दर्जा सिविल अस्पताल का, स्टाफ सीएचसी से भी कम
अस्पताल का दर्जा तो बढ़ा दिया गया ,प्रवेश द्वार पर बड़े नाम बदलकर बोर्ड लट़का दिए गए परंतु ना तो उस अनुपात से पद सृजित हो सके और ना ही नियुक्ति । कागजों में तो 50 बिस्तर वाला सिविल अस्पताल बन गया परंतु
कागजों में नगरोटा बगवां अस्पताल का दर्जा तो बढ़ा दिया गया, लेकिन न तो पद सृजित हुए और न ही स्टाफ की तैनाती। दर्जा तो 50 बिस्तर वाले सिविल अस्पताल का मिल गया है, लेकिन हकीकत में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) की तर्ज 30 बिस्तर ही हैं। ओपीडी तो रोज 400 से 500 के बीच है, मगर बिना स्टाफ स्वास्थ्य सुविधाएं कितनी मिल पा रही होंगी इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। स्टाफ की कमी से जूझ रहे नगरोटा बगवां सिविल अस्पताल में किलकारियां कब गूंजी होंगी यह भी याद नहीं है। यहां महिला रोग विशेषज्ञ (गायनी) लंबे समय से तैनात ही नहीं हो पाई हैं। अल्ट्रासाउंड मशीन भी खराब है। पेश है सिविल अस्पताल नगरोटा बगवां के सूरत-ए-हाल दर्शाती रपट।
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चार डॉक्टर व तीन नर्सो से चल रहा सिविल अस्पताल
सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र से सिविल अस्पताल का दर्जा बढ़ाने की अधिसूचना करीब ढाई साल पहले जारी की गई थी। परंतु डॉक्टरों व स्वास्थ्य कर्मचारियों के पद उस अनुपात से सृजित नहीं किए गए। सिविल अस्पताल में आठ डॉक्टर व 10 नर्से होती हैं। नगरोटा बगवां अस्पताल में पांच डॉक्टरों में से एक पद खाली, जबकि नर्सो के चार पद में से भी एक रिक्त है। लैब टेक्नीशियन के दो पद खाली हैं। ओपीडी की पर्ची के लिए कंप्यूटर तक नहीं हैं। ------------
पूर्व कांग्रेस सरकार ने मात्र फट्टे लगाने का ही कार्य किया। अस्पताल का दर्जा बढ़ाकर पद सृजित न कर जरूरतमंद लोगों को स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित रखा गया। इस अस्पताल को 100 बिस्तर का करने के लिए मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से आग्रह किया है। स्वास्थ्य मंत्री विपिन परमार यहां स्टाफ तैनात करने की मांग की है।
-अरुण मेहरा, विधायक नगरोटा बगवां।
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अस्पताल में मरीजों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराई जा रही हैं। महिला रोग विशेषज्ञ की नियुक्ति हो गई है। जल्द नई अल्ट्रासाउंड मशीन स्थापित की जा रही है। ओपीडी पर्ची जल्द बने इस प्रकार की व्यवस्था की गई है।
-डॉ. सुशील शर्मा खंड स्वास्थ्य चिकित्सा अधिकारी।
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अस्पताल में अल्ट्रासाउंड की सुविधा न होने के कारण निजी अस्पतालों का रुख करना पड़ रहा है। सुविधा उपलब्ध करवाई जाए, ताकि जरूरतमंद लोगों को लाभ मिल सके।
-नीरज शर्मा।
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ओपीडी पर्ची बनाने के लिए लाइन में लंबा समय इंतजार करना पड़ता है। टोकन प्रणाली आरंभ की जाए, ताकि बैंच पर बैठकर बारी का इंतजार न करना पड़े।
-मुकेश।
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अस्पताल में बिस्तरों की कमी उस समय खटकती है जब अचानक मरीजों की संख्या में बढ़ जाती है। अस्पताल में कई बार एक बिस्तर पर दो-दो मरीज हो जाने से परेशानी का सामना करना पड़ता है।
- सनी पटियाल।
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अस्पताल में आने वाले ज्यादातर मरीजों को डॉ. राजेंद्र प्रसाद मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल कांगड़ा स्थित टांडा रेफर कर दिया जाता है। सिविल अस्पताल का दर्जा दिया गया है तो सुविधाएं भी उस हिसाब से मुहैया करवाई जाएं।
-संदीप
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-प्रस्तुति : जागरण संवाददाता, नगरोटा बगवां