Move to Jagran APP

पौंग बांध के किनारे बचपन की यादों में खो गए बुजुर्ग

1973 में जब रात को बीबीएमबी ने पौंग बांध में पानी स्टोर किया और उनके गांव में पहुंचने पर भगदड़ मच गई और आधी रात को ही घर छोड़कर भागना पड़ा।

By BabitaEdited By: Published: Mon, 25 Jun 2018 10:05 AM (IST)Updated: Mon, 25 Jun 2018 01:46 PM (IST)
पौंग बांध के किनारे बचपन की यादों में खो गए बुजुर्ग
पौंग बांध के किनारे बचपन की यादों में खो गए बुजुर्ग

नगरोटा सूरियां, जेएनएन। पौंग बांध विस्थापितों ने झील के किनारे पहुंचकर बचपन की यादें ताजा कीं।बुजुर्ग विस्थापितों ने तीसरी पीढ़ी के युवाओं को पौंग झील में समाहित हुए गांवों के बारे में जानकारी दी। 

loksabha election banner

इंदौरा में बसे महलू राम ने बताया कि विस्थापित होने के बाद पहली बार जन्मभूमि के दर्शन कर रहे हैं। विस्थापन का दर्द साझा करते हुए उन्होंने बताया कि उनके घर दरौका में थे। 1973 में जब रात को बीबीएमबी ने पौंग बांध में पानी स्टोर किया और उनके गांव में पहुंचने पर भगदड़ मच गई। जितना सामान उठा सकते थे उठाया और आधी रात को ही घर छोड़कर भागना पड़ा।

जसूर में बसे मिलखी राम ने बताया कि उनके घर पौठ में थे। 1973 में जब डैम का जलस्तर बढ़ने लगा तो रात को ही भागना पड़ा। उस समय उनकी पत्नी गर्भवती थी। 45 वर्षीय बेटे सतीश कुमार को जलमग्न हुए गांव के बारे में बताते हुए उनकी आंखें नम हो गईं।

45 साल व इससे कम आयु के युवा बुजुर्गों से पूछ रहे थे कि उनका गांव कहां पर था। पता चलने पर वे दूर से उस जगह को मोबाइल फोन में कैद कर रहे थे। विस्थापित बताते हैं कि पौंग बांध में समाहित भूमि को हल्दून के नाम से जाना जाता था और इसमें करीब 20 हजार परिवार रहते थेर्। सिंचित भूमि होने के कारण नमक के अलावा वे अनाज खुद पैदा करते थे। उस समय सभी परिवार सुखी थे, लेकिन विस्थापित होने के बाद 50 साल में पुनर्वास नहीं हुआ और दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं।

विस्थापितों को जगी पुनर्वास की उम्मीद

नगरोटा सूरियां में पौंग झील के किनारे हजारों की संख्या में पहुंचे विस्थापितों में पुनर्वास की नई उम्मीद जगी है। उन्होंने रविवार को देहरा के विधायक होशियार सिंह के नेतृत्व में पहली बार इतनी संख्या में इकट्ठे होकर शक्ति का एहसास करवाया। यह पहला मौका है जब किसी विधायक ने विस्थापितों के दर्द को समझकर उनका नेतृत्व करने का फैसला लिया। इससे पहले उनका मुद्दा केवल चुनावी मुद्दा बनकर रह जाता था। विस्थापितों का विधायक पर इसलिए भी विश्वास बढ़ा है क्योंकि उन्होंने पुनर्वास की समस्या को विधानसभा के पहले सत्र में उठाया था। विधायक ने कहा कि पुनर्वास का इंतजार करते अब तीसरी पीढ़ी भी आ गई है और विस्थापित 20 हजार परिवार बढ़कर पांच लाख हो गए हैं। विधायक ने यहां तक कह दिया कि हमीरपुर व कांगड़ा में बसे विस्थापित लोकसभा व विधानसभा चुनाव में गणित बिगाड़ने की क्षमता रखते हैं। अब पुनर्वास को लेकर पौंग विस्थापितों में विधायक से उम्मीद बंधी है। 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.