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लंपी स्किन डिजीज से ग्रस्त पशुओं का रिकवरी रेट 72.84 प्रतिशत पहुंचा, सिरसा को मिली एक लाख 57 हजार पशुओं की वैक्सीन

लंपी स्किन डिजीज की फिलहाल दवा नहीं है। एंटी बायटिक दवाएं व दूसरी दवाओं के सहारे पशुओं का रिकवरी रेट बढ़ गया है। जिला की बात करें तो रिकवरी रेट 72.84 प्रतिशत हो गया है।

By JagranEdited By: Published: Wed, 24 Aug 2022 10:48 PM (IST)Updated: Wed, 24 Aug 2022 10:48 PM (IST)
लंपी स्किन डिजीज से ग्रस्त पशुओं का रिकवरी रेट 72.84 प्रतिशत पहुंचा, सिरसा को मिली एक लाख 57 हजार पशुओं की वैक्सीन
लंपी स्किन डिजीज से ग्रस्त पशुओं का रिकवरी रेट 72.84 प्रतिशत पहुंचा, सिरसा को मिली एक लाख 57 हजार पशुओं की वैक्सीन

जागरण संवाददाता, सिरसा : लंपी स्किन डिजीज की फिलहाल दवा नहीं है। एंटी बायटिक दवाएं व दूसरी दवाओं के सहारे पशुओं का रिकवरी रेट बढ़ गया है। जिला की बात करें तो रिकवरी रेट 72.84 प्रतिशत हो गया है। इस बीमारी से अब तक 6510 पशु ग्रस्त पाए गए हैं जिनमें से 4742 पशु स्वस्थ हो गए हैं। विभाग बढ़ते केसों के बीच रिकवरी रेट बढ़ने को महत्वपूर्ण मान रहा है। 266 पशुओं की हो चुकी है मौत

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जिले में इस बीमारी से 266 पशुओं की मौत हुई है। बुधवार को 49 पशु मरे हैं जबकि मंगलवार तक का आंकड़ा 217 पशुओं का था। एक लाख 57 हजार 200 पशुओं के लिए आई वैक्सीन

पशुपालन विभाग को स्वस्थ पशुओं को बीमारी से बचाने के लिए एक लाख 57 हजार 200 पशुओं की वैक्सीन अलाट हुई है। 25 हजार पशुओं को पहले वैक्सीन लगाई जा चुकी है। वीरवार से पशुओं को वैक्सीन लगाने का काम फिर से शुरू होगा। पालतू पशुओं के अलावा बेसहारा पशुओं को भी वैक्सीन शुरू की जाएगी इसके लिए नगरपरिषद से पशुओं को पकड़ने के लिए कहा गया है। अलग-अलग क्षेत्र में नगरपरिषद पशु पकड़ेगी और फिर इनका टीकाकरण पशुपालन विभाग करेगा। जिले में कुल गोवंश : 235362

अब तक टीकाकरण : 25800

बुधवार को आवंटित वैक्सीन : 157200 पशु

अब तक बीमारी से ग्रस्त पशु : 6610

स्वस्थ हुए पशु : 4742

बीमारी से मृत : 266 पशुपालकों को किया जागरूक

पशु विज्ञान के पशुपालन विशेषज्ञ डा. महावीर चौधरी द्वारा गांव बनवाला में लंपी स्किन रोग को लेकर जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया गया। जिसमें 18 पशुपालकों ने भाग लिया। उन्होंने बताया कि लंपी स्किन रोग मुख्य रूप से गोवंश के पशुओं में फैलने वाला एक विषाणु जनित एवं संक्रामक रोग है। संक्रमण के 4 से 14 दिनों के पश्चात पशुओं में इस बीमारी के लक्षण देखे जा सकते हैं। इस रोग में पशु को तेज बुखार, नाक व मुंह से पानी गिरना, भूख नहीं लगना, दूध में कमी, जोड़ों में दर्द व सूजन आदि लक्षण दिखाई देते हैं व पशु के शरीर पर मोटी मोटी गांठें हो जाती हैं जो फूटने पर घाव में बदल जाती हैं। इस बीमारी का फैलने का मुख्य कारण मक्खी, मच्छर, चिचड़ है। बीमार पशु की लार, दूषित चारा व पानी से भी यह रोग फैल सकता है।


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