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इमरजेंसी में गए जेल, हथकड़ी के साथ दी थी नौंवी की परीक्षा

आपातकाल के दौरान जब राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) ने सरकार के खिलाफ सत्याग्रह का निर्णय लिया तो उनके आह्वान पर काफी युवा एकजुट होकर इससे जुड़ गए। उन्होंने सत्याग्रह किया पुलिस की लाठियां भी खाई और जेल भी गए।

By JagranEdited By: Published: Wed, 24 Jun 2020 05:35 PM (IST)Updated: Thu, 25 Jun 2020 06:12 AM (IST)
इमरजेंसी में गए जेल, हथकड़ी के साथ दी थी नौंवी की परीक्षा
इमरजेंसी में गए जेल, हथकड़ी के साथ दी थी नौंवी की परीक्षा

संजय निधि, सोनीपत

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आपातकाल के दौरान जब राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) ने सरकार के खिलाफ सत्याग्रह का निर्णय लिया तो उनके आह्वान पर काफी युवा एकजुट होकर इससे जुड़ गए। उन्होंने सत्याग्रह किया, पुलिस की लाठियां भी खाई और जेल भी गए। आपातकाल को लेकर युवाओं में कितना गुस्सा था, इसकी एक मिसाल हैं ललित बत्रा। आरएसएस के आह्वान पर अक्टूबर 1975 में सत्याग्रह में शामिल होने वाले बत्रा उस वक्त महज 14 साल के थे और नौंवी कक्षा में पढ़ते थे। अन्य सत्याग्रहियों के साथ जुड़कर उन्होंने भी शहर के गंज बाजार में सत्याग्रह शुरू किया और सरकार के खिलाफ नारेबाजी शुरू की।

बत्रा बताते हैं कि पुलिस ने उन्हें और उनके नौ साथियों को गिरफ्तार कर लिया और बाद में रोहतक जेल भेज दिया, जहां वे 16 महीने तक रहे। इसी बीच उनकी नौवीं की परीक्षा भी आ गई। जेल प्रशासन की अनुमति से वे इस परीक्षा में शामिल हुए। उन्हें जेल से हथकड़ी लगाकर हिदू स्कूल लाया जाता, जहां वे परीक्षा देते। परीक्षा के दौरान एक पुलिसकर्मी भी हथकड़ी का दूसरा हिस्सा पकड़कर उनके साथ ही बैठा रहता था। वे शायद हथकड़ी के साथ परीक्षा देने वाले पहले शख्स थे और इमरजेंसी के खिलाफ बिगुल बजाने वाले सबसे कम उम्र के सत्याग्रही भी। खटमल वाला कंबल दिया, लॉकअप में न शौचालय था न रोशनी :

सार्वजनिक उपक्रम ब्यूरो के उप प्रधान व भाजपा नेता ललित बत्रा बताते हैं कि गंज बाजार से उन्हें गिरफ्तार कर सिटी पुलिस थाना (अब ओल्ड सिटी पुलिस चौकी) लाया गया। शाम हो रही थी, ठंड का समय था। सभी को एक ही लॉकअप में रखा गया। उसमें न तो रोशनी और न ही शौचालय की व्यवस्था थी। यही नहीं, रात को ओढ़ने के लिए पुराना कंबल दिया गया था, जिसमें खटमल भरे पड़े थे। कोई उसे ओढ़ नहीं सका और रातभर सभी ने जागकर ही बिताई। शौचालय नहीं होने के कारण परेशानी और बढ़ गई थी।

डीजी ने छोड़ने की बात की तो कहा, बाहर आकर फिर करूंगा नारेबाजी :

अगले दिन सभी को रोहतक जेल भेज दिया गया, क्योंकि उस वक्त बच्चा जेल नहीं हुआ करती थी। बत्रा ने बताया कि जेल पहुंचने के बाद वहां डीजी जेल में मौजूद थे। डीजी ने बच्चा समझकर उन्हें बाहर निकालने को कह दिया, लेकिन दोबारा किसी तरह की शरारत नहीं करने की हिदायत दी। इस पर उन्होंने स्पष्ट कहा कहा कि बाहर निकलकर फिर से नारेबाजी करूंगा। इस पर उन्होंने बड़ों के साथ जेल भेज दिया था। जेल में लगती थी शाखा, दोपहर को करते थे रामायण पाठ :

ललित बत्रा ने बताया कि जेल में उनके बैरक में 110 लोग थे, जबकि साथ वाली दूसरी बैरक मे बीजू पटनायक, सिकदर बख्त, टीलू मोदी, समर गुहा जैसे सत्याग्रही बंद थे। सुबह छह बजे सभी उठते थे और संघ की शाखा लगती थी। आठ बजे अल्पाहार और 12 बजे भोजन। फिर दो बजे उठकर रामायण पाठ करते थे। चार बजे सभी कैदी बाहर आ जाते थे। इस दौरान दूसरी बैरकों में बंद बड़े-बड़े नेता भी बाहर आते थे और हम लोग पार्क में इकट्ठे होते थे। बातचीत करते और फिर खेलते भी थे। उन्होंने कहा कि जेल में उन्हें कोई प्रताड़ना नहीं दी गई, लेकिन सत्याग्रह के दौरान खूब डराया-धमकाया जाता था। यहां तक कि कई सत्याग्रही की खूब पिटाई भी हुई थी।


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