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चिता पर कफन, हवन सामग्री चढ़ाने की परंपरा पलटी

युवा पीढ़ी अगर कुछ करने की ठान ले तो दुनिया की कोई ताकत उसे रोक नहीं सकती।

By Munish DixitEdited By: Published: Tue, 24 Jul 2018 11:25 AM (IST)Updated: Tue, 24 Jul 2018 11:39 AM (IST)
चिता पर कफन, हवन सामग्री चढ़ाने की परंपरा पलटी
चिता पर कफन, हवन सामग्री चढ़ाने की परंपरा पलटी

बम्‍म [लोकेश ठाकुर]: युवा पीढ़ी अगर कुछ करने की ठान ले तो दुनिया की कोई ताकत उसे रोक नहीं सकती। ऐसा ही एक अनुकरणीय उदाहरण बिलासपुर जिले के सदर विधानसभा क्षेत्र के आखिरी कोने पर बसी मैहरी काथला पंचायत के युवाओं ने पेश किया है। पंचायत के परनाल गांव के युवाओं ने अंतिम संस्कार के वक्त की परंपराएं पलट दी हैं। युवाओं ने विचार विमर्श के बाद निर्णय लिया कि भविष्य में गांव के किसी भी व्यक्ति की मौत के बाद चिता पर चढ़ाए जाने वाले कफन और और हवन सामग्री पर कोई पैसा जाया नहीं किया जाएगा।

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इस सामग्री पर होने वाले खर्च की बजाय नकद पैसा चिता के पास कपड़ा रखकर जमा किया जाएगा और उसे मृतक के परिजनों के हवाले किया जाएगा, ताकि दुख की उस घड़ी में उन्हें आर्थिक तौर पर सहारा मिल सके।रविवार को गांव में हुई एक मौत के बाद अंतिम संस्कार के समय युवाओं ने बुजुर्गों की सहमति के बाद चिता के पास ही चादर बिछाकर लोगों से आर्थिक मदद का आग्रह किया तो मौके पर छह हजार रुपये की राशि जमा हो गई। लोग अब युवक मंडल की अपील पर परिवार की मदद करने के लिए आगे आ रहे हैं।

ऐसे बदली सोच

मैहरी काथला पंचायत के गांव परनाल निवासी ज्ञान चंद ठाकुर का शनिवार को स्वर्गवास हो गया। रविवार को उनका अंतिम संस्कार पंचायत के श्मशानघाट में किया गया। गांव के युवा रसील सिंह ठाकुर, ध्यान सिंह ठाकुर और मनोज शर्मा निक्कू ने श्मशानघाट में श्रद्धांजलि देने पहुंचे क्षेत्र के बुजुर्गों सीता राम शर्मा, बृज लाल ठाकुर समेत अन्य प्रबुद्ध लोगों से विचार-विमर्श किया कि सदियों से पूरे हिमाचल में परंपरा चली आ रही है कि मरने वाले की चिता पर कफन डालकर हवन सामग्री चढ़ाई जाती है। इस परंपरा से किसी का भला तो होता नहीं, उल्टा चिता पर अधिक कपड़ा हो जाने से वह आग नहीं पकड़ पाती।

हवन सामग्री का भी ढेर लग जाता है। पूर्व बीडीसी उपाध्यक्ष सतीश ठाकुर, सुरेंद्र राणा भूरा, कुलवाड़ी के डुगली गांव के रहने वाले संजू वर्मा ने मौजूद बुजुर्गों और युवाओं से अपील की कि भविष्य में इस तरह की इस परंपरा पर पैसा व्यर्थ करने की बजाय श्मशानघाट में ही चादर बिछाई जाएगी। जिसका जितना सामर्थ्य हो, उतना पैसा वहां पर दान के रूप में दे दिया जाए। इस पर पूरा गांव राजी हो गया। अब भविष्य में इसी तर्ज पर मृतक के परिवारों को आर्थिक मदद श्मशानघाट से ही जमा कर मुहैया करवाई जाएगी। पहले प्रयास में युवाओं ने ज्ञान चंद के आश्रित परिवार को छह हजार रुपये की आर्थिक मदद मुहैया करवाई।


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