खौफ इतना कि रुख करते ही बढ़ गई अफसरों की हार्ट बीट
खौफ हो तो कैबिनेट मंत्री अनिल विज जैसा हो। इनका रुख अफसरों की हार्ट बीट बढ़ा देता है।
::कसूती बात:: खौफ हो तो कैबिनेट मंत्री अनिल विज जैसा हो। इनका रुख अफसरों की हार्ट बीट बढ़ा देता है। उनके पास स्वास्थ्य विभाग, शहरी स्थानीय निकाय व गृह मंत्रालय है। बुधवार को वे सनातन धर्म मंदिर में आयोजित क्रिया में पहुंचे थे, लेकिन उनके आने से एक दिन पहले ही संबंधित विभागों के अधिकारियों व कर्मचारियों की जुबां पर केवल विज का नाम था। चर्चा यही रही कि ध्यान से.. मंत्री विज आ रहे हैं। जिस दिन पहुंचे, उस दिन तो माहौल ही अलग था। किसी भी अधिकारी ने दफ्तर नहीं छोड़ा। भूख-प्यास सब गायब रही। रूटीन में लंच के लिए घर जाने वाले अफसर कुर्सियों से चिपके रहे। पेंडिग कामों को निपटाया और अपने-अपने विभाग में साफ-सफाई का भी विशेष रूप से ख्याल रखा। थोड़ी-थोड़ी देर बाद अपडेट लेते रहे। क्योंकि विज की नजरें किस पर टेढ़ी हो जाएं, कुछ कहा नहीं जा सकता। उनका खौफ अलग ही है। जनता यही कह रही है कि विज ऐसे ही आते रहे। भला ऐसे दौरे का भी क्या फायदा
नगर निगम कमिश्नर श्याम लाल पुनिया बेशक एक्टिव मोड पर हों, लेकिन निचले स्तर के अफसर अपना रवैया नहीं छोड़ रहे हैं। गत दिनों कमिश्नर ने सभी अधिकारियों को साथ लेकर शहर के सभी नालों का निरीक्षण किया। काफी खामियां भी सामने आई। नाले अटे हुए भी मिले और टूटे हुए भी। हालात देखकर वे हैरान रह गए। मौके पर ही संबंधित अफसरों को सफाई व मरम्मत के आदेश दिए। अफसरों ने भी हां भरने में समय नहीं लगाया, लेकिन उसके बाद किसी ने भी नालों की ओर रुख नहीं किया। शहर का शायद ही कोई ऐसा नाला होगा जो दुरुस्त हो। शहर की सबसे बड़ी समस्या ही बरसाती पानी की निकासी की है। थोड़ी सी बारिश होते ही शहर जलमग्न हो रहा है, लेकिन नगर निगम अधिकारियों को परवाह नहीं है। भला ऐसे दौरे का भी क्या फायदा? अपना ही भवन नहीं बना पाए, और क्या उम्मीद करेंगे
नगर निगम में आजकल सब कुछ ठीकठाक नहीं है। मनमर्जी अफसरों की फिदरत बनी हुई है। सीएम मनोहर लाल ने जिस भवन का शिलान्यास दो वर्ष पूर्व रखा, अफसर आज तक इस योजना पर काम नहीं शुरू करा पाए। कमी कहां हैं, यह तो जांच का विषय है, लेकिन अंगुलियों अफसरों की कार्यप्रणाली पर उठ रही हैं। तीन बार टेंडर कॉल किए। तीनों बार रद हो गए। कारण ठेकेदारों द्वारा शर्तो पर खरा न उतरना बताया जा रहा है। हर बार यही बात सामने आती है कि ठेकेदार ने शर्तो को पूरा नहीं किया, लेकिन ऐसा कब तक चलता रहेगा। इसका कुछ तो समाधान होगा। उधर, ठेकेदारों की जुबां पर कुछ और ही होता है। उनके मुताबिक अपनों को लाभ पहुंचाने के लिए यह खेल खेला जा रहा है। मौका मिलते ही किसी अपने को इस परियोजना का टेंडर दे दिया जाएगा। पार्षद बेशक मैडम हों, ड्यूटी साहब बजा रहे हैं
सरकार महिला सशक्तिकरण का नारा जरूर दे रही है, लेकिन जन प्रतिनिधियों के कानों तक इसकी गूंज का असर नहीं है। पार्षद मैडम हैं, लेकिन ड्यूटी साहब बजा रहे हैं। वह भी पूरी निष्ठा से। कार्य दिवस में हर दिन नगर निगम कार्यालय में आते हैं। मैडम की मोहर जेब में रखते हैं। जब जरूरत पड़े तब यूज कर लेते हैं। अब तो हाउस की बैठक में भी हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया। बातचीत के दौरान भी खुद को ही पार्षद होने का दिखावा करते हैं। एमसी बोल रहा हूं.. यही कहकर अफसरों पर दबका मारने से भी पीछे नहीं हटते। नगर निगम से जुड़े सभी काम स्वयं करते हैं। अब समय बदल रहा है। नारी किसी भी क्षेत्र में कमजोर नहीं है। जब वह जनता ने उनको पार्षद चुन लिया तो, उन्हीं को अपनी काबिलियत दिखाने का मौका मिलना चाहिए। ये भी चहारदीवारी से बाहर निकलें तो बेहतर होगा।