राणी विभाग के वनमंडल हमीरपुर के अधिकारियों से प्राप्त जानकारी अनुसार रिपोर्ट में यह साफ हुआ है कि तेंदुए सांभर, कक्कड़, नीलगाय, सूअर व जंगली मुर्गों को अपना शिकार बनाते हैं। प्रदेश में अधिकांश चीड़ के जंगल हैं। जहां चीड़ के जंगल हैं, वहां पत्तीदार घास नहीं होती है, जबकि सांभर सहित अन्य शाकाहारी जानवरों का आहार पत्तीदार घास है। इस कारण कई जानवरों की प्राकृतिक मौत होने का भी अनुमान है, जिससे इन जानवरों की संख्या कम हुई है। प्रदेश में रिहायशी क्षेत्र बढऩे व सड़कों के बनने से भी जंगल कम हुए हैं।
वन्य प्राणी विभाग ने भेजे हैं 60 सैंपल
वन्य प्राणी विभाग ने सर्वेक्षण के बाद करीब 60 सैंपल डब्ल्यूआइआइ को भेजे हैं। इसकी तकनीकी रिपोर्ट विभाग को प्राप्त हो चुकी है, जबकि तेंदुओं की संख्या के संबंध में रिपोर्ट आनी शेष है। रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश के जंगल जानवरों के अनुकूल नहीं हैं। चीड़ के जंगल होने के कारण पत्तीदार घास न होने से शाकाहारी जानवरों की संख्या कम हुई है। इसी कारण तेंदुए भी अब रिहायशी क्षेत्रों की ओर रुख कर रहे हैं। जंगल जानवरों के अनुकूल हों, इसके लिए विशेष रणनीति भविष्य के लिए बनाने की जरूरत है। इस दिशा में जल्द प्रयास शुरू किए जाएंगे।
-कृष्ण कुमार, डीएफओ वन्य प्राणी विभाग हमीरपुर।