सात वर्ष से कोमा में बेटा, सरकार से आस
विगत सात वर्षो से कोमा में ¨जदगी काट रहे भट्टियात क्षेत्र के 41 वर्षीय मदन के आगे श्रमाधिकार जैसे शब्द झूठे से लगते हैं। वहीं ऐसे लाचार लोगों कल्याण के प्रति सरकारी विभाग भी अनजान बन औपचारिकताओं के पूरा होने का इंतजार कर रहे हैं। अपनी ¨जदगी के कई वर्ष बद्दी स्थित दवा कंपनी में खपाने के बाद यह व्यक्ति उपेक्षा की ¨जदगी जी रहा है।
संवाद सहयोगी, चुवाड़ी : सात वर्ष से कोमा में ¨जदगी काट रहे भटियात क्षेत्र के 41 वर्षीय मदन के आगे श्रमाधिकार जैसे शब्द झूठे से लगते हैं। लाचार लोगों के कल्याण के प्रति सरकारी विभाग भी अनजान बन औपचारिकताओं के पूरा होने का इंतजार कर रहे हैं। अपनी ¨जदगी के कई वर्ष बद्दी स्थित दवा कंपनी में खपाने के बाद यह व्यक्ति उपेक्षा की ¨जदगी जी रहा है। कंपनी में काम करने के दौरान सिर पर लगी चोट के चलते मदन कोमा में चला गया था। कंपनी मालिकों ने प्राथमिक उपचार के बाद उसे उसके हाल पर छोड़ दिया। अस्पताल में मदन की पत्नी ने दो साल तक झाड़ू-पोंछा कर पति को ठीक करवाने की कोशिश की, लेकिन सरकारी तंत्र भी इस गरीब के हक की पैरवी न कर पाया। मदन के दो लड़के व एक लड़की है। आर्थिक तंगी के चलते उसकी लड़की भी आठवीं के आगे नहीं पड़ पाई। ¨जदगी के दिए जख्मों को पहले भी झेल चुके बुजुर्ग फौजी पिता जर्म ¨सह निवासी लूहणी पंचायत खदेट छह महीने पहले ही एक बेटे को खो चुके हैं। लाचारी यह कि सैन्य जीवन में कई जंग जीतने के बाद अपने जीवन के अंतिम पड़ाव में खड़ा यह पिता ¨जदगी के मोर्चे पर हारा सा दिखता है। सरकार को उम्मीद भरी नजरों से टकटकी लगाए देखता यह 85 वर्षीय फौजी पिता अपनी बहू को नौकरी मिलने पर राहत मिलने की बात कहता है। बकौल जर्म ¨सह, उसे नहीं पता कि उसकी कितनी ¨जदगी बची है। अब तक उसकी पेंशन से ही सारे खर्च चल रहे हैं। उसे ¨चता परिवार की है कि उसके बाद इन सबका क्या होगा। जर्म ¨सह के मुताबिक पंचायत को लिख कर दिया था, इसलिए वहीं से उम्मीद थी। अब वह भी टूटती दिखती है। उधर, तहसील कल्याण अधिकारी सुरेशना महाजन का कहना है कि प्रभावित परिवार विभागीय औपचारिकताओं को पूरा करे। विभाग उनकी हरसंभव सहायता करेगा।