छठ पर्व : पश्चिमी यमुना नहर के कच्चे घाटों से पानी में पूजा के लिए उतरेंगे श्रद्धालु
2 नवंबर को छठ है। त्योहार में महज तीन दिन बचे हैं। अभी तक प्रशासन की ओर से पश्चिमी यमुना नहर के घाटों की तरफ ध्यान नहीं दिया गया है। सारे घाट कच्चे पड़े हैं। उसमें पानी में उतर कर श्रद्धालु पूजा-अर्चना करेंगे। वेदी स्थल के सामने गंदगी के अंबार लगे हुए हैं।
जागरण संवाददाता, यमुनानगर : 2 नवंबर को छठ है। त्योहार में महज तीन दिन बचे हैं। अभी तक प्रशासन की ओर से पश्चिमी यमुना नहर के घाटों की तरफ ध्यान नहीं दिया गया है। सारे घाट कच्चे पड़े हैं। उसमें पानी में उतर कर श्रद्धालु पूजा-अर्चना करेंगे। वेदी स्थल के सामने गंदगी के अंबार लगे हुए हैं। किसी भी घाट पर सफाई नहीं दिखाई दी। श्रद्धालु अपनी वेदियों को साफ करने में लगे हैं। ये नजारा मंगलवार को नजर आया। दैनिक जागरण टीम ने यहां कई घंटे बिताए। श्रद्धालुओं से बातचीत की। प्रशासन की ओर से अब तक इंतजाम न किए जाने से उनमें रोष नजर आया।
11. 10 बजे सिटी सेंटर के नजदीक घाट
इन घाटो के किनारे टूटे हुए हैं। एहतियात के तौर पर रेत के कट्टे भर कर रखे गए थे। वे भी नजर नहीं आते। इसके नजदीक बने पार्क की दीवार पर कुछ कर्मी सफेदी करने में लगे हुई हैं। गंदगी साफ करने के लिए कोई सफाई कर्मी दिखाई नहीं दिया। किनारों पर पड़ी गंदगी में सुअर मुंह मार रहे थे। इंटर लॉकिग सड़क कई जगह से टूटी नजर आई।
11.40 बजे बाड़ी माजरा घाट
यहां भी अव्यवस्थाओं का आलम था। तीन महिला ओर दो पुरुष श्रद्धालु अपनी वेदी को साफ करने में लगे थे। इन्होंने बताया कि श्रद्धा के साथ इस त्योहार को मनाते हैं। व्रत रखते हैं। पानी के बीच में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते हैं। व्रत को लेकर अलग-अलग मान्यता है। यहां एक हिस्सा टूटा नजर आया। सरकार की ओर से बीते वर्ष घाट पक्के करने की बात कही गई थी। इस तरफ गौर नहीं किया गया। अनदेखी के चलते श्रद्धालुओं को पूजा के दौरान परेशानी का सामना करना पड़ेगा।
12.10 आजाद नगर घाट
घाट के बिलकुल सामने गंदगी के अंबार लगे हैं। कुछ लोग मछली पकड़ने में लगे हुए थे। गंदगी के कारण वातावरण दूषित था। इस घाट पर भी काफी वेदी बनी हैं। जहां श्रद्धालु पूजा करते हैं। माहौल देखकर नहीं लगा कि त्योहार में तीन दिन शेष हैं। किनारों पर लाइट तक नहीं दिखाई दी, जबकि हर साल 250 लाइट लगाई जाती है। ओपी जिदल पार्क के नजदीक लगी स्ट्रीट लाइट टूटी थी।
12.45 बजे शनि मंदिर घाट
इस घाट की स्थिति भी दयनीय थी। इसके नजदीक निकासी की व्यवस्था नहीं की गई, जिस कारण पानी जमा था। निकलने के लिए जगह नाममात्र थी। पूजा के दिन यहां पांव रखने की जगह नहीं होती। इसके साथ ही पटरी पर बने गड्ढे में मिट्टी नहीं भरी गई, जिससे वाहन हिचकौले लेकर चलते हैं। गिरने का डर भी रहता है।
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पश्चिमी यमुना नहर के कच्चे घाट नहीं हुए दुरुस्त : नर्मदेश्वर त्रिपाठी
