कपालमोचन में तपस्या करने से कुंती को हुई थी पुत्र प्राप्ति
कपालमोचन में पहुंचे श्रद्धालु सूरजकुंड सरोवर के तट पर स्थित दूदाधारी महाराज की समाध पर माथा टेकने एवं पूजा-अर्चना करते हैं। ऐसी मान्यता है कि यहां मांगी गई हर मन्नत पूर्ण होती है। इस पवित्र स्थान पर पांडव की कुंती ने सूर्य देव की तपस्या की। इसके कारण उन्हें कर्ण के रूप में पुत्र की प्राप्ति हुई थी।
जागरण संवाददाता, कपालामोचन : कपालमोचन में पहुंचे श्रद्धालु सूरजकुंड सरोवर के तट पर स्थित दूदाधारी महाराज की समाध पर माथा टेकने एवं पूजा-अर्चना करते हैं। ऐसी मान्यता है कि यहां मांगी गई हर मन्नत पूर्ण होती है। इस पवित्र स्थान पर पांडव की कुंती ने सूर्य देव की तपस्या की। इसके कारण उन्हें कर्ण के रूप में पुत्र की प्राप्ति हुई थी।
मान्यता यह भी है कि अकबर-ए-आजम के शासनकाल के समय तक इस स्थान पर आबादी नहीं थी। केवल जंगल था, क्योंकि उस वक्त जनसंख्या कम थी। तीर्थ के समीप स्थित एक टीले पर झाड़ी के नीचे दूधाधारी बाबा केशवदास तपस्या करते थे। एक दिन अकबर साम्राज्य के परगना साढौरा के काजी फिमूदीन जो निस्संतान एवं वृद्ध थे, शिकार खेलते हुए पानी की तलाश में यहां आए तो उन्होंने तपस्यालीन महात्मा केशवदास तक पहुंचने का प्रयत्न किया, परंतु जैसे ही वे उनके समीप पहुंचे तो अंधे हो गए, लेकिन जब महात्मा जी ने तपस्या उपरांत आंखें खोली तो कहा कि तुम उनकी समाधि की परिधि मे आ गए हो, इसलिए कुछ पीछे हट कर अपनी बात कहो। तब काजी जैसे ही पीछे हटे तो उन्हें पुन: दिखाई देने लगा। उन्होंने स्वयं को निस्संतान होने की बात कही और संतान की कामना की। इस पर केशवदास ने उन्हें एक वर्ष बाद अपनी बेगम सहित आने को कहा। इसी अवधि में काजी के घर लड़का पैदा हुआ और एक वर्ष बाद काजी ने सपरिवार यहां आकर केशवदास को जमीन देकर भगवान श्रीराम मंदिर बनवाया। जिसके ऊपर रोजाना चिराग जलाया जाता था। काजी हर शाम चिराग देखकर ही खाना खाते थे। उन्हीं के वंशज के रूप मे सढौरा में आज भी काजी मोहल्ला आबाद है। इस कारण हिदू और सिखों के अलावा मुसलमान भी कपाल मोचन तीर्थ एवं मेला के प्रति श्रद्धा रखते हैं।