पर्याप्त वर्षा न होने से भरमौर में फसल बर्बादी की कगार पर
संवाद सहयोगी भरमौर जनजातीय क्षेत्र भरमौर में पिछले दो माह से फसलों के लिए आवश्यक बारिश
संवाद सहयोगी, भरमौर : जनजातीय क्षेत्र भरमौर में पिछले दो माह से फसलों के लिए आवश्यक बारिश नहीं हुई है, जिस कारण पूरे उपमंडल में सूखे जैसे हालात पैदा हो गए हैं। खरीफ की फसल खेतों में सूख गई है। वहीं, बारिश न होने का प्रभाव सेब की पैदावार पर भी पड़ा है। इस वर्ष सेब की पैदावार एक तो बहुत कम है, वहीं बारिश न होने के कारण सेब फल का आकार भी सिकुड़ गया है।
क्षेत्र की कृषि व बागवानी बारिश पर निर्भर करती है। ऐसे में मानसून की बेरुखी ने कोरोना के इस कठिन हालात में बेरोजगार किसानों-बागवानों से पेट की रोटी भी छीनने का प्रयास किया है। स्थानीय लोगों राम लाल, विनय कुमार, प्रदीप तथा सुखदेव आदि का कहना है कि फसल की पैदावार तभी अच्छी तरह से होती है, जब बारिश समय-समय पर होती रहे, लेकिन इस वर्ष बारिश के बेरुखी ने किसानों व बागवानों के चेहरों पर चिता की लकीरें खींच दी हैं। ऐसे बहुत कम मौके होते हैं, जब बारिश कम होती है। अधिकतर भरमौर क्षेत्र में अच्छी खासी बारिश हो जाता थी, लेकिन इस बार ऐसा देखने को नहीं मिल रहा है। इसे किसानों की बुरी किस्मत कहें या सरकार की लापरवाही जो करोड़ों की लागत से कागजी सिचाई योजनाएं बनाकर लोगों को झूठे आश्वासन दे रहे हैं। भरमौर क्षेत्र में भी पर्याप्त सिचाई योजनाएं होनी चाहिए, ताकि जब भी बारिश कम हो या न हो तो किसान खेतों को सिचाई जल से सींच कर फसलों को बर्बाद होने से बचा सकें।
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लोगों ने इस वर्ष मार्च माह में लॉकडाउन के दौरान खेतों के बेहतरीन कार्य कर कृषि योग्य भूमि का भी प्रसार किया था, लेकिन मानसून न बरसने के कारण क्षेत्र की 70 फीसद फसल सूख गई है। अगर यही हालात जारी रहे तो खरीफ की पूरी फसल तबाह हो जाएगी। किसान अकसर मिश्रित फसलें अपने खेतों में उगाते हैं। इसलिए उन्हें फसल बीमा का लाभ भी नहीं मिल पाता है।
-रामलाल, वस्तु विषय विशेषज्ञ कृषि विभाग