आतंकवाद पर हो प्रहार, खुलें रोजगार के द्वार
ट्रैवल एक्सप्रेस के दौरान लोगों ने कहा कि सरकार ऐसी होनी चाहिए जो आतंकवाद के विरुदध कड़ा संज्ञान ले और युवाओं के लिए रोजगार के साधन भी मुहैया करवाए।
मंगलवार सुबह करीब 8.30 बजे नूरपुर के ढक्की बस स्टॉप पर एचआरटीसी की पठानकोट से बैजनाथ जाने वाली बस में सवारियों की आवाजाही शुरू हुई। बस में सफर करने वाले अधिकांश लोग कर्मचारी, आइटीआइ के प्रशिक्षु व किसान थे। बस चलते ही समाचार पत्र पढ़ रहे 46 वर्षीय रोशन लाल से लोकसभा चुनाव के लिए चर्चा शुरू की। पेशे से बागवान रोशन लाल कहते हैं कि यह चुनाव देश की एकता व अखंडता के लिए महत्वपूर्ण है। देश की बागडोर मजबूत हाथों में होनी चाहिए, जो आतंकवाद का मुंहतोड़ जवाब दे। सर्जिकल स्ट्राइक से देश की सैन्य शक्ति का विश्व को पता चला है। इसी सीट पर बैठे कर्मचारी सोहन लाल व छात्र अनुराग भी रोशन लाल की बातों से सहमत दिखे। अगली सीट पर बैठे सरकारी कर्मचारी पंकज शर्मा से जब चुनाव को लेकर चर्चा की तो वे तपाक से बोले कि पुरानी पेंशन बहाली सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा है, लेकिन हैरानी की बात है कि कोई भी राजनीतिक दल इसे लेकर गंभीर नहीं है। उनका कहना था कि जब सांसद व विधायक पांच साल के कार्यकाल के बाद पेंशन व अन्य सुविधाओं के हकदार हो सकते हैं तो 30-35 साल तक सरकारी नौकरी करने वालों को पेंशन क्यों नहीं। उसी सीट पर बैठे दो अन्य कर्मचारी संदीप कुमार व कमलेश धीमान भी पंकज शर्मा की बात पर सहमत दिखे। आइटीआइ के प्रशिक्षु साहिल व करनैल सिंह ने बताया कि ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि डिप्लोमा करने के बाद नौकरी मिल जाए। पेशे से किसान रघुवीर सिंह व करतार सिंह बताते हैं कि बेसहारा पशुओं व बंदरों के कारण लोग खेतीबाड़ी छोड़ने के लिए मजबूर हो गए हैं। इस समस्या से निपटने के लिए कोई भी पार्टी गंभीर नहीं है तथा न ही किसी के पास योजना है। किसान के लिए सबसे जरूरी खेत की सिचाई है लेकिन किसानों को सिर्फ बारिश का ही सहारा है। किसानों के हित के दावे सभी करते हैं पर सिंचाई के लिए जल संसाधन मुहैया करवाने की केवल घोषणाएं ही हैं। छात्रा कोमल व स्वाति का कहना था कि सरकार को रोजगार के ज्यादा से ज्यादा संसाधन मुहैया करवाने चाहिए। अगली सीट पर बैठे होशियार सिंह, बलकार सिंह व राजन ने सड़कों की हालत सुधारने की बात कही। बेरोजगारी की समस्या से निपटने के लिए सरकार को योजना बनानी चाहिए। खज्जियां पहुंचते ही एक घंटे का सफर कब पूरा हो गया, पता ही नहीं चला।