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धर्म वैदिक और मातृभाषा संस्कृत लिखें : आचार्य वेदार्थी

जागरण संवाददाता सिरसा आचार्य विष्णुमित्र वेदार्थी ने कहा कि संस्कृति और संस्कृत को बचाने क

By JagranEdited By: Published: Fri, 07 Feb 2020 04:47 PM (IST)Updated: Fri, 07 Feb 2020 04:47 PM (IST)
धर्म वैदिक और मातृभाषा संस्कृत लिखें : आचार्य वेदार्थी

जागरण संवाददाता, सिरसा : आचार्य विष्णुमित्र वेदार्थी ने कहा कि संस्कृति और संस्कृत को बचाने की आज सबसे अधिक जरूरत है और इसके लिए सभी आर्यों को जागृत होना होगा। आचार्य शुक्रवार को आर्यसमाज मंदिर में 128वें वार्षिकोत्सव के तहत ऋग्वेद पारायण यज्ञ के दौरान उपस्थित श्रद्धालुओं को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि जो देश तीन देवियों की सेवा करेगा वह निश्चित ही राष्ट्र बन जाएगा। उन्होंने कहा कि वेदों में राष्ट्र किसी भूखंड को नहीं कहा गया है बल्कि जो चमकता है वह राष्ट्र है। उन्होंने कहा कि इन तीन देवियों में प्रथम है संस्कृति। संस्कृति क्या है। संस्कृति उन गुणों का नाम है जिसमें आत्मिक उत्थान हो, अहिसा हो, सत्य हो, चोरी न करना हो, ब्रह्मचर्य हो, अपरिग्रह हो, पवित्रता हो, परमात्मा के प्रसाद से संतुष्ट हो, तप हो, स्वाध्याय हो, आत्मिक चितन हो और ई‌र्श्वर को समर्पित होना ही संस्कृति है। दूसरी देवी है वाणी अर्थात ज्ञान और विज्ञान से परिपूर्ण वाणी का देश में समायोजन हो, समूचे वि‌र्श्व में विचार के नियम आर्यभाषा के रूप में हों। संस्कृत को पढ़ें क्योंकि यह परमात्मा की भाषा है। तीसरी देवी का नाम है भूमि। भूमि के प्रति समान विचारधारा रहनी चाहिए। राष्ट्र के नागरिकों की माता का नाम ही भूमि है। उन्होंने कहा कि मानवमात्र के लिए सत्य मार्ग ही श्रेष्ठ है और अच्छे मार्ग पर चलने से ही कल्याण संभव है। इस दौरान आचार्य वेदार्थी ने कहा कि मानव को सदैव सूर्य और चंद्रमा का ही अनुसरण करना चाहिए जो सभी लोक लोकांतर में अपने नियमों से ही चलते हुए परमात्मा की सृष्टि को प्रकाशमान रखते हैं। उन्होंने कहा कि मनुष्य को सदैव तीन प्रकार के लोगों का संग करना चाहिए। इनमें सर्वप्रथम दान करने वाले विद्वान का संग करना चाहिए।

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