चौरासी मंदिर में पूजा के बाद शिव चेले मणिमहेश रवाना, कल करेंगे डल झील पार; हजारों श्रद्धालुओं ने किया रुख
प्रसिद्ध मणिमहेश यात्रा के राधाष्टमी स्नान के लिए श्रद्धालु मणिमहेश के लिए रवाना हो गए।
भरमौर, जेएनएन। प्रसिद्ध मणिमहेश यात्रा के राधाष्टमी स्नान के लिए श्रद्धालु मणिमहेश के लिए रवाना हो गए। सचूंई के शिव चेलों ने बुधवार सुबह अपने गांव से निकल कर सामूहिक रूप से चौरासी मंदिर की परिक्रमा की। इस दौरान उनके स्वागत के लिए सैकड़ों लोगों की कतारें सड़क के दोनों ओर लगी हुई थी। परंपरा अनुसार मणिमहेश जाने वाले शिव चेलों को मीठा खिलाकर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है। शिव चेलों के साथ सचूंई गांव से चौरासी मंदिर तक के रास्ते में शिव भक्तों की भारी भीड़ उमड़ पड़ी। स्थानीय लोगों ने शिवघोष, जयकारे व स्तुति गान करते हुए इन चेलों को मणिमहेश रुखस्त किया।
शिवचेला धर्म चंद ने कहा कि कुछ चेले आज रात हड़सर में पड़ाव डालेंगे, जबकि शेष धन्छो के लिए रवाना हो जाएंगे। हड़सर में आज रात्री जागरण होगा, जिसे पूरा होने के बाद चेले सुबह यहां से धन्छो में बाकि चेलों के साथ मणिमहेश रवाना होंगे। उन्होंने कहा कल 05 सितंबर सप्तमी के दिन ही शिव चेले डल झील पार करेंगे।
मणिमहेश झील में राधाष्टमी स्नान को महत्व दिया जाता है। लेकिन शिव चेले हमेशा सप्तमी को स्नान करते हैं। इस संदर्भ में कोई ठोस तर्क तो नहीं है लेकिन माना जाता है कि ज्योतिष शास्त्र भगवान ब्रह्मा के अनुसार कार्य करते हैं जिसमें ग्रहों नक्षत्रों की स्थिति की जटिल गणना करने के बाद किसी पर्व का उपयुक्त समय निकाला जाता है। जबकि शिव भगवान के अनुयायी किसी भी प्रकार की ज्योतिष या मुहूर्त का इंतजार नहीं करते। शिव चेले अध्यात्मिक कंपन के दौरान ही शिव के आदेश को जारी कर देते हैं। उनके वाक को अटल माना जाता है जिसके बात स्नान शुरू कर दिया जाता है। शिव चेले कल पांच सितंबर को दोपहर बाद कभी भी डल झील में प्रवेश कर सकते हैं। चेलों के डल झील पार करने के दृश्य को देखने के लिए हजारों श्रद्धालु मणिमहेश रवाना हो गए हैं। वहीं स्थानीय लोग भी आज मणिमहेश के लिए रवाना हो रहे हैं।
तिरलोचन के वंशज हैं शिव के चेले
शिव के चेले भरमौर मुख्यालय के साथ सटे गांव सचूई के रहने वाले हैं। इनके पूर्वज तिरलोचन थे, जो कि बहुत बड़े शिवभक्त थे। कहा जाता है कि भगवान शिव उनके सम्मुख आकर सीधे बातचीत करते थे। गरीब परिवार से ताल्लुक रखने वाले तिरलोचन पेशे से दर्जी थे। एक बार भगवान शिव तिरलोचन के परिवार की भक्ति की परीक्षा के उद्देश्य से उनके घर पहुंचे। भगवान शिव भेड़ पालक (गद्दी) के वेश में तिरलोचन की मां के पास भेड़ों के लिए नमक मांगने पहुंचे। चूंकि, परिवार गरीबी में जी रहा था इसलिए तिरलोचन की मां ने कहा कि उनके घर में इतना नमक नहीं है, जिस पर गद्दी के वेश में शिवजी ने कहा कि लकड़ी के बड़े से कंजाल (संदू्क) में बहुत अधिक नमक है। तिरलोचन की मां ने जब उस कंजाल को खोला तो यह नमक से भरा हुआ था।
मां ने इसे भगवान शिव की कृपा मानकर उस गद्दी को काफी नमक दे दिया। लेकिन, नमक बहुत भारी था, जिसे ले जाना अकेले गद्दी के वश में नहीं था तो मां ने अपने बेटे तिरलोचन को उस भेड़ पालक के साथ भेज दिया। चलते-चलते दोनों मणिमहेश पहुंच गए। यहां तिरलोचन ने उस गडरिये से पूछा कि यहां तो आपकी भेड़-बकरियां तो नहीं हैं तो आप नमक क्यों लाए? जिस पर भगवान शिव ने उसे अपना असली स्वरूप दिखाया और कहा कि अब तू घर लौट जा। लेकिन, इसके बारे में किसी को कुछ न बताना। इतना कहते ही भगवान शिव डल झील में अंतध्र्यान हो गए। यह सब देख तिरलोचन भी भगवान शिव के पीछे दौड़ता हुआ उसी डल झील में समा गया।
भक्त को अपने पीछे आते देख भगवान शिव ने उसे बचा लिया और कुछ वक्त अपने साथ रखा। कुछ माह बाद जब तिरलोचन ने घर लौटने की इच्छा जताई तो भगवान शिव ने अपनी वही शर्त दोहराते हुए कहा कि यह भेद किसी से न कहना। जब वह अपने गांव सचूई के ऊपर पहुंचा तो सोचा कि कुछ देर विश्राम करके घर जाता हूं। वह कमर में बांधी बांसुरी निकाल कर उसे बजाने लग पड़ा। बांसुरी की धुन से ही पहचान कर तिरलोचन की मां ने कहा कि मेरा तिरलोचन लौट आया है, लेकिन कोई मानने को तैयार नहीं था। उसी दिन घर पर तिरलोचन की मृत्यु की छह मासिक क्रिया की जा रही थी। तिरलोचन को जब इस बात का पता चला तो उसने स्वयं को रावी नदी में समाहित कर लिया।
लेनी पड़ती है शिव चेलों की अनुमति
भगवान शिव ने फिर भेड़पालक के रूप में तिरलोचन की मां को उसी दिन आकर कहा कि तिरलोचन को मैंने अपने पास रख लिया है। अगर और कोई मेरे पास आना चाहे तो उसे आपकी आज्ञा लेनी होगी। माना जाता है कि इस घटना के बाद से ही मणिमहेश जाने वाले श्रद्धालु तिरलोचन के वंशजों से अनुमति लेकर ही यात्रा करते हैं। श्रीराधाष्टमी में सबसे पहले यही शिव चेले स्नान करके इस पर्व की शुरुआत करते हैं। श्रीराधाष्टमी स्नान के दौरान यह चेले डल झील के सबसे गहरे भाग से इसे पार करते हैं।