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चंद्रग्रहण से पहले दो बार कांगड़ा में कांपी धरती, लोगों में भय का माहौल

चंद्र ग्रहण से ठीक पहले कांगड़ा की धरती में हलचल को इसलिए भी सामान्य नहीं देखा जा रहा है क्योंकि यह पूरा क्षेत्र ही भूकंप की दृष्टि से अति संवेदनशील है।

By BabitaEdited By: Published: Sat, 28 Jul 2018 10:11 AM (IST)Updated: Sat, 28 Jul 2018 10:13 AM (IST)
चंद्रग्रहण से पहले दो बार कांगड़ा में कांपी धरती, लोगों में भय का माहौल
चंद्रग्रहण से पहले दो बार कांगड़ा में कांपी धरती, लोगों में भय का माहौल

धर्मशाला, मुनीष दीक्षित। बड़े भूकंप को झेल चुकी कांगड़ा की धरती में फिर कंपन शुरू हो गई है। तीन दिन में दो बार भूकंप के आए झटकों ने कांगड़ा के लोगों में भय का माहौल पैदा कर दिया है। इस साल कांगड़ा में भूकंप के कुल तीन झटके हुए हैं और हैरानी की बात है कि इन तीनों ही झटकों की लोकेशन यानी भूकंप का केंद्र जिला कांगड़ा का शाहपुर क्षेत्र रहा है। 25 व 27 जुलाई को भूकंप के आए दो झटकों का केंद्र्र बिंदु शाहपुर का पुहाड़ा व लाजणी क्षेत्र रहा है। यह क्षेत्र दरिणी थ्रस्ट में आता है। यानी एक ऐसा क्षेत्र जहां धरती के नीचे इंडियन प्लेट व यूरेशियन प्लेट के कारण हलचल बढ़ रही हो और चट्टान का एक बड़ा हिस्सा दूसरी चट्टान के दबाव के कारण नीचे धंस रहा हो।

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इसी कारण यहां दबाव से निकल रही ऊर्जा से कंपन पैदा हो रही है। चंबा जिला की सीमा के साथ लगते दरिणी व शाहपुर के क्षेत्र में कुछ सालों से भू वैज्ञानिकों ने भी हलचल दर्ज की है। इसको लेकर बाकायदा शोध भी चल रहा है और इसे दरिणी थ्रस्ट की संज्ञा दी गई है।

सामान्य नहीं है यह कंपन

चंद्र ग्रहण से ठीक पहले कांगड़ा की धरती में हलचल को इसलिए भी सामान्य नहीं देखा जा रहा है क्योंकि यह पूरा क्षेत्र ही भूकंप की दृष्टि से अति संवेदनशील जोन पांच में आता है। इसी लोकेशन के समीप चंबा में भी जून में दो बार भूकंप के छोटे झटके आ चुके हैं। भूगर्भीय लिहाज से नाजुक कांगड़ा की धरती में काफी थ्रस्ट व फॉल्ट्स सक्रिय हैं।

 

हिमाचल में अब तक के बड़े भूकंप

चार अप्रैल, 1905 को हिमाचल में 7.8 तीव्रता वाला बड़ा भूकंप आया था। इसमें करीब 20 हजार लोगों की मौत हुई थी। 28 फरवरी, 1906 को कुल्लू में 6.4 तीव्रता वाला बड़ा भूकंप आ चुका है। वर्ष 1930 में भी 6.10 तीव्रता वाला भूकंप आया था। इसके बाद वर्ष 1945 में छह और 1975 में 6.8 तीव्रता वाला भूकंप आया था।

कांगड़ा में भूकंप के दो छोटे झटकों को हम सकरात्मक रूप से देख रहे हैं। क्योंकि भूमि के नीचे बन रही ऊर्जा छोटे भूकंप के रूप में बाहर आ रही है। कांगड़ा के शाहपुर व चंबा सीमा के क्षेत्र को दरिणी थ्रस्ट

कहा जाता है। यहां कुछ साल से हल्की कंपन दर्ज की जाती है। यहां मैं खुद शोध कर रहा हूं। फिलहाल इन झटकों से डरने की कोई बात नहीं है। 

-डॉ. सुनील धर, भू वैज्ञानिक।

कांगड़ा जोन पांच में है। ऐसे में प्रशासन हमेशा ऐसी घटनाओं को लेकर पहले से ही अलर्ट रहता है। भूकंप को लेकर मॉक ड्रिल भी समय-समय पर होती है। ऐसी घटनाओं में कम नुकसान हो, इसके लिए लोगों को भी जागरूक किया जाता है।

-संदीप कुमार, उपायुक्त कांगड़ा।

 

जोन पांच में आता है कांगड़ा 

कांगड़ा भूकंप की दृष्टि से अति संवेदनशील जोन पांच में आता है। इस जोन में इंडियन प्लेट यूरेशियन प्लेट के नीचे है। दोनों प्लेटों में गहरा तनाव चल रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार प्रदेश में प्रमुख 10 टैक्टॉनिक लाइन हैं, जिनमें मेन बाउंड्री थ्रस्ट, मस्तगढ़ एंटीक्लाइन, मेन फ्रंटल थ्रस्ट, ज्वालामुखी थ्रस्ट, द्रंग थ्रस्ट, सुंदरनगर फाल्ट, मेन सेंट्रल थ्रस्ट, नूर फॉल्ट तथा यमुना टियर फाल्ट शामिल है। इसके अलावा कांगड़ा में दरिणी थ्रस्ट भी जुड़ गया है। धौलाधार के उत्तरी तथा रावी के बाएं किनारे का क्षेत्र माइक्रो स्सिमिक एक्टिव क्षेत्र है, ऐसे में इस क्षेत्र में छोटे-छोटे भूकंप आ रहे हैं जो यहां बने थ्रस्ट में चल रही हलचल के कारण भूमि के नीचे एकत्रित ऊर्जा को धीरे-धीरे बाहर निकाल रहे हैं। यही ऊर्जा बड़े भूकंप का कारण बनती है। वैज्ञानिक इसे सकारात्मक पहलू मान रहे हैं।


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