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हिमाचल निर्माता डॉ. परमार की जयंती आज, परमार की जन्मस्थली की सुध लेने वाला कोई नहीं

किसी भी सरकार ने अभी तक हिमाचल निर्माता डॉ. वाईएस परमार के गृह जिले सिरमौर व जन्मस्थली चन्हालग के पिछडे़पन को गंभीरता से नहीं लिया।

By BabitaEdited By: Published: Sat, 04 Aug 2018 08:44 AM (IST)Updated: Sat, 04 Aug 2018 02:01 PM (IST)
हिमाचल निर्माता डॉ. परमार की जयंती आज, परमार की जन्मस्थली की सुध लेने वाला कोई नहीं

नाहन, राजन पुंडीर। ‘चन्हालग ने तुम्हे परमार दिया, परमार ने दिया हिमाचल, अब तुम बताओ कि तुमने चन्हालग को क्या दिया’। यह सवाल इस लिए उठ रहा है क्योंकि हिमाचल निर्माता की जन्म स्थल चन्हालग को वास्तव में कुछ नही मिला। यह क्षेत्र सरकार की अनदेखी का अनोखा उदाहरण है। डॉ. यशवंत सिंह परमार ने जिस स्थान पर जन्म लिया उसकी खबर लेने वाला आज कोई नहीं है। हर वर्ष चार अगस्त डॉ. परमार जयंती पर प्रदेश में जगह-जगह सरकारी व गैर सरकारी आयोजन होते हैं राजनेता उनके कसीदे पढ़ते है, मगर उन पर अमल नहीं होता।

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कांग्रेस हो या भाजपा, किसी भी सरकार ने अभी तक परमार के गृह जिले सिरमौर व जन्मस्थली चन्हालग के पिछडे़पन को गंभीरता से नहीं लिया। डॉ. परमार का जन्म 4 अगस्त 1906 को चलग गांव में उर्दू व फारसी के विद्वान व कला संस्कृति के सरंक्षक भंडारी शिवानंद के घर हुआ था। पिता सिरमौर रियासत के दो राजाओं के दीवान रहे थे। वे शिक्षा के महत्व को समझते थे। इसलिए उन्होंने यशवंत को उच्च शिक्षा दिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उनकी शिक्षा के लिए पिता ने जमीन जायदाद गिरवी रख दी थी। डॉ. यशवंत सिंह ने 1922 में मैट्रिक व 1926 में लाहौर के प्रसिद्ध सीसीएम कॉलेज से स्नातक के बाद 1928 में लखनऊ के कैनिंग कॉलेज में प्रवेश किया और वहां से एमए और एलएलबी किया। डॉ. परमार 1930 से 1937 तक सिरमौर रियासत के सब जज व 1941 में सिरमौर रियासत के सेशन जज रहे।

1943 में उन्होंने इस पद से इस्तीफा दे दिया। 1946 में डॉ. परमार हिमाचल हिल्स स्टेटस रिजनल काउंसिल के प्रधान चुने गए। 1952 में प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री बने। 1956 में वे संसद सदस्य के रूप में निर्वाचित हुए। 1963 में दोबारा प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। 24 जनवरी, 1977 को उन्होंने मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया। इसके चार वर्ष पश्चात दो मई, 1981 को हिमाचल के सिरमौर डॉ. परमार ने दुनिया को अलविदा कह दिया।

क्षेत्रवाद को छोड़ पूरे प्रदेश का विकास 

डॉ. वाईएस परमार ने अपने कार्यकाल के दौरान कभी क्षेत्रवाद तथा भाई-भतीजावाद को बढ़ावा नहीं दिया। उन्होंने सिरमौर को छोड़कर अन्य सभी जिलों का विकास करवाया। उनका मानना था कि अपने गृहक्षेत्र के विकास से पहले अन्य क्षेत्रों का विकास लाजिमी है। उन्होंने न केवल हिमाचल का निर्माण किया, बल्कि पंजाब के पहाड़ी क्षेत्रों का हिमाचल में विलय कर संपूर्ण हिमाचल का गठन किया। जिला के लोगों का कहना है कि अन्य महान हस्तियों की तर्ज पर हिमाचल निर्माता डॉ. वाईएस परमार की जयंती के अवसर पर प्रदेश में सार्वजनिक अवकाश घोषित किया जाना चाहिए।

