पर्यावरण में घुल रहा जहर, फसल अवशेष जलाने से करें परहेज
कृषि विज्ञान केंद्र दामला के गोद लिए गांव अलाहर में पराली नहीं जलाएंगे पर्यावरण को बचाएंगे में दैनिक जागरण की ओर से चौपाल का आयोजन किया। इसमें ग्रामीणों ने पराली जलाने के नुकसान के बारे में चर्चा हुई।
जागरण संवाददाता, यमुनानगर : कृषि विज्ञान केंद्र दामला के गोद लिए गांव अलाहर में पराली नहीं जलाएंगे पर्यावरण को बचाएंगे में दैनिक जागरण की ओर से चौपाल का आयोजन किया। इसमें ग्रामीणों ने पराली जलाने के नुकसान के बारे में चर्चा हुई। किसानों का कहना है कि खेतों में फसल अवशेष जलाने से पर्यावरण प्रदूषित होता है। इसलिए हमें फसल अवशेष जलाने से परहेज करना चाहिए, लेकिन साथ ही सरकार को भी इस दिशा किसानों के सहयोग के लिए कदम बढ़ाने चाहिए। इसके मजबूत विकल्प उपलब्ध कराए जाने चाहिए। क्षेत्र में ऐसी औद्यौगिक इकाइयां स्थापित की जाएं जहां फसल अवशेषों की खपत हो सके। खेत में कंबाइन से धान की कटाई हुई है, उससे तो पराली बाहर निकालने की जरूरत ही नहीं पड़ती। कटाई के तुरंत बाद रोटावेटर से खेत की जुताई कर सकते हैं। अगली फसल के लिए खेत तैयार हो जाएगा। इसमें आलू व अन्य फसल की बिजाई कर सकते हैं। खेत को तैयार करने पर लागत थोड़ी ज्यादा आती है, लेकिन पराली जैविक खाद का काम करती है।
-राम कुमार सरकार पराली की खरीद की व्यवस्था करें और इसके अच्छे दाम दे। खेतों में फसल अवशेष जलाने से पर्यावरण में जहरीली गैसे घुल जाती है। खेतों में फसल अवशेष न जलाकर किसानों को पर्यावरण बचाने का संदेश देना चाहिए। सरकार को चाहिए कि फसल अवशेष जलाने पर प्रतिबंध के साथ-साथ ऐसी औद्योगिक इकाइयों पर भी नकेल कसी जानी चाहिए जो प्रदूषण का कारण बन रही हैं।
-वीरेंद्र कुमार खेतों में फसल अवशेष जलाने से मित्र कीट मर जाते हैं, लेकिन क्या करें। किसानों की मजबूरी होती है। कंबाइन से कटाई के बाद खेतों की जुताई करना मुश्किल हो जाता है। उन खेतों में अधिक दिक्कत आती है जिनमें आलू या सब्जी की बिजाई करनी है। खर्च अधिक आता है। इसलिए किसान मजबूरी में फसल अवशेष जलाते हैं। लेकिन इस बार वे खेतों में फसल अवशेष नहीं जलाएंगे बल्कि हैप्पी सीडर से ही गेहूं की बिजाई करेंगे। सरकार खेतों में पराली न जलाने पर दबाव दे रही है। एक प्रकार से यह किसानों के हित में है। भूमि के अंदर मित्र कीट नहीं जलते। दुघर्टनाओं की संभावना भी कम रहती है, लेकिन इसके विकल्प भी मजबूत होने चाहिए। किसान मजबूरी में पराली जलाते हैं। खेतों से बाहर निकालने के लिए मजदूर नहीं मिलते। खेत में ही यदि बुआई करें तो खर्च अधिक आता है। इसके लिए किसानों को अलग से आर्थिक सहायता मिलनी चाहिए।
-सुच्चा सिंह खेतों में पराली जलाना किसानों की मजबूरी है। क्योंकि कहीं और इसकी खपत नहीं है। यदि खेतों से इन अवशेषों को बाहर निकलवाया जाए तो इसके लिए लेबर भी नहीं मिलती। इसलिए सरकार को चाहिए कि किसानों को पराली निकालने के लिए अनुदान दे। इसमें कोई संदेह नहीं कि फसल अवशेष जलाना घातक साबित हो सकता है। सड़कों की समीप खेतों में लगी आग बड़ी दुर्घटना का कारण बन सकती है।
-सुनील कुमार