अब किसी के कहने से नहीं, वोट पर निर्णय खुद लेते मतदाता
मेरे हिसाब से राजनीतिक में निजी स्वार्थ नहीं होना चाहिए। सभी के हितों की बात करनी चाहिए। राजनीति में मेरी दिलचस्पी कम रही। कभी-कभार कामकाज से फुर्सत मिलती थी तो किसी नेता का भाषण सुन लेते थे। नेता के भाषण में दम होता था।
मेरे हिसाब से राजनीतिक में निजी स्वार्थ नहीं होना चाहिए। सभी के हितों की बात करनी चाहिए। राजनीति में मेरी दिलचस्पी कम रही। कभी-कभार कामकाज से फुर्सत मिलती थी तो किसी नेता का भाषण सुन लेते थे। नेता के भाषण में दम होता था। जो वादा करते थे उसको निभाया जाता था। नेता जब गांव में आते थे तो माहौल ही कुछ और होता था। उस समय इतना दिखावा नहीं था। अब दिखावा ज्यादा हो गया है। आज वादा करते हैं, लेकिन कल भूल जाते हैं।
हमारे समय और अब की राजनीतिक में थोड़ा अंतर आया है। किस नेता को वोट दी जानी है, वह भी परिवार का मुखिया ही तय करता था। बड़े कुनबों पर नेताओं की नजर रहती थी। मुखिया को काबू कर लिया तो समझो परिवार की सभी वोटें काबू हो गई। अब ऐसा नहीं है। हर वोटर अपनी मर्जी से वोट देता है। पत्नी पति के दबाव में वोट नहीं देती। जहां उसको अच्छा लगता है, वहीं वोट डालती है। होना भी ऐसा ही चाहिए। क्योंकि हर व्यक्ति को अपने मत का सही प्रयोग करने का अधिकार है। सभी पहलुओं को मद्देनजर रख ही अपने मत का प्रयोग करना चाहिए। बस चुनाव के दिनों में मतदाताओं से प्रेम जताया जाता है। नेता जनता के बीच जाते हैं। हाल चाल पूछते हैं, लेकिन जीतने के बाद क्षेत्र में शक्ल नहीं दिखाते। जनता उनका चेहरा भी भूल जाती है। ऐसा नहीं होना चाहिए। जो आचार-व्यवहार चुनाव के दौरान होता है, वही बाद में भी होना चाहिए।
राम सिंह, गांव नागल, उम्र 82 वर्ष
व्यवसाय : खेतीबाड़ी।