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कथा की सार्थकता तभी सिद्ध होगी, जब इसे हम अपने जीवन व व्यवहार में धारण करेंगे : आचार्य

श्री सिद्ध बाबा बालक नाथ मंदिर में चल रही श्रीमदभागवत कथा में प्रवचन करते हुए आचार्य जयप्रकाश महाराज ने कहा कि कथा की सार्थकता तभी सिद्ध होगी, जब इसे हम अपने जीवन व व्यवहार में धारण करेंगे।

By JagranEdited By: Published: Thu, 27 Dec 2018 12:12 AM (IST)Updated: Thu, 27 Dec 2018 12:12 AM (IST)
कथा की सार्थकता तभी सिद्ध होगी, जब इसे हम अपने जीवन व व्यवहार में धारण करेंगे : आचार्य

जागरण संवाददाता, यमुनानगर :

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श्री सिद्ध बाबा बालक नाथ मंदिर में चल रही श्रीमदभागवत कथा में प्रवचन करते हुए आचार्य जयप्रकाश महाराज ने कहा कि कथा की सार्थकता तभी सिद्ध होगी, जब इसे हम अपने जीवन व व्यवहार में धारण करेंगे। यदि ऐसा नहीं करते, तो फिर यह केवल मनोरंजन व कानों के रस तक ही सीमित रह जाएगी। भागवत कथा से मन का शुद्धिकरण होता है। इससे संशय दूर होता है और शांति व मुक्ति मिलती है। इसलिए सद्गुरु की पहचान कर उनका अनुकरण एवं निरंतर हरि स्मरण,भागवत कथा श्रवण करने की जरूरत है।

उन्होंने कहा कि श्रीमदभागवत कथा श्रवण से जन्म जन्मांतर के विकार नष्ट होकर प्राणी मात्र का लौकिक व आध्यात्मिक विकास होता है। जहां अन्य युगों में धर्म लाभ एवं मोक्ष प्राप्ति के लिए कड़े प्रयास करने पड़ते हैं, कलयुग में कथा सुनने मात्र से व्यक्ति भवसागर से पार हो जाता है। सोया हुआ ज्ञान वैराग्य कथा श्रवण से जाग्रत हो जाता है। कथा कल्पवृक्ष के समान है, जिससे सभी इच्छाओं की पूर्ति की जा सकती है। भागवत पुराण हिन्दुओं के 18 पुराणों में से एक है। इसे श्रीमछ्वागवत या केवल भागवतम् भी कहते हैं। इसका मुख्य विषय भक्ति योग है, जिसमें श्रीकृष्ण को सभी देवों का देव या स्वयं भगवान के रूप में चित्रित किया गया है। इस पुराण में रस भाव की भक्ति का निरूपण भी किया गया है। भगवान की विभिन्न कथाओं का सार श्रीमछ्वागवत मोक्ष दायिनी है। इसके श्रवण से परीक्षित को मोक्ष की प्राप्ति हुई। इस मौके पर आचार्य वीरेंद्र प्रसाद, सुरेंद्र प्रसाद, जगतराम, वेदप्रकाश, राजेश कुमार भी मौजूद रहे।


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