डॉ. परमार न होते तो हिमाचल, हिमाचल न होता

डॉ. परमार ने प्रदेश का इतिहास ही नहीं, भूगोल भी बदल कर रख दिया। जिसका प्रमाण पूर्ण राज्य के रूप में प्रदेशवासियों के सामने है, जिसमें प्रदेश की सीमाओं को और बड़ा कर दिया था। जबकि प्रदेश को पंजाब में मिलाने की पुरजोर बात चल रही थी। अगर ऐसा न होता तो आज हम हिमाचली नहीं, पंजाबी ही कहलाते। सही में कहे तो डॉ. परमार नहीं होते तो हिमाचल, हिमाचल न होता।

दुनिया छोड़ने के बाद बैंक खाते में थे मात्र 563 रुपये

डॉ. परमार का व्यक्तित्व साधारण से दिखाई देने वाले था, मगर वह विचारशील, चिंतक और कुशाग्र बुद्धि के स्वामी थे। उनकी सबसे बड़ी खासियत उनका भोलापन, उनकी सादगी और उनका पहाड़ी लिबास था। यद्यपि वह अंग्रेजी के स्कालर थे। किन्तु पहाड़ी बोली उन्हें हमेशा प्रिय थी। खान-पान में वह हमेशा ही सिरमौरी भोजन और अन्य पहाड़ी व्यजनों को  पसंद करते थे। पहाड़ी संस्कृति उनके तन-मन में रची-बसी थी। जब भी वह किसी सार्वजनिक और निजी समारोह में जाते थे। पहाड़ी नाटी की धुन पर अवश्य थिरकते थे। डॉ.परमार पर कभी भी उनकी अपनी पार्टी, विपक्षी पार्टी और दूसरे अन्य लोगों ने कभी भी उंगली नहीं उठाई। इसी के चलते जब डॉ. परमार ने अंतिम सांस ली तो उनके बैक खाते में मात्र 563 रुपये थे। इसलिए राजनीतिक विचारधारा से ऊपर उठकर प्रदेश के लोग डॉ. परमार को एक महापुरुष और निर्विवाद रूप से हिमाचल निर्माता मानते हैं।

इंदिरा के संदेश मात्र से ही छोड़ दी सीएम की कुर्सी

शिमला डाकघर के सामने की रैलिंग पर खड़े शेरजंग चौहान, जय प्रकाश चौहान व काली कुमार डोगरा कांग्रेस भवन में चल रही हलचल को देख रहे थे। तभी डॉ. यशवंत परमार एवं अन्य कांग्रेस नेता सीढ़ियों से नीचे उतरे और सड़क पर खड़ी कार के पास आए। उसी दौरान डॉ. परमार आगे आए और कार का दरवाजा खोलकर ठाकुर रामलाल को बैठने का इशारा किया। ठाकुर रामलाल इस अप्रत्याशित व्यवहार के लिए तैयार नहीं थे और डॉ. परमार से हाथ जोड़ विनती करते दिखाई दिए। पहले उन्हें बैठने का आग्रह किया, मगर परमार ने बलपूर्वक ठाकुर रामलाल को बिठा ही दिया। मैं भी इस घटना को नहीं समझ पाया था। मगर साथ में खड़े मेरे मित्र जयप्रकाश चौहान ने बताया कि डॉ. परमार ने मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया है। ठाकुर रामलाल को नया मुख्यमंत्री बना दिया गया है। क्या किसी ने ऐसा मुख्यमंत्री देखा है जो स्वयं त्यागपत्र दे कर किसी दूसरे को अपने हाथों कुर्सी सौंप दें? ऐसे थे हमारे प्रथम मुख्य मंत्री और हिमाचल निर्माता डॉ. वाईएस परमार। यह वाक्या 1976 का है जब डॉ. परमार ने मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र दिया था। त्यागपत्र देने से तीन दिन पहले वे दिल्ली थे। वापस आकर नाहन में बैठक कर रहे थे कि तभी शिमला कार्यालय से सूचना मिली कि उन्हें दिल्ली बुलाया गया है। वे सोचने लगे कल ही तो वहां से आया हूं ऐसी क्या बात हो गई जो उन्हें तुरंत दिल्ली बुलाया गया। वे दिल्ली की ओर फिर से रवाना हो गए। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के आवास पर गए तो वहां कांग्रेस महासचिव पूर्वी मुखर्जी से बात हुई। उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री चाहती हैं कि वे मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र दें।

