Move to Jagran APP

छठ मइया से बेटे के साथ ही बेटियों के सुख की भी करती हैं कामना

पांच पुत्र अन्न-धन लक्ष्मी धियवा (बेटी) मंगबो जरूर यानी बेटे और धन-धान्य की कामना तो की गई है लेकिन उसमें यह बात भी है कि छठ माता से बेटी जरूर मांगनी है। ये जरूर शब्द साबित करते हैं कि बेटियों को लेकर छठ पूजा करने वाले समाज ने बेटों और बेटियों में कोई अंतर नहीं किया।

By JagranEdited By: Published: Fri, 01 Nov 2019 08:30 AM (IST)Updated: Fri, 01 Nov 2019 08:30 AM (IST)
छठ मइया से बेटे के साथ ही बेटियों के सुख की भी करती हैं कामना
छठ मइया से बेटे के साथ ही बेटियों के सुख की भी करती हैं कामना

जागरण संवाददाता, यमुनागनर : पांच पुत्र, अन्न-धन लक्ष्मी, धियवा (बेटी) मंगबो जरूर यानी बेटे और धन-धान्य की कामना तो की गई है, लेकिन उसमें यह बात भी है कि छठ माता से बेटी जरूर मांगनी है। ये जरूर शब्द साबित करते हैं कि बेटियों को लेकर छठ पूजा करने वाले समाज ने बेटों और बेटियों में कोई अंतर नहीं किया। इसी सोच के साथ प्रेम नगर निवासी शीला मिश्रा 30 साल से छठ मइया का व्रत रख रही हैं। व्रत रखने के दौरान कभी भी बेटा व बेटी में कोई अंतर नहीं समझा।

loksabha election banner

शीला मिश्रा ने बताया कि पति विश्वेश्वर मिश्रा रेलवे से रिटायर हैं। उनके पास चार लड़कियां संध्या मिश्रा, सविता मिश्रा, सोनिया और सरिता है। इनमें से दो बेटियों की शादी हो चुकी है व दो नौकरी कर रही हैं। इनके बाद सबसे छोटा बेटा राहुल मिश्रा है, जिसने हाल ही में बीटेक की है, लेकिन वह 30 साल से छठ का व्रत रख रही है। क्योंकि आज बेटियां बेटों से किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं है। चार बेटियों के बाद बेटा हुआ। इसके बावजूद वे पांचों से बराबर प्यार करती हैं। छठ पर्व का पूरे परिवार को बेसब्री से इंतजार रहता है। कोशिश रहती है कि इस पर्व पर सारा परिवार एक जगह आ जाए। सुख-दुख में बेटियों ने हमेशा सेवा की है। छठ पर्व में तो वैसे भी कहा गया है कि बेटे के साथ-साथ बेटी भी मांगनी है। छठ के गीत हे छठ मइया हमें बेटी दो, ताकि घर में रौनक आए और हमारा दामाद पढ़ा लिखा हो। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से महिलाओं को बेटा पैदा होने का वरदान मिलता है। जब बेटियों को जन्म दिया है तो उनकी लंबी उम्र कामना एक मां क्यों न करें। छठ के दौरान हर घर-आंगन में गूंजने वाते परंपरागत गीत, रुनकी-झुनकी बेटी मांगी ला, पढ़ल पंडितवा दमाद, हे छठी मइया.. से पता चलता है कि बेटी के बिना हर परिवार अधूरा है। समाज में सैकड़ों वर्ष से छठ पर्व पर यह गाया जा रहा है। इससे पता चलता है कि इस पर्व की आत्मा बेटियां हैं। उन्होंने बताया कि यमुना नहर किनारे जब छठ पर्व मनाते हैं तो इसमें बेटों के साथ बेटियां भी जाती हैं। व्रत के शुरू करने से लेकर आखिर तक वे हाथ बंटाती हैं।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.