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पुस्तकालय के लिए तरसा घुमारवीं

संजीव शामा घुमारवीं कहते हैं कि नालंदा विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी महीनों तक जलती रही थी। अ

By JagranEdited By: Published: Fri, 30 Oct 2020 05:26 PM (IST)Updated: Fri, 30 Oct 2020 05:26 PM (IST)
पुस्तकालय के लिए तरसा घुमारवीं
पुस्तकालय के लिए तरसा घुमारवीं

संजीव शामा, घुमारवीं

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कहते हैं कि नालंदा विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी महीनों तक जलती रही थी। अगर हम दूसरे शब्दों में कहे तो मतलब किसी भी समाज का बौद्धिक विकास बिना किताबों के संभव नही है और बात पुस्तकों की हो तो जेहन में एक ही चीज सबसे पहले आती है और वो है पुस्तकालय। क्योंकि पुस्तकालय लोगों को पढ़ने और सीखने की आदत विकसित करने के लिए आकर्षित करते हैं।

विभिन्न विषयों पर किसी भी प्रकार के शोध के लिए पुस्तकालय भी आवश्यक है। क्योंकि यह शांति से पढ़ने का आनंद लेने के लिए सही वातावरण प्रदान करते हैं। अगर बात घुमारवीं की हो तो ये शहर इतने वर्षो बाद भी एक अदद पुस्तकालय को तरस रहा है। स्थानीय राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला में स्थापित एकमात्र पुस्तकालय स्कूल के एक कोने में सिमटा हुआ दिखाई देता है। शहरी निकाय भी 25 वर्षो से पुस्तकालय के लिए कमरा तक नहीं बनवा पाया, ताकि हम बच्चों में पढ़ने की आदत को बचाए रखें।

इसी तरह बुजुर्गो, सेवा मुक्त सरकारी मुलाजिम व नौजवानों के पास कोई भी साधन मौजूद नहीं है, जिससे वह अपना खाली समय व्यतीत कर सकें। ज्यादातर स्थानीय निवासी अपना समय व्यतीत करने के लिए घरों में कैद होकर रह जाते हैं। प्रशासन दुकानें बना कर उसे किराए पर देने को उत्सुक रहता है पर कभी किसी ने इन बीते वर्षो में एक अदद पुस्तकालय बनाने की नही सोची। स्थानीय राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला के प्रिसिंपल यशपाल पटियाल ने बताया कि अगर कोई पाठक स्कूल में आकर पुस्तकालय में बैठ कर पढ़ना चाहता है तो उसको हर तरह से सहूलियत दी जाएगी, लेकिन इस समय स्कूल में लाब्रेरियन का पद खाली है और फिलहाल किसी को इसका चार्ज दे कर काम चलाया जा रहा है। कोई भी जो पढ़ने की इच्छा रखता हो सुबह नौ से पांच बजे तक इस पुस्तकालय का इस्तेमाल कर सकता है।

एक अच्छा पुस्तकालय कई शिक्षकों की गरज पूरी करता है। पुस्तकालय विद्यार्थियों को न तो धमकाता है और न कक्षा में चढ़ाता व उतारता है। वह तो अपने पास आने वालों को प्रेम-पूर्वक, विनय-पूर्वक और रूचिपूर्वक पढ़ाता रहता है, लेकिन पुस्तकालय तक बच्चे पहुंचे और वहां रुककर पढ़े, इसके लिए पेशेवर और हुनरमंद लोग (शिक्षक) चाहिए जो बच्चों को पुस्तकालयों में रोक सकें। राजपाल शर्मा, सेवानिवृत्त लाइब्रेरियन


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