पहले हॉकी के मैदान में चकमाया देश का नाम, अब वर्दी पहनकर पीड़िताओं को दिला रही न्याय
हौंसला है और मेहनत करने से पीछे नहीं हटना है तो एक न दिन मंजिल जरूर मिलेगी।
नमो देव्यै महा देव्यै
फोटो
01
जागरण संवाददाता, यमुनानगर :
हौंसला है और मेहनत करने से पीछे नहीं हटना है, तो एक न दिन मंजिल जरूर मिलेगी। लक्ष्य को पाने में कई बार रास्ते में बाधाएं भी आएंगी, लेकिन कड़े संघर्ष के सामने यह सब बाधाएं दूर होती चली जाएगी। यह संदेश महिला थाना की डीएसपी सुरेंद्र कौर छात्राओं व लड़कियों को देती हैं। हॉकी टीम की कप्तान रह चुकी सुरेंद्र कौर अब वर्दी पहनकर महिलाओं को न्याय दिला रही हैं। थाने में आने वाले दंपती के विवादों को सुलझाती हैं। महिलाओं व लड़कियों का उत्पीड़न करने वालों से सख्ती से निपटती हैं। किसान परिवार में जन्मी मूल रुप से अंबाला के शाहबाद की रहने वाली सुरेंद्र कौर सरकारी स्कूल में पढ़ती थी। खेलों का शौक था। स्कूल में ही होने वाले खेलों में भाग लेती थी। शुरूआत में हॉकी का मतलब तक नहीं पता था। कोच सरदार बलदेव सिंह हॉकी खेलने वाली लड़कियों को चुन रहे थे। उन्होंने पूछा कि कौन हॉकी खेलना चाहता है। सुरेंद्र कौर भी तैयार हो गई। शुरूआत में स्कूल गेम खेले। फिर जूनियर, सब जूनियर खेला। इस तरह से वर्ष 1997 में उनका चयन भारतीय हॉकी टीम के लिए हुआ। उस समय उम्र महज 15 वर्ष थी। दक्षिण अफ्रीका में वह टीम के साथ खेलने के लिए गई थी। पहले वह वर्ष 2000 से 2011 साल तक वह भारतीय हॉकी टीम में खेल चुकी हैं। 2008 से 2011 तक हॉकी टीम की कप्तान रही। 2011 में घुटनों में लगी चोटों की वजह से उन्हें खेल से अलविदा कहना पड़ा। अब वह इंडियन हॉकी टीम में बतौर सिलेक्टर कार्य कर रही हैं। मारकंडा नदी साइकिल पर बिठाकर पार कराते थे पिता :
डीएसपी सुरेंद्र कौर का कहना है कि हैं कि शुरूआत में मैदान तक पहुंचने में दिक्कत आती थी। मारकांडा नदी में अक्सर पानी आ जाता था। उनके पिता को साइकिल चलाना नहीं आता था, लेकिन वह उन्हें साइकिल पर बिठाते थे और पैदल नदी पार करते थे। पिता हर बार यही कहते थे कि मेहनत में कमी नहीं होनी चाहिए। इसका इनाम जरूर मिलेगा। 2009 वर्ष बेहद भाग्यशाली :
वर्ष 2009 सुरेंद्र कौर के लिए बेहद भाग्यशाली रहा। वह बताती हैं कि एशियन कप में उनकी टीम बैंकॉक गई थी। वह कप्तान थी। उस मैच में उनकी टीम ने गोल्ड जीता। उस समय जर्सी का नंबर भी नौ था। बेस्ट प्लेयर का खिताब भी उन्हें मिला। इसी वर्ष में उन्हें अर्जुन अवार्ड से नवाजा गया। वर्ष 2000 में उन्हें भीम अवार्ड, यंगेस्ट प्लेयर अवार्ड व फिक्की अवार्ड से भी नवाजा जा चुका है। वर्ष 2000 में खेलते समय उनके दाहिने घुटने की सर्जरी हुई थी। डॉक्टरों ने खेलने से मना किया, लेकिन वह खेलती रही। 2011 में उन्हें फिर बाएं घुटने में चोट लगी। ऑपरेशन हुआ। डॉक्टरों ने खेलने से साफ मना कर दिया। जिस पर उन्हें हॉकी को अलविदा कहना पड़ा। वर्ष 2010 में हरियाणा सरकार ने उनको डीएसपी का पद देकर सम्मानित किया। सबसे पहली पोस्टिग भिवानी में हुई। अब यमुनानगर में तैनात हैं। उनकी शादी भी हॉकी खिलाड़ी नितिन सबरवाल से हुई। वह अब अंबाला कैंट के राजकीय स्कूल में पीटीआइ है। दो बेटी हैं। बड़ी बेटी 8 वर्षीय आयरा भी हॉकी खेलने लगी है। छोटी बेटी दो साल की अमायरा है।