डॉ. परमार मुस्कुराए और कहा ‘बस इतनी सी बात’। मुझे फोन पर ही बता देते और वापस चलने लगे। मुखर्जी ने कहा कि आप रुक जाईये, कल प्रधानमंत्री मिल सकेंगी। एक बार उनसे मिल तो लीजिए। डॉ. परमार ने कहा कि मुझे मुख्यमंत्री बनने का अवसर भी उन्होंने दिया है और उन्हीं के कहने से पद छोड़ दूंगा। इस प्रकरण पर उनके सहयोगी एवं डॉ. परमार पर पुस्तक लिखने वाले आचार्य चंद्रमणि वशिष्ठ जी के अनुसार एक व्यक्ति जो बीस सालों तक किसी प्रदेश का मुख्यमंत्री रहा हो, लोग जिसके पीछे चट्टान की तरह खड़े हों, जिसके पक्ष में पूरी पार्टी और विधान सभा का बहुमत हो, वो मुस्करा के कह दे ‘बस इतनी सी बात है’।

डॉ. परमार के नाम से सरकार ने शुरू की पॉलीहाउस योजना

 अनुराधा अत्री ’ नैनाटिक्कर हिमाचल निर्माता डॉ. वाईएस परमार के नाम पर सरकार ने एक ओर संस्थान का नाम रखा है। प्रदेश के तात्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने 11 जुलाई 2015 को नाहन पीजी कॉलेज भवन के विधिवत शिलान्यास करने के बाद घोषणा की थी कि पीजी कॉलेज नाहन के भवन का नाम हिमाचल निर्माता डॉ. वाईएस परमार के नाम पर होगा। वर्ष 2016 में नाहन में जिला सिरमौर के पहले मेडिकल कॉलेज को भी सरकार ने हिमाचल निर्माता को समर्पित करते हुए डॉ. वाईएस परमार मेडिकल कॉलेज नाहन रखा है। इससे पूर्व प्रदेश सरकार जिला सिरमौर में पच्छाद विधानसभा के राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय बागथन व नाहन उपमंडल के तहत आने वाले सीनियर सकेडरी स्कूल ददाहू का नाम भी हिमाचल निर्माता डॉ. वाईएस परमार को समर्पित कर चुकी है। शिमला स्थित विधानसभा में भी डॉ. परमार के नाम से पुस्तकालय है।

डॉ. वाईएस परमार की प्रदेश के किसानों व बागवानों के प्रति अथाह रुचि थी, जिसे ध्यान में रखते हुए प्रदेश सरकार ने उद्यान एवं वानिकी विश्वविद्यालय नौणी, सोलन का नाम भी डॉ. हिमाचल निर्माता डा. वाईएस परमार के नाम कर पर रख कर उन्हें श्रद्धांजलि दी। गिरिपुल गांव को यशंवत नगर का दर्जा भी दिया है। बनोग में बसी नई कॉलोनी को भी यशंवत बिहार का नाम दिया गया है। वर्तमान सरकार ने प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री व हिमाचल निर्माता के नाम कृषि विभाग में एक योजना शुरू की है। जिसका नाम डॉ. वाईएस परमार कृषि पॉलीहाउस योजना रखा है। इस योजना में सरकार किसनों को 85 प्रतिशत तक अनुदान दे रही है।


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