ध्यान करने से होते तनावमुक्त : अभेदानंद
समाज में तनाव ग्रस्त जीवन से मुक्ति पाने के लिए कई ध्यान पद्धतियां प्रचलित हो चुकी हैं। इनसे कुछ हद तक तनाव से मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं, लेकिन अपने उच्चतम लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाते। यह शब्द स्वामी अभेदानंद ने जिला जेल में कैदियों को संबोधित करते हुए कहे।
जागरण संवाददाता, यमुनानगर : समाज में तनाव ग्रस्त जीवन से मुक्ति पाने के लिए कई ध्यान पद्धतियां प्रचलित हो चुकी हैं। इनसे कुछ हद तक तनाव से मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं, लेकिन अपने उच्चतम लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाते। यह शब्द स्वामी अभेदानंद ने जिला जेल में कैदियों को संबोधित करते हुए कहे।
स्वामी ने कहा कि ध्यान का हमारे जीवन में बहुत बड़ा महत्व है। ध्येय के बिना ध्यान, साधना इंसान के जीवन में उस घड़ी की तरह होती है। जिसकी सुई अपने केंद्र ¨बदु से टूट चुकी हो। ध्यान की पद्धति सीखने के लिए पूर्ण सतगुरु की शरण चाहिए। जिसके मार्गदर्शन में परम लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं। वास्तव में ध्यान साधना तभी होती है जब ध्येय व ध्याता दोनों मौजूद हों। ध्येय के बिना की गई ध्यान साधना व्यर्थ है। लक्ष्य ¨बदू के बिना तीरंदाज भी निशाना नहीं लगा सकता। लक्ष्य सामने रखकर ही ध्यान साधना करनी होगी। अपने ही अंत:करण में परम तत्व की अनुभूति करेंगे।
उन्होंने कहा कि पुरातन शास्त्रों के अनुसार संपूर्ण जगत में साधने के योग्य केवल वह परम सत्ता ही है। जो प्रकाश रूप में सभी जीवों के अंदर वास करता है। आत्मा का निवास मस्तक के बीचोंबीच त्रिकुटी में स्थित है। जब तक सद्गुरु की कृपा से ब्रहम ज्ञान की प्राप्ति नहीं होती, वह दिव्य नूर प्रकट नहीं होता। सतगुरु कृपा का हस्त हमारे मस्तक पर रखकर संपूर्ण ब्रह्मांड को घट में दिखाते हैं, तभी वास्तविकता का ज्ञान हो जाता है। परम लक्ष्य को प्राप्त कर लेते हैं। स्वामी श्रद्धानंद ने प्रेरणादायक भजन सुनाए। मुख्य रूप से जेल अधीक्षक रतन ¨सह व उपअधीक्षक रेशम ¨सह उपस्थित थे।