ये हैं फ्लावरमैन... मुश्किलों में भी नहींं मानी हार, फूलों की खुशबू से महक उठे अंतरराष्ट्रीय फलक पर
स्कूल के आस-पास गंदगी देखी तो डा. रामजी जयमल ने ऐसा रास्ता चुना कि जहां कभी बदबू से लोग परेशान थे वहां अब फिजा में खुशबू महकती है। उनकी फूलों की खुशबू की महक अब उन्हें अंतरराष्ट्रीय फलक पर पहचान दिला रही है।
सिरसा [सुधीर आर्य]। ये हैं फ्लावरमैन डा. रामजी जयमल। सिरसा के दड़बी गांव के एक कच्चे घर में जन्मे डा. जयमल ने फूलों से ऐसी खुशबू बिखेरी कि उनका नाम अंतरराष्ट्रीय फलक पर चमक उठा। कूड़े को हटा फूलों की महक से उन्होंने न जाने कितनी जगहों को महकाया। उन्हें कई मुश्किलों का भी सामना करना पड़ा, लेकिन हार नहीं मानी। अब उनके जीवन पर आधारित फिल्म ‘बिफोर आई डाई’ यानि इससे पहले कि मैं मर जाऊं अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में प्रवेश करने को तैयार है।
डा. रामजी जयमल के सामाजिक मिशन की शुरूआत 13 साल पहले गांव के सरकारी स्कूल के आस-पास फैली गंंदगी को हटाने को लेकर हुई। कक्षाओं से मुश्किल से 20 फीट दूर लगे गंदगी के ढेर के कारण बच्चे पढ़ाई नहीं कर पा रहे थे। डा. रामजी लाल ने अपने दोस्तों के साथ समाज सुधार का बीड़ा उठाया और वहां से कूड़े को हटाया। इसके बाद उन्होंने पास से गुजरती सड़क के आस-पास फूलों के पौधे लगाकर वातावरण को सुगंध से भर दिया। इस दौरान उन्हें कई मुश्किलों का भी सामना करना पड़ा, लेकिन हार नहीं मानी। उनका यह काम अनवरत जारी है।
फिल्म शूटिंग के दौरान डा. जयमल। जागरण
हर वर्ष 12 करोड़ पौधे
फ्लावरमैन डा. रामजी लाल ने इसके बाद वातावरण की शुद्धता को अपना मिशन बना लिया। उन्होंने खुद अपने स्तर पर फूल के पौधे तैयार कर सामाजिक संस्थाओं के माध्यम से सार्वजनिक स्थानों की कायाकल्प करने का बीड़ा उठाया। शुरूआत में 20 हजार पौधों से अभियान चलाया। बाद में उन्होंने वर्ष 2003 में एनजीओ चलाया, जिसमें बड़ी संख्या में सदस्य जुड़े हुए हैं। अब सालाना 12 करोड़ पौधे वितरित किए जा रहे हैं। पंजाब के जलालाबाद, फाजिल्का, हरियाणा के जींद और करनाल के अलावा अपने गांव में फूल के पौधे तैयार करने के लिए प्लांट लगाए हैं। यह पौधे नि:शुल्क बांटे जाते हैं, जो स्कूलों, पार्कों, सार्वजनिक स्थलों, शमशान घाटों में रोपित करवाए जाते हैं।
अपने लगाए गए फूल के बगीचे में डा. रामजी जयमल। जागरण
लोगों के लिए प्रेरणास्रोत है फिल्म
डा. रामजी लाल जयमल का जीवन अब लोगों के लिए प्रेरणास्रोत बनने जा रहा है। उनके जीवन पर आधारित फिल्म ‘बिफोर आई डाई’ यानि इससे पहले कि मैं मर जाऊं अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में प्रवेश कर चुकी है। नकुल देव द्वारा तैयार यह फिल्म जयमल के जीवन के असल उद्देश्य को सार्थक करते हुए प्रतीत होती है, जिसमें यह दर्शाया गया है कि डा. रामजी लाल ने विपरीत परिस्थितियों में भी अपने मिशन को कैसे आगे बढ़ाया और पर्यावरण को संरक्षित करने के साथ-साथ वातावरण में फूलों की सुगंध को बखूबी बिखेरा।
रात में भी डा. जयमल की टीम काम में जुटी रहती है। जागरण
गोवा में अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में होगी प्रदर्शित
गोवा में आयोजित होने वाले अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में यह फिल्म अपना जलवा बिखेरेगी। फिल्म निर्माता नकुल देव द्वारा तैयार 24 मिनट की यह डॉक्यूमेंट्री फिल्म हरियाणा राज्य की ओर से प्रवेश करेगी। फिल्म का विजन डा. रामजी की सोच पर आधारित है, जो चाहते हैं कि हमारे आस-पास ऐसी सुगंधित जगह होनी चाहिए कि मोर उसमें आकर रहें। यह दृश्य वह अपनी मृत्यु से पहले देखना चाहते हैं।
फूलोंं की देखरेख करते डा. रामजी जयमल। जागरण
फिल्म बनाने में लगा तीन वर्ष का समय
फिल्म ‘बिफोर आई डाई’ बनाने में तीन वर्ष का समय लगा। फिल्म में डा. रामजी द्वारा गाया गया गीत भी शामिल है। उल्लेखनीय है कि नकुल देव एक पेशेवर फिल्म निर्माता हैं। पिछले 17 सालों में फिल्म मेकिंग में किस्मत आजमाने वाले नकुल देव सामाजिक मुद्दों पर फिल्में बनाते आ रहे हैं। 2017 में एशिया की सर्वश्रेष्ठ फिल्म के रूप में गोल्डन एलीफेंट पुरस्कार जीता था।
डा. रामजी लाल जयमल द्वारा तैयार की गई पौध, जिसे वह निशुल्क वितरित करते हैं। जागरण
मुझे बड़ी खुशी हो रही है
डा. रामजी लाल जयमल का कहना है, मुझे बड़ी खुशी हो रही है कि मेरे जीवन पर बनी डाक्यूमेंट्री फिल्म सिनेमा जगत के अंतरराष्ट्रीय पटल पर प्रसारित होने जा रही है। मैं आभारी हूं फिल्म निर्माता नकुल देव का, जिन्होंने साढ़े तीन वर्ष तक मेरे घर को अपना घर समझते हुए फिल्म के शॉट लिए। अकसर नकुल देव मेरे घर पर ही रुकते, एक बार सर्दी के मौसम में बारिश के कारण मेरे घर की छत टपकने लगी, लेकिन नकुल देव मेरे कहने के बावजूद घर में ही रुके रहे। उम्मीद करता हूं कि यह फिल्म लोगों को पसंद आएगी और वे भी अपने जीवन को एक लक्ष्य बनाकर सामाजिक कार्य करने को प्रेरित होंगे।