फसल के लिए दही-गुड़ से बनाई देसी स्प्रे, 30 फीसद बढ़ गया उत्पादन
चित्र 16-17 -गांव सुकेराखेड़ा के किसान आशीष मेहता पिछले पांच साल से कर रहे हैं प्राकृ
चित्र: 16-17
-गांव सुकेराखेड़ा के किसान आशीष मेहता पिछले पांच साल से कर रहे हैं प्राकृतिक खेती
-बांग्लादेश, यूएसए तथा ऑस्ट्रेलिया में होने वाली कृषि रिसर्च से प्रेरित होकर शुरू की खेती
डीडी गोयल, डबवाली
किन्नू, दही, आंवला, दालें, निबोली, लहुसन, हरी मिर्च, सरसों की खाल, बेसन, गुड़ अकसर रसोई घर में काम आते हैं। इनके प्रयोग से हमारी शारीरिक ताकत बढ़ती है लेकिन गांव सुकेराखेड़ा का किसान आशीष मेहता पिछले पांच साल से इन्हीं चीजों का प्रयोग करके जमीन की इम्युनिटी बूस्ट कर रहा है। वह इन वस्तुओं का घोल बनाकर बायो फर्टिलाइजर के तौर पर प्रयोग कर रहा है। उनका कहना है कि जमीन को नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाशियम आदि की जरूरत होती है। उपरोक्त घोल की स्प्रे करने से न्यूट्रीयनट आसानी से पौधे को मिल जाते हैं। इंफोरमेशन टेक्नोलॉजी में बीटेक आशीष मेहता के अनुसार पौधे के पत्तों में स्टोमेटा होता है। जिसके जरिए पौधा तीव्रता से न्यूट्रीयनट प्राप्त करता है। वह पिछले 5 साल से प्राकृतिक तरीके से धान, कपास, ग्वार, सब्जियां तथा गेहूं प्राप्त कर रहा है। प्रति एकड़ 22 से 23 क्विटल गेहूं की पैदावार होने लगी है। अन्य फसलों की बात करें तो कपास की पैदावार 7 क्विटल से बढ़कर 11 क्विटल प्रति एकड़ हो गई है, तो वहीं ग्वार की पैदावार 6 क्विटल प्रति एकड़ मिलती है। किसान के अनुसार प्राकृतिक तरीके के उपयोग से फसल की पैदावार में 30 से 40 फीसद वृद्धि हुई है।
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एक हफ्ते में तैयार होता है घोल
किसान के अनुसार पूसा तथा आइसीएसआर द्वारा तैयार जीवाणुओं की मदद से घोल तैयार होता है। सरसों की खाल, गुड़, बेसन को पानी में डालकर एक हफ्ते के लिए रखा जाता है। जीवाणु को उसमें डालकर घड़ी वाइज उसे हिलाया जाता है। एक जीवाणु से कई गुणा माइक्रो जीवाणु एक्टिव हो जाते हैं। एक हफ्ते बाद घोल प्रयोग करने लायक होता है।
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बिना खेत तैयार बिजाई
देसी स्प्रे यहां कामयाब है तो वहीं किसान आशीष बिना खेत तैयार किए बिजाई कर रहा है। उसका कहना है कि पराली किसान के लिए फायदे का सौदा है। पांच साल से वह पराली में ही गेहूं बिजांत करता है। इस विधि को हेप्पी सीडर कहते हैं। पराली के कारण तापमान कंट्रोल में रहता है। यहां गेहूं को 8-9 बार पानी लगाने की जरूरत महसूस होती है तो वहीं पराली में बिजांत गेहूं को महज 4 पानी देना पड़ता है।
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उखेड़ा रोग खत्म हो गया
किसान आशीष मेहता के मुताबिक पांच साल पहले जब पहली बार यह प्रयोग किया था, तो उखेड़ा रोग से कपास की करीब 70 फीसद फसल बर्बाद हो गई थी। उसने नुकसान की परवाह किए बगैर प्रयोग जारी रखा। अब फसल में उखेड़ा रोग न के बराबर होता है। चूंकि देसी कीटनाशक प्रयोग से फसल खराब करने वाले कीटों की शक्ति कमजोर हो जाती है। उखेड़ा रोग नियंत्रण करने पर हरियाणा-पंजाब के कई कृषि वैज्ञानिकों ने उससे संपर्क किया है।
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ऑस्ट्रेलिया, यूएसए तथा बांग्लादेश में प्राकृतिक खेती पर जोर दिया जाता है। वहां बिना खेत तैयार किए किसान फसल बिजांत करते हैं। बांग्लादेश की कई रिसर्च का अध्ययन किया है। अन्य देशों की रिसर्च भी पढ़ने का मौका मिला है। उसी के आधार पर भारतीय कृषि वैज्ञानिकों से राय लेने के बाद पांच साल पहले ऐसा प्रयोग किया था। मैं दावे के साथ कहता हूं कि अगर प्राकृतिक तरीके से कृषि की जाए तो भारत का किसान पहले पायदान पर नजर आएगा।
-आशीष मेहता, किसान, गांव सुकेराखेड़ा ।