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प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाने का चला ट्रेंड, इसलिए सरकारी में घट रहे बच्चे

प्राइवेट स्कूल में बच्चे को पढ़ाने का ट्रेंड चल पड़ा है। साथ ही लोगों में धारणा बन गई है कि सरकारी स्कूलों में जो टीचर लगे हुए हैं वे बच्चों को पढ़ाने की बजाय सारा दिन बातों में ही निकाल देते हैं।

By JagranEdited By: Published: Thu, 23 Jan 2020 06:36 AM (IST)Updated: Thu, 23 Jan 2020 06:36 AM (IST)
प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाने का चला ट्रेंड, इसलिए सरकारी में घट रहे बच्चे
प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाने का चला ट्रेंड, इसलिए सरकारी में घट रहे बच्चे

जागरण संवाददाता, यमुनानगर :

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बच्चा अच्छे स्कूल में पढ़ लिखकर बड़ा अफसर बने, यही सोचकर लोगों ने उन्हें सरकारी स्कूलों में पढ़ाना कम कर दिया है। अब प्राइवेट स्कूल में बच्चे को पढ़ाने का ट्रेंड चल पड़ा है। दूसरा लोगों में धारणा बन गई है कि सरकारी स्कूलों में जो टीचर लगे हुए हैं वे बच्चों को पढ़ाने की बजाय सारा दिन बातों में ही निकाल देते हैं। वे चाहकर भी सरकारी स्कूलों के टीचरों पर अपना विश्वास कायम नहीं कर पा रहे हैं। यही वजह है कि घटती संख्या के कारण शिक्षा विभाग के पास इन स्कूलों को बंद या फिर समायोजित करने के सिवा कोई दूसरा रास्ता नहीं बचा है। आठवीं कक्षा का बोर्ड खत्म करना भी बड़ी वजह :

तत्कालीन सरकार ने आठवीं कक्षा का बोर्ड खत्म कर दिया था। अब आठवीं तक बच्चे को फेल करने का ही प्रावधान नहीं है। जानकार मानते हैं कि बोर्ड खत्म होने से बच्चों ने पढ़ना छोड़ दिया। इसका फायदा राजकीय स्कूलों में पढ़ाने वाले टीचरों को मिला। क्योंकि कोई बच्चा फेल नहीं होगा इसलिए टीचरों ने उन्हें पढ़ाना ही छोड़ दिया। कुछ साल पहले तक प्राइमरी स्कूलों में स्टॉफ पूरा नहीं था। शिक्षा विभाग के अनुसार वर्तमान में कोई प्राइमरी स्कूल ऐसा नहीं जिसमें जेबीटी स्टाफ न हो। यहां तक की टीचर सरप्लस हो गए हैं। ऐसे में लोगों की धारणा वही है कि राजकीय स्कूलों में पढ़ाने के लिए टीचर तो हैं नहीं, इसलिए वे बच्चे का भविष्य खराब करने के लिए उन्हें वहां क्यों भेजे। इससे अच्छा है वे बच्चे को प्राइवेट स्कूल में भेज दें। स्कूल बंद होना बना गांव की प्रतिष्ठा का सवाल :

राजकीय स्कूलों को बंद होने से बचाना गांव की प्रतिष्ठा का सवाल बन गया है क्योंकि एक बार 25 से कम संख्या वाले स्कूल बंद हो गए तो दोबारा शुरू कराने के लिए लोगों को सौ पापड़ बेलने पड़ेंगे। अफसरों से लेकर नेताओं तक के चक्कर काटने पड़ेंगे। छछरौली के सीपियांवाला गांव के जीपीएस का नाम मई 2019 में बंद होने वाले स्कूलों की लिस्ट में आया था। स्कूल को बंद होने से बचाने के लिए पूरे गांव ने जोर लगाया। साथ लगते चुहड़पुर गांव से बच्चों को हटाकर सीपियांवाला में दाखिला कराना पड़ा। अब इस स्कूल में 35 बच्चे हैं। कई बच्चों को प्राइवेट स्कूल से हटाया गया। स्कूलों में सुधार की जरूरत है : विरेंद्र सिंह

सीपियांवाला गांव के सरपंच विरेंद्र सिंह ने बताया कि प्राइवेट स्कूल में यदि बच्चा एक दिन होमवर्क करके न ले जाए तो टीचर घर पर नोटिस भेज देते हैं। लेकिन सरकारी स्कूलों में ऐसा नहीं है। लोगों को राजकीय टीचरों पर विश्वास ही नहीं है। इसलिए भले ही परिवार की आर्थिक हालत ठीक न हो लेकिन वह मोटी फीस देकर बच्चे को प्राइवेट स्कूल में भेजता है। हर माता-पिता की ख्वाहिश होती है कि उनका बच्चा अच्छे स्कूल में पढ़कर अच्छी नौकरी करे। इसलिए सरकार को राजकीय स्कूलों में सुधार करने की जरूरत है। टीचरों की कमियों से प्राइवेट स्कूल खुले : कृष्ण लाल

गांव मारवा कलां के सरपंच कृष्ण लाल ने बताया कि राजकीय स्कूलों के टीचरों ने बच्चों को नहीं पढ़ाया। इसकी बजाय वे उन्हें घर पर ट्यूशन पढ़ाते थे। टीचरों की कमी के कारण ही आज इतनी संख्या में प्राइवेट स्कूल खुले हैं। दूसरा प्राइवेट स्कूल में बच्चे को पढ़ाने का ट्रेंड चल पड़ा है।


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