दो महीने तक परिवार के बीच अजनबी बनकर रहे डीएसपी जितेंद्र
बच्चों के साथ रहकर उनको स्पर्श न कर पाना दूर रहने का रोजाना नया बहाना बनाना डीएसपी जितेंद्र बड़ी कुशलता से करते रहे। बेटी की पुकार पर उनकी भी आंखें नम होती थीं लेकिन दूरी बनानी जरूरी थी।
जागरण संवाददाता, सोनीपत : बच्चों के साथ रहकर उनको स्पर्श न कर पाना, दूर रहने का रोजाना नया बहाना बनाना डीएसपी जितेंद्र बड़ी कुशलता से करते रहे। बेटी की पुकार पर उनकी भी आंखें नम होती थीं, लेकिन दूरी बनानी जरूरी थी। कोरोना संक्रमण के बीच रहकर दिन-रात लोगों की सेवा जो करनी थी। वह दो महीने तक अपनी चार साल की बेटी को स्पर्श तक नहीं कर पाए थे। पुलिस लाइन के सरकारी आवास में वह परिवार से अलग रहकर कोरोना संक्रमित क्षेत्रों व परिवारों के बीच जाकर ड्यूटी करते रहे।
मौजूदा समय में जींद में तैनात डीएसपी जितेंद्र सिंह कोरोना संक्रमण के समय डीएसपी मुख्यालय थे। उनपर जीटी रोड सहित शहर के सिविल लाइन क्षेत्र में व्यवस्था का प्रमुख रूप से जिम्मा था। वह परिवार के साथ पुलिस लाइन के सरकारी आवास में रहते थे। दिल्ली में तैनात उनकी वैज्ञानिक पत्नी डा. पल्लवी और चार साल की बेटी वैरोनिया आवास पर ही थे। डा. पल्लवी का वर्क फ्राम होम चल रहा था, ऐसे में वह बाहर नहीं निकलती थीं, लेकिन जितेंद्र सिंह को लगातार फील्ड में रहना पड़ता था। दिनरात ड्यूटी करना और परिवार को संक्रमण से बचाने के लिए सावधानी रखना दोनों जरूरी थे।
डीएसपी जितेंद्र सिंह सुबह को चार बजे ड्यूटी पर निकलते थे। उनको पार्क व कालोनियों में लाकडाउन का पालन कराना था। वहां से आठ बजे लौटने के बाद तैयार होकर फिर दस बजे फील्ड में निकल जाते और रात को दस बजे तक वापस आते। ड्यूटी लंबी होने के साथ ही लोगों के बीच रहती थी। सिविल अस्पताल उनके क्षेत्र में पड़ता था, वहां पर कोरोना का परीक्षण कराने के लिए लोगों को लाया जाता था। कंटेनमेंट जोन और कोविड सेंटर उनके क्षेत्र में होने से वहां पर भी जाना होता था। ऐसे में सावधानी के बावजूद संक्रमण लगने का डर बना रहता था।
तपस्या की तरह बीता कोरोना काल
ऐसे में कोरोना काल को तपस्या की तरह बिताना पड़ा। वह सरकारी आवास में बाहर की ओर बने कमरे में रहते थे। कमरे में प्रवेश से पहले यूनिफार्म और जूते बाहर ही उतारने होते थे। उसके बाद सीधे बाथरूम में। स्नान करने तक उनका खाना एक टेबल पर लगा दिया जाता था। वह खाना खाते तो पत्नी व बेटी दो मीटर दूर बैठकर निहारते, बातें करते। खाना खाकर वह अपने कमरे में सो जाते और परिवार उनसे दूर आवास में। ऐसे में उनकी बेटी गोद में आने के लिए रोती तो उनको भी परेशानी होती। दूर से ही चार साल की बेटी को कहानियों से समझाने-बहलाने का प्रयास करते। जितेंद्र सिंह का कहना है कि वह जिदगी का सबसे कठिन समय था। एक ओर जहां लोगों को संक्रमण से बचाना था, वहीं खुद भी बचकर रहना होता था।