पराली नहीं जलाएंगे पर्यावरण बचाएंगे अभियान ::::: पराली दे रही है रोजगार, राजस्थान में गोशालाओं को पराली भेज रहा है नछतर सिंह
क्षेत्र में घग्घर नदी के तटवर्ती इलाके बुढ़ाभाना किराडकोट नाग
संवाद सहयोगी, बड़ागुढ़ा : क्षेत्र में घग्घर नदी के तटवर्ती इलाके बुढ़ाभाना, किराडकोट, नागोकी, मुसाहिबवाला, पनिहारी, फरवाईं, बुर्जकर्मगढ़, मल्लेवाला, नेजाडेला कलां व खुर्द आदि गांवों में धान उत्पादक किसानों द्वारा कंबाइन मशीन की सहायता से धान कटाई के बाद पराली जलाने की बजाय बेलर मशीन की सहायता से गांठें बनाने का कार्य किया जा रहा है। ठेकेदार नछतर सिंह ने दैनिक जागरण को बताया कि वह आसपास गांवों में किसानों के खेतों में से पराली को इकट्ठा कर उसे टोका मशीन द्वारा चारे के रूप में बनाकर राजस्थान में गोशालाओं के लिए सप्लाई कर रहा है। ठेकेदार नछतर सिंह ने बताया कि इससे यहां पराली को जलाने की बजाय गोवंश के लिए चारे के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। वहीं उन्होंने करीब 30 लोगों को रोजगार दे रखा है। उन्होंने बताया कि उन्होंने लाखों रुपये खर्च कर उसके पास दो टोका मशीनें, एक ट्रैक्टर लोडर, पराली को इकट्ठा करने के लिए ट्रैक्टर, पराली के चारे को आगे राजस्थान में विभिन्न स्थानों पर बनी गोशालाओं में सप्लाई करने के लिए दो ट्रैक्टर ट्राले है। उन्होंने बताया कि एक पराली के चारे से भरे ट्राले को राजस्थान तक पहुंचाने का सारा खर्च करीब 15 हजार रुपये आता है और आगे 20 हजार में बेचा जाता है। इस तरह से उन्हें 5000 मुनाफा रह जाता है। इससे उसे व अन्य लोगों को रोजगार मिल रहा है। यह काम दो से तीन महीने तक चलता है। उनके कर्मचारी एक बार खेतों में पराली को इकट्ठा कर ट्रैक्टर ट्राली में भरकर खाली जगह में इकठ्ठा कर रहे हैं। काफी मात्रा में जब स्टाक हो जाएगा तो धीरे-धीरे तीन महीने में उसे टोका मशीन से काटकर चारे के रूप में ट्राले में लोड कर राजस्थान भेजा जा रहा है। उन्होंने कहा कि घग्घर नदी के तटवर्ती इलाके में धान उत्पादक किसानों को पराली जलाने की बजाय हमें उठाने के लिए दे देते हैं जिसे उनके कर्मचारी उठाकर खेत खाली कर देते हैं।
नछतर सिंह व गोरा सिंह दोनों भाई इस तरह के कार्य के लिए ठेकेदारी का काम करते हैं। उन्होंने अन्य किसानों से अपील है कि वे जिला प्रशासन द्वारा जारी हिदायत अनुसार पराली को जलाने की बजाय उन्हें उठाने के लिए दे दिया करें। इससे वह अनावश्यक जुर्माना आदि से भी बचेंगे और उनके साथ साथ अन्य लोगों को भी रोजगार मिल रहा है। इसके साथ ही राजस्थान में विभिन्न गोशालाओं में सैकड़ों गोवंश के लिए यहां से पराली के चारे को वहां पहुंच कर साल भर का प्रबंध हो जाता है।