डिप्लोमा न डिग्री, वो दे रहे वाहन प्रदूषण जांच का प्रमाणपत्र
प्रदूषण जांच केंद्रों पर वायु प्रदूषण की जांच के नाम पर महज खानापूर्ति की जा रही है।
जागरण संवाददाता, यमुनानगर : प्रदूषण जांच केंद्रों पर वायु प्रदूषण की जांच के नाम पर महज एक औपचारिकता हो रही है। इन केंद्रों पर जो लोग वाहनों का प्रमाण पत्र बना रहे हैं उनके पास न तो कोई डिग्री है और न ही डिप्लोमा। कई जगह तो 10वीं पास युवक भी नहीं है। उन्हें तो इतना भी नहीं पता डीजल व पेट्रोल के वाहन द्वारा छोड़े जा रहे धुंए का स्तर क्या होना चाहिए। यही वजह है कि वह भी प्रमाण पत्र बनाने में ज्यादा समय नहीं लगाते। क्योंकि उन्हें तो केवल परिवहन विभाग के पोर्टल पर गाड़ी का रजिस्ट्रेशन नंबर डालना होता है। उन्हें बताया गया है कि प्रमाण पत्र बनाते समय प्रदूषण का स्तर कितना रखना है। इधर गाड़ी के नंबर प्लेट की फोटो वेब कैमरे से खींची नहीं की वाहन का प्रदूषण प्रमाण पत्र आपके हाथ में। लाइसेंस के लिए चाहिए डिग्री या डिप्लोमा
प्रदूषण जांच केंद्र खोलने के लिए आवेदक के पास ऑटोमोबाइल इंजीनियरिग, मोटर मैकेनिक्स, ऑटो मैकेनिक्स, स्कूटर मैकेनिक्स, डीजल मैकेनिक्स या फिर आइटीआइ से प्रमाणित सर्टिफिकेट होना चाहिए। प्रदूषण जांच केंद्र के केबिन की लंबाई 2.5 मीटर, चौड़ाई दो मीटर, ऊंचाई दो मीटर होनी चाहिए। केबिन का रंग पीला होना चाहिए। इसके साथ ही इस पर प्रदूषण केंद्र का लाइसेंस नंबर लिखा होना चाहिए। प्रदूषण का स्तर जांचने के लिए इसमें कंप्यूटर, यूएसबी, वेब कैमरा, इंकजेट प्रिटर, पावर सप्लाई, इंटरनेट कनेक्शन, स्मोक एनालाइजर भी होना जरूरी है। ज्यादातर केंद्रों पर अनपढ़ कर्मचारी
जिले में 78 प्रदूषण जांच केंद्र हैं। जिन लोगों ने प्रदूषण जांच केंद्र ले रखे हैं वह खुद वाहनों के प्रदूषण की जांच नहीं करते। उन्होंने छह- सात हजार मासिक वेतन पर 10वीं, 12वीं पास कर्मचारियों के पास रखा है। उनके पास कोई डिप्लोमा भी नहीं है। जिन्हें केवल गाड़ी का पंजीकृत नंबर डालना है। जो काम एक डिग्री धारक को करना चाहिए वह एक अनपढ़ कर्मचारी कर रहा है। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि प्रदूषण जांच के नाम किस तरह का खेल चल रहा है। इसके लिए आरटीए कार्यालय के अधिकारी भी कम जिम्मेदार नहीं है। क्योंकि वह इनकी जांच ही नहीं करते। यही वजह है कि धुंए का प्रदूषण खत्म होने का नाम नहीं ले रहा। यदि इनकी जांच की जाए तो 10 फीसद जांच केंद्र भी मानकों पर खरे नहीं उतर पाएंगे। ट्रैफिक पुलिस के पास भी प्रदूषण जांच के लिए कोई उपकरण नहीं है। तब पुलिस को मजबूरी में वाहन चालक को प्रमाण पत्र के आधार पर ही छोड़ना पड़ता है। प्रदूषण ने निकाल रखा लोगों का दम :
शहर के बढ़ते प्रदूषण ने लोगों का दम निकाल रखा है। इसके लिए फैक्ट्रियों के धुंए के साथ-साथ वाहनों से निकलने वाला काला धुंआ भी कम जिम्मेदार नहीं है। कई बार तो जिले का एयर क्वालिटी इंडेक्स 350 से ऊपर हो जाता है। जिससे लोगों को कई तरह की बीमारियां लग जाती हैं। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारी व कर्मचारी तो कभी फील्ड में लोगों को नजर ही नहीं आते। प्रदूषण फैलाने वाले कितने वाहन चालकों पर कार्रवाई की कभी इसे सार्वजनिक नहीं किया जाता। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड वायु, ध्वनि व जल प्रदूषण को कम करने की दिशा में कोई काम करता नजर नहीं आ रहा।