नमी के नाम पर किसानों से लूट, रेट में 100-150 प्रति ¨क्वटल कटौती
बारिश व ओलावृष्टि की मार झेल रहे किसानों की मंडियों में भी जेबें कट रही हैं। नमी व डैमेज का हवाला देकर रेट में 100 से 250 रुपये की कटौती की जा रही है। एक नहीं बल्कि सभी मंडियों में यह खेल हो रहा है। कॉमन धान का रेट 1750 रुपये प्रति ¨क्वटल व सुपर फाइन का 1770 रुपये प्रति ¨क्वटल निर्धारित है, जबकि किसान को केवल 1500-1600 रुपये प्रति ¨क्वटल रेट मिल रहा है।
जागरण संवाददाता, यमुनानगर : बारिश व ओलावृष्टि की मार झेल रहे किसानों की मंडियों में भी जेबें कट रही हैं। नमी व डैमेज का हवाला देकर रेट में 100 से 250 रुपये की कटौती की जा रही है। एक नहीं बल्कि सभी मंडियों में यह खेल हो रहा है। कॉमन धान का रेट 1750 रुपये प्रति ¨क्वटल व सुपर फाइन का 1770 रुपये प्रति ¨क्वटल निर्धारित है, जबकि किसान को केवल 1500-1600 रुपये प्रति ¨क्वटल रेट मिल रहा है। किसान पशोपेश में हैं। अगर वे विरोध करते हैं तो धान खरीद में आनाकानी होगी या खरीद में जानबूझकर देरी की जाएगी। ऐसी हालत में जिस रेट में धान बिक रही है, उसी रेट में बेचना उनकी मजबूरी बन चुकी है। इनसेट
किसान पर दोहरी मार
धान की फसल को लेकर किसान दोहरी मार झेल रहा है। ओलावृष्टि के कारण धान खेतों में ही झड़ चुकी है। कुछ फसल खेतों में चादर की तरह बिछी हुई है। ऐसी स्थिति में दाने का बदरंग होना स्वाभाविक है, लेकिन मंडियों में इस मजबूरी को खूब कैश किया जा रहा है। पहले तो दो-दो दिन तक धान सड़कों पर बिछा दी जाती है। फिर नमी व डैमेज का हवाला देकर रेट कम दिया जा रहा है। जिले के अनाज मंडियों में इन दिनों सड़कों पर ही धान बिखरी पड़ी है। एक-एक दाना सुखाया जा रहा रहा है। बावजूद इसके लिए नमी के नाम पर जेबें ढील हो रही हैं। इनसेट
17 प्रतिशत तक छूट
नियमानुसार, यदि धान में नमी की मात्रा 17 प्रतिशत है तो रेट पूरा दिया जाता है। इसके बाद प्रतिशत के हिसाब से रेट में कटौती शुरू हो जाती है। एक प्रतिशत नमी के सीधे 18 रुपये कट जाते हैं। यदि आढ़तियों की सुनें तो नमी या कंबाइन से कटी फसल में हुई टूट-फूट के कारण भी रेट कम लगता है। यदि फसल हाथ से कटी है और अच्छी तरह सूखी हुई है तो 18 प्रतिशत नमी तक भी पूरा भाव दिया जा रहा है। इनसेट
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नमी के नाम अनाज मंडियों में किसानों को लूटा जा रहा है। प्रति ¨क्वटल 1500 से 1600 रुपये दिया जा रहा है, जबकि 1750 व 1770 रुपये रेट निर्धारित है। किसी ढेरी में नमी बता दी जाती है तो किसी में दाना बदरंग। इस बार किसान पर कुदरत की मार पड़ी है। कम से कम सरकार को इनकी मजबूरी समझनी चाहिए।
विकास राणा, युवा प्रदेशाध्यक्ष, भाकिसं। इनसेट
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जब से भाजपा की सरकार आई है तब से मंडियों में नमी के नाम पर किसानों के साथ लूट हो रही है। बारिश व ओलावृष्टि के कारण फसल जमीन पर बिछ चुकी है। यदि थोड़ा-बहुत काला दाना है तो इसमें किसान का क्या कसूर है? सरकार को किसान की मजबूरी समझनी चाहिए और फसल का पूरा भाव दिया जाना चाहिए।
प्रताप ¨सह खजूरी, प्रदेश उपाध्यक्ष भाकिसं। इनसेट
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ऐसा नहीं है। यदि धान में नमी की मात्रा 17 प्रतिशत है तो रेट पूरा दिया जा रहा है। हाथ से कटी धान तो 18-19 प्रतिशत नमी तक पूरे रेट में खरीदी जा रही है। कंबाइन से कटने के बाद चावल ज्यादा कट जाता है। यदि सरकार मानकों में कुछ छूट देती तो इसका फायदा किसानों को मिल सकता था।
शिव कुमार संधाला, प्रधान, आढ़ती एसोसिएशन