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फसल अवशेषों को जलाएं नहीं, खेतों में करें प्रबंधन, बेहतर होगी पैदावार

पराली नहीं जलाएंगे पर्यावरण को बचाएंगे अभियान में दैनिक जागरण की ओर से कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के सभागार में पैनल डिस्कशन का आयोजन किया गया। इसमें क्षेत्र के किसान प्रतिनिधियों और विशेषज्ञों ने भाग लिया।

By JagranEdited By: Published: Wed, 20 Nov 2019 06:20 AM (IST)Updated: Wed, 20 Nov 2019 06:20 AM (IST)
फसल अवशेषों को जलाएं नहीं, खेतों में करें प्रबंधन, बेहतर होगी पैदावार
फसल अवशेषों को जलाएं नहीं, खेतों में करें प्रबंधन, बेहतर होगी पैदावार

जागरण संवाददाता, यमुनानगर : पराली नहीं जलाएंगे, पर्यावरण को बचाएंगे अभियान में दैनिक जागरण की ओर से कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के सभागार में पैनल डिस्कशन का आयोजन किया गया। इसमें क्षेत्र के किसान प्रतिनिधियों और विशेषज्ञों ने भाग लिया। किसानों ने विशेषज्ञों के समक्ष उन समस्याओं को रखा जो फसल प्रबंधन में बाधा बन रही हैं। विशेषज्ञों ने उनकी शंकाओं को दूर किया और फसल अवशेष प्रबंधन के तरीकों व फायदों से अवगत कराया गया। कृषि एवं किसान कल्याण विभाग उप-निदेशक डॉ. सुरेंद्र यादव, एपीपीओ डॉ. राकेश जांगड़ा और असिस्टेंट एग्रीकल्चर इंजीनियर डॉ. विनीत जैन ने किसानों को अवशेष प्रबंधन के फायदे बताए। फोटो : 17

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भारतीय किसान संघ के प्रदेश मंत्री रामबीर सिंह चौहान का कहना है कि खेतों में फसल अवशेष जलाना गलत है। हम भी खेतों में अवशेष नहीं जलाते, लेकिन कई परिस्थितियों में किसानों की मजबूरी बन जाती है। प्रबंधन के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं हैं। एसएमएस यंत्र लगी कंबाइनों की संख्या कम है। इनकी संख्या बढ़ाई जाए और सभी कंबाइन में एसएमएस अनिवार्य किया जाए।

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कुंजल गांव के प्रगतिशील किसान कुलबीर सिंह का कहना है कि किसान फसल अवशेष नहीं जलाएंगे बशर्ते उनको प्रबंधन के लिए संसाधन उपलब्ध हों। जिस खेत में धान की कटाई कंबाइन से करवाई जाती है, उसकी बोआई पर खर्च अधिक आता है। खेत भी अच्छी तरह तेयार नहीं होता है। ज्यादा दिक्कत सब्जियों की फसल उगाने में आती है। खेत में फसल अवशेष जलाना किसानों की मजबूरी हो जाती है। फोटो : 21

गुंदयाना के किसान राम सिंह का कहना है कि हम कभी भी धान की अवशेष नहीं जलाते, बल्कि उनका प्रबंधन करते हैं। किसान इससे जैविक खाद तैयार कर सकते हैं। हम धान के अवशेषों को गड्ढे में इकट्ठा कर ढक देते हैं। हर बार ऐसा ही करते हैं। इससे खाद तैयार होती है। धान के अवशेष जलाने से पर्यावरण भी प्रदूषित होता है और भूमि की उर्वरा शक्ति भी घटती है। फोटो : 21ए

भारतीय किसान यूनियन के जिला प्रधान संजू गुंदयाना का कहना है कि हम भी नहीं चाहते कि खेत में पराली जलाई जाए, लेकिन क्या सभी नियम केवल किसानों पर ही लागू होते हैं। प्रदूषण का कारण बन रही औद्योगिक इकाइयों पर भी कार्रवाई सुनिश्चित की जाए। इसके अलावा सभी कंबाइन में एसएमएस लगवाना सुनिश्चित हो। अधिकांश में नहीं हैं। विभागीय अधिकारियों को सख्ती बरतनी चाहिए। फोटो : 16

धान के अवशेषों को जलाएं नहीं बल्कि प्रबंधन करें। फसल अवशेष जलाने से मृदा की उर्वरा शक्ति लगातार घट रही है। मित्र कीट नष्ट हो रहे हैं। पैदावार पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। कृषि अवशेष प्रबंधन के लिए कृषि एवं किसान कल्याण विभाग की ओर से अनुदान पर कृषि यंत्र दिए हुए हैं। फसल अवशेष जलाने से पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं। नाइट्रोजन, सल्फर और अन्य पोषक तत्वों में भी कमी आई है।

डॉ. सुरेंद्र यादव, उप-निदेशक, कृषि एवं किसान कल्याण विभाग।

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खेतों में फसल अवशेष जलाने से प्रदूषण बढ़ रहा है। प्रदूषित कण शरीर के अंदर जाकर फेफड़ों में सूजन सहित इंफेक्शन, निमोनिया और हार्ट की बीमारियां का कारण बनते हैं। खांसी, अस्थमा, डाईबिटीज के मरीजों की संख्या बढ़ रही है। कृषि योग्य जमीन को बंजर हो रही है। फसल अवशेषों का खेत में ही प्रबंधन किया जा सकता है। सरकार भी इस पर विशेष रूप से ध्यान दे रही है। किसानों को भी आगे आना चाहिए।

डॉ. राकेश जांगड़ा, एपीपीओ, कृषि एवं किसान कल्याण विभाग। फोटो : 19

फसल अवशेष प्रबंधन समय की मांग है। सरकार इस पर विशेष रूप से ध्यान दे रही है। किसानों को भी सहयोग करना चाहिए। इन दिनों पराली को जलाएं नहीं बल्कि उसका प्रबंधन करें। हैप्पी सीडर या सुपर हैप्पी सीडर के माध्यम से फसल अवशेषों के बीच ही गेहूं की बिजाई की जा सकती है। प्रदूषण भी नहीं होगा और फसल की बिजाई पर लागत भी कम आएगी। फसल अवशेषों से बेहतर जैविक खाद भी तैयार की जा सकती है।

डॉ. विनीत जैन, असिस्टेंट एग्रीकल्चर इंजीनियर।


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