Move to Jagran APP

मंदी से मेटल उद्योग की चमक फीकी

पोपीन पंवार यमुनानगर प्लाईवुड उद्योग के साथ-साथ यहां के मेटल उद्योग की चमक भी फीकी पड़

By JagranEdited By: Published: Thu, 29 Aug 2019 08:56 AM (IST)Updated: Fri, 30 Aug 2019 06:44 AM (IST)
मंदी से मेटल उद्योग की चमक फीकी

पोपीन पंवार, यमुनानगर:

loksabha election banner

प्लाईवुड उद्योग के साथ-साथ यहां के मेटल उद्योग की चमक भी फीकी पड़ती जा रही है। 15 सौ करोड़ रुपये की टर्नओवर वाले इस कारोबार के कदम लड़खड़ा गए हैं। मांग नहीं होने के कारण उत्पादक भी आधा रह गया है। तैयार माल को खरीददार नहीं मिल रहे हैं। व्यवसायी इसके लिए नोटबंदी और जीएसटी को जिम्मेदार मान रहे हैं। रही सही कसर देश के विभिन्न हिस्सों में आई बाढ़ ने पूरी कर दी है। ट्विन सिटी में छोटी-बड़ी 1050 इकाइयां और 600 दुकानें हैं। ढाई लाख लोग व्यवसाय से जुड़े हैं। उत्तराखंड और हिमाचल की तर्ज पर मिले राहत : एसोसिएशन

द मेटल मैन्यूफैक्चरर्स एसोसिएशन के महासचिव सुंदर लाल बतरा का कहना है कि मेटल व्यापार बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। मेटल में सेल पर 12 फीसद और कच्चे माल पर 18 फीसद जीएसटी देना पड़ रहा है। छह प्रतिशत जीएसटी फंसा है। अधिकारी व्यापारियों की बात नहीं सुनते। जीएसटी को कम किया जाए। बिजली की प्रति यूनिट आठ रुपये है। इसका भार भी पड़ रहा है। हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड की तरह राहत दी जाए। बाढ़ आने से व्यापारियों की पेमेंट फंसी हुई है। सरकार व्यापारियों के लिए विशेष पैकेज दे। घर-घर होता है बर्तन बनाने का काम

जगाधरी मेटल नगरी में हर घर में बर्तन बनाने का काम चलता है। छोटी इंडस्ट्री को बढ़ाने के लिए बैंकों से लोन आसानी से नहीं मिल पाता। अगर मिलता है तो इसका ब्याज भी कार और हाउस लोन से ज्यादा है। करोड़ों रुपये का टर्नओवर है। सरकार को भी अच्छा राजस्व मिल रहा है। इसका कुछ हिस्सा जिले में खर्च हो जाए तो इंडस्ट्री और शहर में बाहर आ सकती है। विदेशों में भी यहां के बर्तनों की खनक

जगाधरी नगरी में तैयार होने वाले बर्तन देश के अलावा अमेरिका, साउदी अरब, दुबई, ईरान, कुवैत, तंजानिया, काबुल, जर्मनी, यूएसए, स्पैन सहित अन्य देशों में जाते हैं। यहां भी मंदी का असर बताया जा रहा है। इनसेट

माल को नहीं मिल रहे खरीदार

व्यापारी अमृत पाल रिपी का कहना है कि बाढ़ के कारण हालात ज्यादा खराब हुए हैं। माल तैयार है, लेकिन खरीददार नहीं मिल रहे हैं। पेमेंट फंसी है। ऐसी स्थिति में फैक्ट्रियां बंद होने के कगार पर हैं। खाली बैठी लेबर को पैसे देने पड़ रहे हैं। ठेके पर काम करने वाली लेबर समक्ष भी रोजी-रोटी का संकट हो गया है। सरकार की नीतियां जिम्मेदार

व्यवसायी देवेंद्र सिंह का कहना है कि उद्योग जगत में मंदी का कारण सरकार की नीतियां हैं। जीएसटी और नोटबंदी का असर पूरी तरह देखा जा रहा है। दीवाली का सीजन नजदीक है। इन दिनों को व्यवसायियों पर सांस लेने का समय नहीं होता था, लेकिन अब हालात ये हैं कि सप्ताह में तीन दिन भी फैक्ट्री नहीं चल रही है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.