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नेताओं की लैन लग री.. अर चुनाव लड़न आवां बाहर ते, म्हारे आले तुर्रमखां तो बस न्यूई रै गे

नेता जी इन दिनों सियासी मैदान में हैं। वादे कर रहे हैं। उपलब्धियां गिना रहे हैं। कहीं विकास की दुहाई दी जा रही है तो कहीं अनदेखी को मुद्दा बनाया जा रहा है।

By JagranEdited By: Published: Fri, 19 Apr 2019 01:24 AM (IST)Updated: Fri, 19 Apr 2019 01:24 AM (IST)
नेताओं की लैन लग री.. अर चुनाव लड़न आवां बाहर ते, म्हारे आले तुर्रमखां तो बस न्यूई रै गे
नेताओं की लैन लग री.. अर चुनाव लड़न आवां बाहर ते, म्हारे आले तुर्रमखां तो बस न्यूई रै गे

नेता जी इन दिनों सियासी मैदान में हैं। वादे कर रहे हैं। उपलब्धियां गिना रहे हैं। कहीं विकास की दुहाई दी जा रही है तो कहीं अनदेखी को मुद्दा बनाया जा रहा है। उधर, मतदाता भी पीछे नहीं है। हर पहलू पर चितन कर रहे हैं। सरकारी नौकरियों में पारदर्शिता की बात और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की साफ छवि भी जुबां पर है, लेकिन क्षेत्र की अनदेखी से नेता जी के प्रति नाराजगी भी है। सियासी पिच पर मतदाताओं फिल्डिंग को भांपने के लिए दैनिक जागरण संवाददाता संजीव कांबोज ने कुरुक्षेत्र लोकसभा के बड़े कस्बे रादौर की ओर रुख किया। बाईपास चौक तक धूल-मिट्टी का सामना करते हुए रादौर पहुंचे। बस स्टैंड से कुछ दूरी तय करने पर आमने-सामने बने दो नेताओं के कार्यालयों पर काफी रौनक थी। थोड़ा आगे बढ़ते हुए अनाज मंडी तक पहुंच गए। यहां सड़क पर बिखरे गेहूं को कैमरे में कैद करते हुए मेन बाजार में बैठे कुछ दुकानदारों से राम-राम हुई। बातों-बातों में राजनीतिक चर्चा शुरू हो गई। कोई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कसम खाने को तैयार नहीं तो किसी को कांग्रेस के खिलाफ सुनना गवारा नहीं। बात जब विकास पर आई तो जवाब एक ही था- विकास कार्य जरूर हुए, लेकिन अभी बहुत कुछ बाकी है। वोट मांगने आते हैं, बाद में नहीं दिखते

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दुकानदार वासुदेव सैनी, संजीव सैनी, गोल्डी, राज किशन शर्मा, अनुराग राणा, गणेश दास, विनोद कुमार, राजन अरोड़ा और विक्रम सिंह ने अब तक रहे सांसदों की ओर इशारा करते हुए कहा कि वोट मांगने जरूर आते हैं, लेकिन बाद में दर्शन तक नहीं होते। लोग तो अब उनकी शक्ल भी भूल गए हैं। सांसद राजकुमार सैनी सत्ता में रहे, लेकिन रोजगार के लिए कोई बड़ी परियोजना नहीं लाए। बस बातों-बातों में पांच साल निकाल गए। नेताओं की तो लैन, चुनाव लड़न आवैं बाहर ते

बातचीत के दौरान एक बुजुर्ग खुद को रोक नहीं पाए। दर्द जुबां पर आ ही गया। अपने लिहाज में बोले- रादौर मै तो नेताओं की लैन लग री..। एक पार्टी ते कई-कई तुर्रमखां पड़े। अर सभी अपणे आप में विधायक बणैं। अर भई रही इब तक की बात.. कतई किसी नेता ने मुढ़ कै नी देख्या। ईब जो विधायक जी हैं, उनते जरूर राम-राम हो जा। सांसद की तो पछाण ई नी रही..। पिछला भी बाहर ते था। अर भी बाहर वाला ई तैयारी कर रया। रादौर में नेताओं की गिणती नी, पर.. चुनाव लड़न यहां बाहर ते ई आवैं। यही बात नी इब तक समझ मै आई। से म्हारे आले बस झंडा ठाण नै हैं क्या..। इनसेट

अनदेखी की टीस, रोजगार मिला और न स्वास्थ्य सेवाएं

रादौर कस्बा में राजनीतिक गतविधियों तेज हो गई है। यहां स्वास्थ्य व रोजगार बड़ा मुद्दा बनकर सामने आ रहा है। लोगों के मन में अनदेखी की टीस है। कस्बावासियों के मुताबिक न रोजगार के अवसर सृजित करने के लिए कोई बड़ी परियोजना आई है और न ही 50 बेड के अस्पताल का वादा पूरा हुआ है। सब्जी मंडी, फायर ‌िर्ब्रगेड की मांग भी लंबित है। उपमंडल बने तीन वर्ष हो गए हैं। तीन कोर्ट मंजूर हैं, लेकिन आज तक कोर्ट नहीं लगी।


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