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बिना ईटीपी के चल रहे करनाल और यमुनानगर के 250 अस्पतालों को नोटिस

जागरण संवाददाता, यमुनानगर : जिला के सरकारी व प्राइवेट जिला के सरकारी व प्राइवेट अस्पतालों में लिक्विड वेस्ट को रोकने के लिए एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट (ईटीपी) नहीं है। जबकि ईटीपी को लेकर केंद्र सरकार ने स्पष्ट और सख्त गाइडलाइन बनाई है। आधा दर्जन प्राइवेट अस्पतालों में ही ईटीपी लगाया गया है। अस्पतालों का लिक्विड वेस्ट बिना ट्रीट हुए ही सीवरेज में जा रहा है। यही पानी नालों से होता हुआ सीधे पश्चिमी यमुना नहर में जा रहा है जिसका सीधा असर इंसानों के स्वास्थ्य पर पड़ता है।

By JagranEdited By: Published: Thu, 21 Jun 2018 01:14 AM (IST)Updated: Thu, 21 Jun 2018 01:14 AM (IST)
बिना ईटीपी के चल रहे करनाल और यमुनानगर के 250 अस्पतालों को नोटिस

जागरण संवाददाता, यमुनानगर : जिला के सरकारी व प्राइवेट अस्पतालों में लिक्विड वेस्ट को रोकने के लिए एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट (ईटीपी) नहीं है। जबकि ईटीपी को लेकर केंद्र सरकार ने स्पष्ट और सख्त गाइडलाइन बनाई है। आधा दर्जन प्राइवेट अस्पतालों में ही ईटीपी लगाया गया है। अस्पतालों का लिक्विड वेस्ट बिना ट्रीट हुए ही सीवरेज में जा रहा है। यही पानी नालों से होता हुआ सीधे पश्चिमी यमुना नहर में जा रहा है जिसका सीधा असर इंसानों के स्वास्थ्य पर पड़ता है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों ने भी इन अस्पतालों पर कोई कार्रवाई नहीं की। अब बोर्ड ने खानापूरी करने के लिए जिला करनाल के 110 व यमुनानगर के 140 से अधिक अस्पतालों को कारण बताओ नोटिस जारी किया है।

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पहले ईटीपी उन्हीं अस्पतालों में लगाना अनिवार्य था जो 100 बैड के थे, लेकिन सरकार ने बायो मेडिकल वेस्ट रूल 2016 में संशोधन कर इसे फिर से लागू किया गया। ईटीपी लगाना हर उस अस्पताल के लिए अनिवार्य कर दिया गया जो एक बैड का ही क्यों न हो। इसके अलावा उसमें सैंपल जांचने के लिए लैब व आप्रेशन थियेटर हो। सरकार ने अस्पतालों में ईटीपी लगाना तो जरूरी कर दिया लेकिन आज तक एक भी सरकारी अस्पताल में ईटीपी नहीं लगा पाई। जबकि सरकारी अस्पताल में टीबी, दमा, कैंसर, शुगर, इंफेक्शन समेत हर तरह के मरीज जाते हैं। सरकारी अस्पताल यमुनानगर में ही हर रोज एक हजार से ज्यादा मरीजों की ओपीडी होती है। जबकि दर्जनों लोगों के आप्रेशन भी होते हैं। अस्पताल में बनी दो लैब में सैकड़ों लोगों के सैंपल लेकर उनकी जांच की जाती है। इसके बावजूद यहां पर आज तक ईटीपी नहीं लगाया जा सका। ऐसा ही हाल जगाधरी के अस्पताल का भी है। इस तरह सरकारी अस्पतालों का लिक्विड मेडिकल वेस्ट भी बिना ट्रीट हुए सीवरेज में जा रहा है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पास कुल 149 अस्पताल रजिस्टर्ड हैं।

विशेषज्ञ बोले, बिल में हैं कई खामियां

पर्यावरणविद डॉ. अजय गुप्ता का कहना है कि बायो मेडिकल रूल 2016 में काफी खामियां हैं। सरकार ने इस बिल के माध्यम से सभी छोटे-बड़े अस्पतालों को एक ही लाइन में खड़ा कर दिया। 100 बैड वाले अस्पताल में ईटीपी लगाना जरूरी है। क्योंकि वहां हर रोज सैकड़ों मरीज आते हैं। उनका मलमूत्र, बलगम,मवाद, खून, केमिकल किसी भी सर्जन से निकलने वाली तरल गंदगी व अन्य संक्रमित तरल पदार्थ निकले हैं। जबकि काफी अस्पताल केवल ऐसे हैं जिनमें ओपीडी ही होती है। अगर उनके पास एक-दो बैड है तो वे उसका उपचार करने के बाद उन्हें छुट्टी दे देते हैं। लिक्विड वेस्ट को एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट (ईटीपी) लगाकर ट्रीट किया जाता है। ट्रीटमेंट से संक्रमण नष्ट होता है। प्रदूषित वेस्ट शुद्ध हो जाता है जो पौधों या बगीचों में पानी देने के काम में लिया जा सकता है। इसलिए सरकार को पहले एक-एक अस्पताल का आंकलन करना चाहिए कि क्या वहां पर ईटीपी लगाने की जरूरत है या नहीं। इसलिए इस बिल में सुधार की जरूरत है।

घरों में चल रहे कलेक्शन सेंटर

अस्पतालों में तो ईटीपी है ही नहीं लेकिन शहर में घरों के अंदर सैंपल कलेक्शन सेंटर व लैब चल रही है। सैंपल की जांच के बाद खून, बलगम को ऐसे ही पानी में बहा दिया जाता है। इसलिए इन लैब पर न तो प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड कार्रवाई कर रहा है और न ही स्वास्थ्य विभाग।

नोटिस जारी किए हैं : शर्मा

प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी रा¨जद्र शर्मा ने बताया कि करनाल व यमुनानगर के अस्पतालों को ईटीपी नहीं लगाने के कारण नोटिस जारी किया है। यमुनानगर में केवल छह-सात प्राइवेट अस्पतालों में ही ईटीपी लगा है। बायो मेडिकल वेस्ट रूल 2016 के मुताबिक चाहे एक बैड का अस्पताल हो वहां ईटीपी लगाना जरूरी है।

विभाग से प्रपोजल मांगा है : दहिया

कार्यवाहक सिविल सर्जन डॉ. विजय दहिया ने बताया कि सरकारी अस्पताल में ईटीपी लगाने के लिए स्वास्थ्य विभाग को प्रपोजल भेजा हुआ है। इस पर 15 से 20 लाख रुपये का खर्च आना है। मंजूरी मिलते ही इसका काम शुरू कर देंगे।


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