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कोरोना काल में गरीबों के लिए मददगार बनी पूजा

कोविड-19 महामारी के चलते लगाए गए लॉकडाउन के दौरान सबको अपने ही घरों में रहना पड़ा। लोगों के काम धंधे बंद हो गए।

By JagranEdited By: Published: Thu, 21 Jan 2021 07:25 AM (IST)Updated: Thu, 21 Jan 2021 07:25 AM (IST)
कोरोना काल में गरीबों के लिए मददगार बनी पूजा

रतन चंदेल, रोहतक :

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कोविड-19 महामारी के चलते लगाए गए लॉकडाउन के दौरान सबको अपने ही घरों में रहना पड़ा। लोगों के काम धंधे बंद हो गए। ऐसे में साधन संपन्न वर्ग ने तो जैसे-तैसे स्वयं को संभाल लिया, लेकिन गरीब तबका इससे बेहाल हो गया। महामारी के दौरान उनके लिए खाने-पीने व अन्य जरूरी सामान का संकट पैदा हो गया। ऐसे में गरीब लोगों के लिए शहर की एक बेटी ने मददगार बनकर काम किया। कन्हेली रोड स्थित मेक द फ्यूचर आफ कंट्री (एमटीएफसी) संस्था की स्वयंसेविका पूजा ने जनता क‌र्फ्यू के बाद से ही गरीब बस्तियों एवं घरों तक पहुंच कर अपना काम करना शुरू कर दिया। संस्था के दिशा निर्देशन में अपनी टीम के साथ दिन-रात एक करके पूजा ने जरूरतमंद लोगों की सूची तैयार की। ताकि प्रशासन एवं सामाजिक संस्थाओं के सहयोग से उन्हें खाना पहुंचाया जा सके। अशिक्षा के कारण लोगों को कोविड-19 के विषय में जानकारी नहीं थी। ऐसे में उनको इस बीमारी के विषय में समझाना काफी मुश्किल रहा।

फिर भी हौसले की उड़ान लिए पूजा ने बिना थके लगातार तीन माह तक इसी प्रकार से लोगों को सूचीबद्ध किया। इसके बाद उन्होंने संस्था की ओर से खाना पहुंचाने का भी काम किया। इसके अलावा छोटे बच्चों को दूध, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने की दवाइयां एवं महिलाओं को सेनिटरी पैड्स उपलब्ध करवाने का सेवा कार्य भी पूजा ने बखूबी संभाला। पूजा ने एमटीएफसी संस्था के 86 स्वयंसेवकों का नेतृत्व किया। जिन्होंने लगातार कोरोना काल में अपनी सेवाएं दी। पूजा का कहना है कि वह समय काफी कठिन था लेकिन सबके साथ ने इस सेवा कार्य को संभव बनाया। कोरोना काल में उनके साहसिक कार्य को देखते हुए जन सेवा संस्थान सहित कई सामाजिक संस्थाओं की ओर से पूजा को सम्मानित भी किया गया। संस्था से 2008 में जुड़ी थी पूजा :

वहीं, एमटीएफसी संस्था के संचालक नरेश ढल का कहना है कि 2008 में पूजा इस संस्था से जुड़ी थी। दरअसल उस से वह यहां निशुल्क पढ़ने आती थी। जिसके बाद वह यहां स्वयंसेवक के रूप में छोटे बच्चों को पढ़ाने भी लगी और तभी से बच्चों को भी पढ़ाती है और खुद भी पढ़ाई कर रही हैं। वे रोजाना सुबह-शाम बच्चों को यहां पढ़ाने आती हैं।


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