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कपालमोचन से पांच किलोमीटर दूर एक तरफ झुकता है सिर तो 10 कदम पर लगते जूते

कपालमोचन से पांच किलोमीटर दूर ऐसी भी जगह है जहां आस्था और नफरत दोनों के देखने को मिलती है। एक तरफ श्रद्धालु गुरुद्वारे में शीष झुकाते हैं तो इससे ठीक 10 कदम की दूरी पर राजा जरासंध के टीले पर न केवल जूते चप्पल मारते हैं।

By JagranEdited By: Published: Sun, 10 Nov 2019 08:40 AM (IST)Updated: Sun, 10 Nov 2019 08:40 AM (IST)
कपालमोचन से पांच किलोमीटर दूर एक तरफ झुकता है सिर तो 10 कदम पर लगते जूते
कपालमोचन से पांच किलोमीटर दूर एक तरफ झुकता है सिर तो 10 कदम पर लगते जूते

जागरण संवाददाता, कपालमोचन : कपालमोचन से पांच किलोमीटर दूर ऐसी भी जगह है जहां आस्था और नफरत दोनों के देखने को मिलती है। एक तरफ श्रद्धालु गुरुद्वारे में शीष झुकाते हैं तो इससे ठीक 10 कदम की दूरी पर राजा जरासंध के टीले पर न केवल जूते, चप्पल मारते हैं। गालियां भी देते हैं। यहां तक पहुंचने की डगर भी आसान नहीं है। श्रद्धालुओं को यहां पहुंचने के लिए पैदल या फिर आटो में बैठकर ही जाना पड़ता है। मेले के दौरान तो यहां फिर भी लोगों की आवाजाही है। वरना रोजमर्रा में यहां वीराना रहता है। इसके बावजूद आस्था श्रद्धालुओं को यहां खींच लाती है। पांच किलोमीटर का सफर पैदल करने में भी श्रद्धालु बिल्कुल आलस नहीं करते। टीले से थोडी दूर स्थित सती माता मंदिर में श्रदधालुओं ने पूजा अर्चना की व नजदीक के तलाब पर आम के पौधे लगाए।

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गुरु गोबिद सिंह ने 40 दिन किया था तप

गांव संधाय के जंगल व खेतों के बीच बने इस गुरुद्वारे के बारे में लोग बहुत कम ही जानते हैं,क्योंकि गांव, आबादी व मुख्यालय से काफी सुनसान जगह पर है। पंजाब के मंडी गोबिदगढ़ निवासी सेवादार स्वर्ण सिंह बताते हैं कि गुरु गोबिद सिंह भंगियानी का युद्ध जीतने के बाद कपालमोचन में आए थे। वे वहां पर 52 दिन ठहरे थे। युद्ध के बाद उन्होंने कपालमोचन में आकर अपने अस्त्र-शस्त्र धोए थे। इसी दौरान 40 दिन तक हर रोज रात को गुरु गोबिद सिंह संधाय गांव में तप करने के लिए आए थे। तब इस जगह को सिधू वन कहा जाता था। गुरु जी अपने घोड़े पर आते थे। वे घोड़े को रास्ते में बनी शिव जी की बाड़ी यानि शिव मंदिर में पेड़ के नीचे बांध कर आते थे।

जरासंध के टीले को मारते हैं जूते-चप्पल

गुरुद्वारा के दाई तरफ 10 कदम की दूरी पर ही मिट्टी का बहुत ऊंचा टीला है। कहा जाता है कि यह कभी राजा जरासंध का महल हुआ करता था, लेकिन एक सती द्वारा दिए गए श्राप के कारण उसका यह किला मिट्टी में तब्दील हो गया। मान्यता है कि महाभारत काल में यह स्थान सिधूवन के नाम से प्रसिद्ध था। यहां पर अन्यायी राजा जरासंध राज करता था। उसी के कारण यहां का नाम जरासंधाय पड़ा जो कालांतर में संधाय बन गया। राजा अपने सम्राज्य में होने वाली शादियों की डोली लूटकर संधाय स्थित राजमहल में लाकर उनकी इज्जत से खेलता था। इससे राज्य की जनता बड़ी परेशान थी, लेकिन कुछ कर पाने में असमर्थ थी। एक दिन राजा जरासंध ने एक ऋषि कन्या सती ग्यासनी देवी पर कु²ष्टि डाली। वह उसे उठाकर अपने महल में ले गया, लेकिन वह स्नान करने के बहाना बनाकर महल से भाग निकली। जरासंध उसके पीछे-पीछे गया। ग्यासनी देवी ने उसे श्राप दिया कि जिस महल में वह सुहागिनों की इज्जत से खिलवाड़ करता है वह जल्द ही बर्बाद हो जाएगा। राजा से बचने के लिए वह महल के पास बने एक तालाब में सती हो गई। श्राप के कारण महल खंडहर में तब्दील हो गया। इसमें लगी ईंटे पांच हजार साल पुरानी बताई जाती हैं जिनका आकार 12 गुणा 12 इंच है। जो श्रद्धालु गुरुद्वारा में मत्था टेकने जाते हैं वो रास्ते में पड़ने वाले इस टीले पर पत्थर, जूते, चप्पल मारते हैं। पंजाब से आई श्रद्धालु दलजीत कौर, सिमरन कौर ने बताया कि जो राजा महिलाओं की इज्जत करना नहीं जानता उसके साथ ऐसा ही होना चाहिए। लोग तो यहां तक कहते हैं कि टीले के अंदर एक मंदिर है, जिसमें रात को घंटियां बजती है जो अक्सर सुनाई देती है।


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