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शिवरात्रि के दिन इस घाट पर स्नान करने का है विशेष महत्व

पौराणिक कथा के अनुसार त्रेता युग में लंका के राजा रावण ने कैलाश पर्वत पर भगवान शिव की तपस्या की।

By BabitaEdited By: Published: Mon, 12 Feb 2018 02:23 PM (IST)Updated: Mon, 12 Feb 2018 05:07 PM (IST)
शिवरात्रि के दिन इस घाट पर स्नान करने का है विशेष महत्व

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v style="text-align: justify;">बैजनाथ, जेएनएन। बैजनाथ शिव मंदिर उत्तर भारत का प्रसिद्ध धाम है। शिवरात्रि को यहां बहने वाली बिनवा खड्ड पर बने खीर गंगा घाट में स्नान का विशेष महत्व है। श्रद्धालु स्नान करने के उपरांत शिवलिंग को  पंचामृत से स्नान करवाकर उस पर बिल्व पत्र, फूल, भांग व धतूरा अर्पित कर आशीर्वाद लेते हैं।
 
पौराणिक कथा के अनुसार त्रेता युग में लंका के राजा रावण ने कैलाश पर्वत पर भगवान शिव की तपस्या की। कोई फल न मिलने पर उसने घोर तपस्या प्रारंभ की तथा अपना एक-एक सिर काटकर हवन कुंड में आहुति देकर शिव को अर्पित करना शुरू किया। दसवां और अंतिम सिर कट जाने से पहले शिव ने प्रसन्न होकर रावण का हाथ पकड़ लिया और उसके सभी सिरों को पुनस्र्थापित कर रावण को वर मांगने को कहा। रावण ने शिवलिंग को लंका ले जाने का आशीर्वाद मांगा। शिव ने तथास्तु कहा और लुप्त हो गए। लुप्त होने से पहले शिव ने अपने शिवलिंग स्वरूप दो चिन्ह रावण को देने से पहले कहा कि इन्हें जमीन पर न रखना। रावण दोनों शिवलिंग लेकर लंका के लिए चला।
 
रास्ते में बैजनाथ में पहुंचने पर रावण को लघु शंका का आभास हुआ। उसने एक ग्वाले को सब बात समझाकर शिवलिंग पकड़ा दिए और शंका निवारण के लिए चला गया। शिव की माया के कारण वह उन शिवलिंगों के भार को अधिक देर तक न उठा सका और उन्हें धरती पर रखकर अपने पशु चराने चला गया। इस तरह दोनों शिवलिंग यहीं स्थापित हो गए। मंदिर में प्रार्थना हर दिन सुबह और शाम में की जाती है। इसके अलावा विशेष अवसरों और उत्सवों में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। बैजनाथ मंदिर परिसर में प्रमुख मंदिर के अलावा और भी छोटे-छोटे मंदिर हैं। इनमें भगवान गणेश, मां दुर्गा, राधाकृष्ण व भैरव बाबा की प्रतिमाएं विराजमान हैं।
 
 काठगढ़ में स्वयंभू शिवलिंग के रूप में विराजमान शिव
 
जिला कांगड़ा के इंदौरा उपमंडल मुख्यालय से छह किलोमीटर की दूरी पर शिव मंदिर काठगढ़ का विशेष महात्म्य है। शिवरात्रि पर इस मंदिर में प्रदेश के अलावा पंजाब एवं हरियाणा से भी श्रद्धालु आते हैं। वर्ष 1986 से पहले यहां केवल शिवरात्रि महोत्सव ही मनाया जाता था। अब शिवरात्रि के साथ रामनवमी, कृष्ण जन्माष्टमी, श्रावण मास महोत्सव, शरद नवरात्रि व अन्य समारोह मनाए जाते हैं। शिव पुराण में वर्णित कथा के अनुसार ब्रह्मा व विष्णु भगवान के मध्य बड़प्पन को लेकर युद्ध हुआ था।
 
भगवान शिव इस युद्ध को देख रहे थे। दोनों के युद्ध को शांत करने के लिए भगवान शिव महाग्नि तुल्य स्तंभ के रूप में प्रकट हुए। इसी महाग्नि तुल्य स्तंभ को काठगढ़ स्थित महादेव का विराजमान शिवलिंग माना जाता है। इसे अद्र्धनारीश्वर शिवलिंग भी कहा जाता है। आदिकाल से स्वयंभू प्रकट सात फुट से अधिक ऊंचा, छह फुट तीन इंच की परिधि में भूरे रंग के रेतीले पाषाण रूप में यह शिवलिंग ब्यास व छौंछ खड्ड के संगम के नजदीक टीले पर विराजमान है। यह शिवलिंग दो भागों में विभाजित है। छोटे भाग को मां पार्वती तथा ऊंचे भाग को भगवान शिव के रूप में माना जाता है। मान्यता के अनुसार मां पार्वती और भगवान शिव के इस अद्र्धनारीश्वर के मध्य का हिस्सा नक्षत्रों के अनुरूप घटता-बढ़ता रहता है और शिवरात्रि पर दोनों का मिलन हो जाता है।  

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