पांगी घाटी में मकर संक्रांति पर बंद हुए मंदिरों के कपाट
मकर संक्रांति के बाद पांगी घाटी में मंदिरों कपाट बंद हो गए हैं।
कृष्ण चंद राणा, पांगी
मकर संक्रांति पर पांगी घाटी में सभी मंदिरों के कपाट बंद हो गए। ¨मधल माता पांगी के पुजारी राम शर्मा के मुताबिक मकर संक्रांति के बाद पांगी के सभी देवी-देवता भगवान विष्णु से मिलने विष्णु लोक में चले जाते हैं। 14 जनवरी को समस्त पांगी के लोग मंदिरों में जाकर पूजा-पाठ करने के बाद बैसाखी तक मंदिरों के कपाट बंद कर देते हैं। इस बीच में मंदिर नहीं खुलते हैं।
मान्यता है कि इसके बाद घाटी में राक्षस राज हो जाता है, जिसके चलते लोग दिन ढलने के बाद अकेले घरों से बाहर नहीं जाते हैं। मकर संक्रांति का दिन पांगी के लोगों के लिए बहुत मायने रखता है। बुजर्गो का कहना है इसके बाद ठंड का प्रकोप और बढ़ जाता है। जबकि, अन्य स्थानों पर लोहड़ी के बाद ठंड का प्रकोप कम हो जाता है। मकर संक्रांति के दिन शीतराजा (शीतबुड़ी), जिनको भगवान शिव माना जाता है। कैलाश पर्वत से चंद्रभागा नदी में प्रवेश करते हैं, जोकि एक माह तक वहां रहने के बाद फाल्गुन मास की संक्रांति को अपने स्थान कैलाश पर्वत पर जाते हैं। मकर संक्रांति के बाद माघ मास की पूर्ण मासी को पांगी में चजगी का त्योहार मनाया जाता है। पूर्णमासी के बाद आने वाली अमावस्या को जुकारु का त्योहार मनाया जाता है। बताते हैं कि शीतराजा चंद्रभागा में जब प्रवेश करते हैं तो समस्त पांगी में दैत्य राज हो जाता है। मात्र घर देवता ही लोगों की रक्षा करते हैं। पांगी में तमाम मंदिरों के कपाट बंद किए जाते हैं। बैसाखी से लोहड़ी, मकर संक्रांति तक ¨मधल, पुरथी में मालासनी, लुज का शीतला माता मंदिर मकर संक्रांति तक नौ माह तक खुले तथा तीन महीने बंद रहते हैं।