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नमो देव्यै महा देव्यै ::: छोटी उम्र में हरप्रीत ने पांवों में स्केट्स बांधकर सीखी हॉकी और बन गई चैंपियन

कुछ कर दिखाने का जुनून हो तो हर बड़ा लक्ष्य हासिल किया जा सकता

By JagranEdited By: Published: Fri, 23 Oct 2020 05:41 AM (IST)Updated: Fri, 23 Oct 2020 05:41 AM (IST)
नमो देव्यै महा देव्यै ::: छोटी उम्र में हरप्रीत ने पांवों में स्केट्स बांधकर सीखी हॉकी और बन गई चैंपियन

जागरण संवाददाता, सिरसा : कुछ कर दिखाने का जुनून हो तो हर बड़ा लक्ष्य हासिल किया जा सकता है। कुछ ऐसा ही करने की ठान कर सिरसा के शाह सतनाम नगर निवासी हरप्रीत ने रोलर हॉकी खेलना शुरू किया। दो भाइयों की बड़ी बहन हरप्रीत साधारण परिवार से संबंध रखती है। सुबह सवेरे जब खेलने जाती तो लोग बोलते क्या करोगे बेटी को गेम सिखाकर कौन सा खिताब जीत लाएगी। बस यही सब सुन कर हरप्रीत लक्ष्य की ओर आगे बढ़ती गई और हर बाधा पाकर कर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई। खेलों में उपलब्धि को देखते हुए राज्य सरकार ने 2017 में भीम अवार्ड से सम्मानित किया। वर्तमान में चंडीगढ़ में बच्चों को रोलर हॉकी का प्रशिक्षण दे रही है। सरकारी नौकरी न मिलने का मलाल है परंतु इस बात की खुशी है कि खेलों में अपने देश का नाम अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चमकाया। ---- हरप्रीत ने सात साल की उम्र में ही वर्ष 2001 में राज्य व राष्ट्रीय स्तरीय रोलर हॉकी स्पर्धा में भाग लेना शुरू किया। विभिन्न स्थानों पर आयोजित नेशनल प्रतियोगिताओं में 12 स्वर्ण पद जीत चुकी है। एशिया कप में जापान, ताइवान व चीन की टीम को हराने वाली भारतीय टीम की विजय में हरप्रीत का अहम योगदान रहा था। उसने प्रतियोगिता में सर्वाधिक छह गोल किए थे। रोलर स्केटिग की चीन, ब्राजील, कैलिफोर्निया व फ्रांस में आयोजित प्रतियोगिताओं में भाग ले चुकी है। हरप्रीत का कहना है कि यह मुकाम हासिल करने के लिए उसने बहुत मेहनत की। उसकी सफलता में उसकी मां बलजीत कौर व पिता महेंद्रपाल का अहम योगदान है जिन्होंने तड़के तीन बजे उसे प्रैक्टिस करने के लिए भेजने के लिए खुद भी बहुत कुछ त्याग किया। हरप्रीत का कहना है कि डेरा सच्चा सौदा के शिक्षण संस्थान की बदौलत ही वह इस खेल में पारंगत हो पाई है वरना उसके परिवार में इस खेल के बारे में एबीसीडी भी नहीं जानता।

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लड़कियों को संदेश देते हुए हरप्रीत ने कहा कि लड़कियां किसी भी क्षेत्र में कम नहीं है, बस जरूरत है हौसले की। परिवार अगर साथ दे तो कुछ भी असंभव नहीं है। हरप्रीत का कहना है कि उसे भीम अवार्ड मिले तीन साल हो चुके हैं इसके बावजूद अभी तक सरकारी नौकरी नहीं मिल पाई है परंतु इस बात की खुशी है कि एक बेटी होकर वह अपने देश का और माता पिता का नाम रोशन कर चुकी है।


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