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लकड़ी से खजाने में कम क्यों आ रही जीएसटी, केंद्र व राज्य सरकार के अधिकारी खामोश

लक्कड़ मंडियों में मार्केट फीस के साथ-साथ जीएसटी की भी चोरी हो रही है। केंद्र व राज्य सरकार के अधिकारी जीएसटी की चोरी रोकने के लिए अब तक कोई कदम नहीं उठा पाए हैं। अधिकारियों की चुप्पी बड़े सवाल खड़े कर रही है। वह भी तब जब लकड़ी बेचने का काम गुपचुप होने की बजाय सरेआम होता है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 20 Sep 2021 11:50 PM (IST)Updated: Mon, 20 Sep 2021 11:50 PM (IST)
लकड़ी से खजाने में कम क्यों आ रही जीएसटी, केंद्र व राज्य सरकार के अधिकारी खामोश
लकड़ी से खजाने में कम क्यों आ रही जीएसटी, केंद्र व राज्य सरकार के अधिकारी खामोश

जागरण संवाददाता, यमुनानगर : लक्कड़ मंडियों में मार्केट फीस के साथ-साथ जीएसटी की भी चोरी हो रही है। केंद्र व राज्य सरकार के अधिकारी जीएसटी की चोरी रोकने के लिए अब तक कोई कदम नहीं उठा पाए हैं। अधिकारियों की चुप्पी बड़े सवाल खड़े कर रही है। वह भी तब जब लकड़ी बेचने का काम गुपचुप होने की बजाय सरेआम होता है। रोजाना सैकड़ों ट्रालियां सड़कों पर बिकती हैं परंतु अधिकारी इन्हें नजरअंदाज कर आगे बढ़ जाती हैं। जगाधरी में जिस जगह पर जीएसटी का केंद्रीय कार्यालय है ठीक उसके सामने से ही रोजाना ट्रालियों का आना जाना होता है। कभी जीएसटी का आंकलन नहीं किया :

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दरअसल जीएसटी अधिकारियों ने कभी यह आंकलन ही नहीं किया कि लक्कड़ मंडी में रोजाना कितनी लकड़ी आती है। इसमें बिकने वाली लकड़ी पर कितना जीएसटी प्लाईवुड कारोबारी जमा करवा रहे हैं। प्लाईवुड कारोबारियों को कच्चा माल यानि लकड़ी की खरीद पर 18 फीसद जीएसटी देनी होती है। परंतु इस जीएसटी को बचाने के लिए फैक्ट्रियों में सीधे ही लकड़ी खरीद कर ली जाती है। जिसका सीधा असर केंद्र व प्रदेश सरकार के राजस्व पर पड़ रहा है। जब मार्केट कमेटी के सचिव सख्ती कर तीन माह में दो फीसद मार्केट फीस को 20 लाख से एक करोड़ रुपये तक पहुंचा सकते हैं तो 18 फीसद जीएसटी के हिसाब से कितने करोड़ रुपये आएंगे। परंतु अधिकारियों को इससे कोई लेना देना नहीं है। सफेदा व पोपलर पर ही लगता है जीएसटी :

सरकार की तरफ से पोपलर व सफेदा की लकड़ी पर ही जीएसटी लगाया जाता है। यह अधिकतम 18 फीसद है। इसके अलावा किसी ओर लकड़ी पर जीएसटी नहीं लगता। यहां तो केवल पोपलर व सफेदा पर लग रही जीएसटी का हिसाब किताब नहीं हो रहा। यदि कई तरह की लकड़ी पर जीएसटी लगता तो संबंधित विभागों के अधिकारियों को इसे संभालना ही मुश्किल हो जाता। यदि अधिकारी चाहें तो सड़कों पर खड़ी रहने वाली लकड़ी से भरी ट्रालियों के संचालकों से सवाल जवाब कर सकते हैं। उनसे पूछा जा सकता है कि क्या वह पहले लक्कड़ मंडी में इसका रिकार्ड दर्ज करवा कर आए भी हैं या नहीं। ढाई लाख क्विटल से अधिक आती है लकड़ी :

कुछ साल पहले मार्केट कमेटी, सेल टैक्स, वन विभाग समेत कई विभागों के अधिकारियों ने लकड़ी लेकर आने वाली ट्रालियों का सर्वे कराया था। जिसमें पता चला था कि जिले में रोजाना ढाई लाख क्विटल से अधिक लकड़ी आती है। अब तो इसमें ओर भी ज्यादा इजाफा हो गया होगा। लकड़ी बढ़ी है तो मार्केट फीस व जीएसटी भी बढ़नी चाहिए। परंतु अधिकारियों की सुस्ती सरकारी खजाने पर भारी पड़ रही है। चेकिग करते रहते हैं : अशोक पांचाल

डीईटीसी (डिस्ट्रिक्ट एक्साइज एंड टैक्सेशन कमिश्नर) एक्साइज अशोक पांचाल का कहना है जो लकड़ी कहीं से बिकने आ रही है उसे लक्कड़ मंडी में एंट्री करने से पहले कहीं नहीं रोक सकते। मंडी में जाने के बाद वह कहां लकड़ी लेकर जा रहा है उसके बाद ही उसे रोक कर चैक किया जा सकता है। इसकी चेकिग होती रहती है। फिर भी वह मार्केट कमेटी को पत्र लिख कर रिकार्ड मंगवाएंगे कि कितनी लकड़ी मंडी में आ रही है। कोई जीएसटी की चोरी कर रहा है तो उसके खिलाफ कार्रवाई करेंगे।


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