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यहां पराली दे रही लोगों को रोजगार, लाखों कमा रहे चार गांवों के 500 परिवार

सिरसा के चार गांवों के 500 परिवारों के लिए पराली कई माह तक रोजगार का जरिया है। ये परिवार पराली जलाते नहीं, बल्कि उसकी रस्सी बनाकर उससे लाखों रुपये कमाते हैं।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Sun, 07 Oct 2018 07:54 PM (IST)Updated: Mon, 08 Oct 2018 03:41 PM (IST)
यहां पराली दे रही लोगों को रोजगार, लाखों कमा रहे चार गांवों के 500 परिवार
यहां पराली दे रही लोगों को रोजगार, लाखों कमा रहे चार गांवों के 500 परिवार

सिरसा [महेंद्र सिंह मेहरा]। एक तरफ पराली के प्रदूषण से सभी हलकान हैं, वहीं सिरसा (हरियाणा) के चार गांवों के 500 परिवारों के लिए पराली कई माह तक रोजगार का जरिया है। ये परिवार पराली जलाते नहीं, बल्कि उसकी रस्सी बनाकर उससे लाखों रुपये कमाते हैं। ये परिवार पर्यावरण बचाने के साथ ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार की नई उम्मीद भी जगा रहे हैं।

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ये परिवार आसपास के गांवों से काफी पराली इकठ्ठा कर लेते हैं और उससे रस्सी (सुब्बड़) तैयार कर बेचते हैं। पराली से बनी रस्सी गेहूं के सीजन में फसल काटने के बाद बंडल बांधने के काम आती है। सिरसा के गांव चकराईयां, चक साहिब, ओटू व मंगाला के करीब 500 परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी धान की पराली से रस्सी बनाने के कार्य में जुटे हैं।

धान की कटाई के बाद ये किसानों की पराली खरीद लेते हैं। इसके बाद तीन माह तक रस्सी बनाने में जुटे रहते हैं। इसके बाद गेहूं कटाई से पहले इन रस्सियों को बेचा जाता है। ये सिरसा  हिसार व फतेहाबाद के गांवों में पराली से बनी रस्सियों को बेचते हैं। ग्रामीण एक एकड़ की पराली से एक लाख रस्सी तैयार करते हैं। एक हजार रस्सियों को 500 रुपये में बेचा जाता है। इस तरह एक एकड़ की पराली से ग्रामीण 50 हजार रुपये बना लेते हैं। एक परिवार के सदस्य पांच से 10 एकड़ भूमि की पराली खरीदकर रस्सी तैयार करते हैं।

हमें तो मिला है रोजगार

गांव चकराईया निवासी अमरीक सिंह व कालूराम ने बताया कि धान के सीजन में पराली को एकत्रित करते हैं। इसके बाद इससे रस्सियां बनाते हैं। तीन माह तक रस्सी बनाने के बाद गेहूं के सीजन में बेच देते हैं।

जमीन की ऊर्वरा शक्ति भी बढ़ाती है पराली

धान की फसल निकालने के बाद किसान इसकी पराली को आग के हवाले कर देते हैं। आग से मिट्टी के पोषक तत्व नष्ट हो रहे हैं और उर्वरा शक्ति क्षीण हो रही है। साथ ही लाभकारी कीट भी नष्ट हो जाते हैं। धीरे-धीरे धरा बंजर हो जाती है। ऐसे में उर्वरा शक्ति को पूरा करने के लिए अंधाधुंध रसायनों का प्रयोग करना होगा। नतीजा खेती की लागत भी बढ़ जाती है। कृषि विशेषज्ञों की मानें तो पराली को जमीन में ही छोड़ दिया जाए तो यह खाद का काम करती है। इससे धरा की ऊर्वरा शक्ति बढ़ती है, जबकि जलाने से यह शक्ति नष्ट हो जाती है।

यह होगा फायदा

कृषि विज्ञानियों के अनुसार मिट्टी से धान द्वारा ली गई 25 फीसद नाइट्रोजन व 25 फीसद फास्फोरस, 75 फीसद पोटाश व 50 फीसद सल्फर पराली में ही रह जाते हैं। भूमि पर दस क्विंटल अवशेषों को जलाने से 400 किलो जैविक कार्बन के अलावा 5.5 किलो नाइट्रोजन, 2.3 किलो फास्फोरस, 25 किलोग्राम पोटेशियम व 1.2 किलो गंधक का नुकसान होता है।

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