पूर्वांचल कल्याण सभा के प्रधान नर्मदेश्वर त्रिपाठी का कहना है कि कच्चे घाट हैं। इससे पांव स्लिप होने का डर रहता है। लाखों की संख्या में श्रद्धालु पूजा करते हैं। पटरी के ऊबड़- खाबड़ रास्ते हैं। यहां से चलना आसान नहीं है। हर कदम पर हादसे का डर है। नगर निगम को चाहिए कि समय रहते सफाई की व्यवस्था करे। प्रशासन रोशनी के इंतजाम कराए। इससे श्रद्धालुओं को परेशानी का सामना न करना पड़े।
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पक्के हो यमुना के घाट : गुरचरण लांबा
पूर्वाचल कल्याण सभा के सेक्रेटरी गुरचरण लांबा का कहना है कि पार्क के सामने कहने को तीन स्ट्रीट लाइट लगी हैं। इनमें से जलती कोई नहीं है। सारे घाट कच्चे हैं। हर बार घोषणा पक्का करने की जाती है। निराशा ही हाथ लगती है। इस तरफ प्रशासन को गौर करना चाहिए। स्ट्रीट लाइट नहीं लगी है। हर बार 250 स्ट्रीट लाइट लगाई जाती है। इस बार अब तक एक भी नहीं लगी है। त्योहार में दो दिन बचे हैं। समय रहते प्रशासन व्यवस्था करे, जिससे श्रद्धालुओं को परेशानी का सामना नहीं करना पड़े।
इसपर्व का महत्व
छठ पूजा मुख्य रूप से सूर्य देव की उपासना कर उनकी कृपा पाने के लिए की जाती है। भगवान भास्कर की कृपा से सेहत अच्छी रहती है। घर में धन-धान्य की प्राप्ति होती है। संतान प्राप्ति के लिए भी छठ पूजन का विशेष महत्व है। यह भी माना जाता है कि भगवान सूर्य की पूजा विभिन्न प्रकार की बीमारियों को दूर करने की क्षमता रखता है। परिवार के सदस्यों को लंबी आयु प्रदान करती है। चार दिनों तक मनाए जाने वाले इस पर्व के दौरान शरीर और मन को पूरी तरह से साधना पड़ता है।
पहला दिन
नहाय खाय के नाम से प्रसिद्ध है। इस दिन को छठ पूजा का पहला दिन माना जाता है। इस दिन नहाने और खाने की विधि की जाती है। आसपास के माहौल को साफ सुथरा किया जाता है। इस दिन लोग अपने घरों और बर्तनों को साफ़ करते है। शुद्ध-शाकाहारी भोजन कर इस पर्व का आरंभ करते हैं।
दूसरा दिन
छठ पूजा के दूसरे दिन को खरना के नाम से जाना जाता है। इस दिन खरना की विधि की जाती है। खरना' का असली मतलब पूरे दिन का उपवास होता है। इस दिन व्रती व्यक्ति निर्जल उपवास रखते हैं। शाम होने पर साफ सुथरे बर्तनों और मिट्टी के चूल्हे पर गुड़ के चावल, गुड़ की खीर और पूड़ी बनाई जाती है। इन्हें प्रसाद स्वरुप बांटा जाता है।
नदी घाटों पर देते हैं अर्घ्य
प्रसाद सामग्री तैयार होने के बाद फल, गन्ना और अन्य सामग्री बांस की टोकरी (दउरा) में सजाया जाता है। घर में इसकी पूजा कर सभी व्रती सूर्य को अर्घ्य देने के लिए तालाब, पोखरा, नहर, नदी के घाटो पर जाते हैं। पहले दिन स्नान के बाद डूबते सूर्य की आराधना की जाती है। उन्हें अर्घ्य दिया जाता है।
अगले दिन यानी सप्तमी को सुबह उगते हुए सूर्य की उपासना कर अर्घ्य दी जाती है। इस दौरान नदी घाट पर हवन की प्रक्रिया भी पूरी की जाती है। पूजा के बाद सभी के बीच प्रसाद बांटा जाता है।