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एक सप्ताह में पेड़ नहीं काटे तो भूख हड़ताल पर बैठेंगे ग्रामीण

उपमंडल घुमारवीं के तहत ग्राम पंचायत मरहाणा के गांव मरहाणा में कुछ दिन पूर्व चले तूफान के दौरान एक घर के ऊपर सफेदे का पेड़ गिरने के बाद अन्य सफेदे के पेड़ों को न काटने पर ग्रामीणों में रोष व्याप्त है।

By JagranEdited By: Published: Sun, 20 Jun 2021 06:22 PM (IST)Updated: Sun, 20 Jun 2021 06:22 PM (IST)
एक सप्ताह में पेड़ नहीं काटे तो भूख हड़ताल पर बैठेंगे ग्रामीण

संवाद सहयोगी, भराड़ी : उपमंडल घुमारवीं के तहत ग्राम पंचायत मरहाणा के गांव मरहाणा में कुछ दिन पूर्व चले तूफान के दौरान एक घर के ऊपर सफेदे का पेड़ गिरने के बाद अन्य सफेदे के पेड़ों को न काटने पर ग्रामीणों में रोष व्याप्त है।

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हादसा होने के बाद खाद्य आपूर्ति मंत्री राजिद्र गर्ग ने पिछले सोमवार को शेष बचे कुछ खतरनाक सफेदे के पेड़ों को काटने के लिए हामी भरी थी लेकिन एक सप्ताह का समय बीत जाने के बाद भी सफेदों को काटने के लिए कोई कवायद शुरू नहीं हो पाई है। ऐसे में ग्रामीणों में आक्रोश फैल गया है।

ग्रामीणों का कहना है कि पहले भी विभाग हादसे होने के बाद जागा था तो क्या अब फिर किसी हादसे के इंतजार कर रहा है। लोगों का कहना है कि शुक्रवार को भी स्कूल के साथ सटी मशीन के भवन पर सफेदे का कुछ हिस्सा टूट कर गिर गया है जिससे अब यह डर बढ़ गया है। लोगों का कहना है कि खाद्य आपूर्ति मंत्री के कहने के बावजूद कोई कदम नहीं उठाए जा रहे हैं। ऐसे में ग्रामीणों ने दो टूक शब्दों में कह दिया है कि यदि विभाग ने इस सप्ताह में पेड़ों को नहीं काटा गया तो सभी अधिकारी और प्रशासन ग्रामीणों का गुस्सा सहने के लिए तैयार रहें क्योंकि अब ग्रामीण किसी भी दूसरे हादसे का इंतजार नहीं करेंगे।

ग्रामीण पृथि सिंह, शिल्पा, अमर सिंह, राकेश, केशव, रोशन, सीताराम ने कहा कि सरकार केवल हादसे के बाद होश में आती है लेकिन इस बार ऐसा नहीं होगा। अगर शीघ्र ही इन पेड़ों को नहीं काटा गया तो फिर लोग वन विभाग के कार्यालय में भूख हड़ताल पर बैठ जाएंगे तथा तब तक नहीं हटेंगे जब तक सभी सफेदे के पेड़ों को काटा नहीं जाता है। लोगों ने कहा कि प्रशासनिक अधिकारी समय रहते इन पेड़ों को काट दें अन्यथा लोगों का गुस्सा सहने के लिए तैयार रहे। लोगों ने बताया सड़क के साथ सटे एक सफेदा जो टेढा हो गया है उसके साथ बनी दीवार में भी दरार आ गई है ऐसे में हर समय हादसे का डर बना रहता है। लोग भय का जीवन जीने को मजबूर हैं।


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