प्रभु भक्ति करना ही हमारा उद्देश्य : अनीता
जागरण संवाददाता जगाधरी दिव्य ज्योति जागृति संस्थान की ओर से हनुमान गेट जगाधरी स्थित आश्रम मे
जागरण संवाददाता, जगाधरी : दिव्य ज्योति जागृति संस्थान की ओर से हनुमान गेट जगाधरी स्थित आश्रम में आयोजित साप्ताहिक सत्संग कार्यक्रम के दौरान अनीता भारती ने कहा कि एक जीवात्मा 84 लाख योनियों में भ्रमण करने को विवश है, क्योंकि उसके पास केवल और केवल भोगने की स्वतंत्रता है। वह कर्म करने के लिए स्वतंत्र नहीं है। यह स्वतंत्रता केवल परमात्मा की ओर से मानव को प्रदान की गई है। इस स्वतंत्रता के कारण ही मानव तन को सभी से श्रेष्ठ तन की संज्ञा दी गई है, परंतु मानव अपने जीवन काल के दौरान ऐसा कोई कर्म नहीं कर रहा, जिससे यह संकेत मिल सके कि वे वास्तव में श्रेष्ठ जीवन का अधिकारी है। अगर आज इस और दृष्टि डालने का प्रयास करें या मानव के कृत्यों को देखें तो आज मानव वही कृत्य कर रहा है। जो एक पशु और पक्षी अपने जीवन काल में करते हैं। खाना, पीना, सोना और घर गृहस्थी का पालन पोषण करना। क्या इन कार्यो को करने के कारण ही यह श्रेष्ठ कहलाता है। नहीं सज्जनों। ऐसा कदापि नहीं है। इसकी प्राप्ति का उद्देश्य क्या है। इसका उत्तर हम हमारे संतों से जानने का प्रयास करते हैं। हमारे संत कहते हैं। नर तन पाए यत्न कर, ऐसा जिससे वह करतार मिले। ऐसी उत्तम जून पदार्थ नहीं बारम्बार मिले। यानी कि इस तन की प्राप्ति का एक ही उद्देश्य है। वह है परमात्मा की भक्ति। परंतु आज के परिदृश्य में इंसान भक्ति भी करने का अगर यत्न करता है तो मात्र इसलिए कि उसके जीवन में कहीं दुख ना आए। उसका सांसारिक यश सम्मान कहीं समाप्त न हो जाए। परंतु इन सबके बावजूद वह अशंात और दुखी है। और इसी के निवारण के लिए वह सभी प्रकार के यत्नों को कर रहा है। वह सहारा लेता है, कभी शराब का कभी किसी अन्य नशे की वस्तु का। परंतु सभी और उसे निराशा ही मिलती है, क्योंकि वह आनंद की प्राप्ति भौतिक वस्तुओं को खोज रहा है।