बदहाली पर आसूं बहा रहा जिला पुस्तकालय, 4 साल से नहीं मिला बजट, स्टाफ भी छोड़ रहा साथ
हुडा कांप्लेक्स में स्थित जिला पुस्तकालय, जहां पढ़कर शहर के युवाओं ने सफलता हासिल की। आज वही पुस्तकालय अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है। न तो किताबों का उचित ढंग से प्रबंधन हो पा रहा है और न ही नई किताबों के लिए चार साल से बजट मिला है। इतना ही नहीं पुस्तकालय में कार्यरत स्टाफ भी अब धीरे-धीरे साथ छोड़ रहा है, जिसके कारण यहां पढ़ने वाले युवा भी अब मुंह मोड़ने लगे हैं। अब मात्र छह कर्मचारियों का स्टाफ है, जिसमें मात्र दो ही
रीतू लाम्बा, रोहतक
हुडा कांप्लेक्स में स्थित जिला पुस्तकालय, जहां पढ़कर शहर के युवाओं ने सफलता हासिल की। आज वही पुस्तकालय अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है। यहां न तो किताबों का उचित ढंग से प्रबंधन हो पा रहा है और न ही नई किताबों के लिए चार साल से बजट मिला है। इतना ही नहीं पुस्तकालय में कार्यरत स्टाफ भी अब धीरे-धीरे साथ छोड़ रहा है, जिसके कारण यहां पढ़ने वाले युवा भी अब मुंह मोड़ने लगे हैं। अब मात्र छह कर्मचारियों का स्टाफ है, जिसमें मात्र दो ही नियमित हैं। पुस्तकालय के सदस्य कई घंटे तो रैक में पड़ी किताबों को भी ढूंढने में लगा देते हैं। लाइब्रेरी में करीब 46000 पुस्तकें हैं।
बता दें कि प्रदेश में पढ़ने की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए लाइब्रेरी को साल 1971 में पुराने विकास भवन परिसर में शुरू किया गया था। जिसे साल 1995 में बाढ़ के खतरे के चलते हुडा कांप्लेक्स में शिफ्ट कर दिया गया। हालांकि करीब 3100 सदस्यों वाली जिला लाइब्रेरी सरकार की अनदेखी के चलते खस्ताहाल हो चुकी है। इमारत पर निर्माण साल के बाद से आज तक रंग-रोगन भी नहीं किया गया है। रोजाना 80 से 100 सदस्य लाइब्रेरी आते हैं। जिनमें ज्यादातर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले कालेज व स्कूलों के विद्यार्थी हैं। उनके बैठने के लिए कुर्सियों तक की कमी है। कर्मचारी बोले-नहीं आता फंड
जिला लाइब्रेरी में कार्यरत कर्मचारियों ने बताया कि सरकार की ओर से बहुत कम फंड आता है। जिससे सुविधाओं में इजाफा नहीं किया जा सकता। नाम न बताने की शर्त पर एक कर्मचारी ने बताया की साल 2014 में 3 लाख के करीब लाइब्रेरी के लिए फंड आया। जिससे फर्नीचर, पंखे व कुछ किताबें खरीदी गई। लेकिन उसके बाद आज तक किताबें खरीदने के लिए फंड मुहैया नहीं करवाया गया है। साल 1975 से 2006 के बीच तीन बार लाइब्रेरी के डीडीओ रहे जय भगवान ने बताया कि जिला लाइब्रेरी को सरकार की ओर से हमेशा से ही फंड कम आता रहा है। उन्होंने बताया कि 2006 से पहले तक तो केवल 10000 रूपये सालाना फंड आता था। जिसे किताबों व अन्य सुविधाओं के पर खर्च किया जाता था। वहीं 2007 में लाइब्रेरी के लिए पहली बार एक लाख रुपये सालाना फंड आया। साथ ही यह भी तय हुआ कि हर साल फंड में 25 फीसदी बढ़ोतरी की जाएगी। स्टाफ का है अभाव
जिला लाइब्रेरी में फिलहाल छह कर्मचारी कार्यरत हैं। जिसमें से केवल दो ही स्थाई हैं। सीनियर लाइब्रेरियन का महत्वपूर्ण पद सालों से खाली पड़ा है। आखिरी बार साल 2015 में क्लर्क व रिस्टोरर के पद के लिए अनुबंध के आधार पर भर्ती की गई थी। यह अनुबंध भी केवल छह महीने के लिए ही था। लेकिन आज तक वही अनुबंधित कर्मचारी लाइब्रेरी में कार्यरत हैं। वहीं बुक बाइंडर के पद को सरकार ने खत्म कर दिया है। फिलहाल लाइब्रेरी का चार्ज श्याम सुंदर कौशिक के पास है। जोकि जूनियर लाइब्रेरियन के पद पर कार्यरत है। दान की गई जमीन पर बना है जिला पुस्तकालय
जिला लाइब्रेरी के लिए तत्कालीन शहरी विकास प्राधिकरण हरियाणा ने जमीन दान में दी थी। पूर्व मंत्री सेठ किशनदास ने इसका उद्घाटन किया था। उस समय लाइब्रेरी में प्रतिदिन 300-400 लोग आते थे। जोकि आज घटकर 100 से भी कम हो गए हैं। लाइब्रेरी में रखी कई पुस्तकें तो ऐसी हैं जिन्हें 20 से 25 साल पहले पढ़ने के लिए इश्यु करवाया गया था। ज्यादातर किताबों पर धूल जमीं रहती है। इमारत भी कई जगहों से जर्जर हो चुकी। साल 2000 में कर्मचारियों ने हुडा से लाइब्रेरी का नवीनीकरण करने की बात कही थी। लेकिन हुडा ने उन्हें भवन निर्माण विभाग से संपर्क करने को कहा। वहीं भवन निर्माण विभाग से इस मुद्दे पर हुडा का नाम सुझाया। पुस्तकालय को किया जा सकता है शिफ्ट
हुडा कांप्लेक्स में एक तंग गली में जिला पुस्तकालय है। वहीं प्रशासन की ओर से भी इसका कोई प्रचार नहीं किया जाता। जिस कारण ज्यादातर लोगों को इसका पता ही नहीं है। इसी को लेकर जिला पुस्तकालय को दिल्ली रोड पर जाट कालेज के आस-पास शिफ्ट करने पर विचार किया जा रहा है। जिस पर पुस्तकालय कर्मचारी और विद्यार्थी बंटे हुए हैं। पुस्तकालय में पढ़ने आने वाले कुछ विद्यार्थियों का कहना है कि यहां ज्यादातर विद्यार्थी गांवों से आते हैं। रेलवे स्टेशन नजदीक होने के कारण वह पैदल ही यहां चले आते हैं। ऐसे में दिल्ली रोड पर पुस्तकालय शिफ्ट होने उन्हें आने-जाने का खर्च वहन करना पड़ेगा। वहीं कर्मचारियों का कहना है कि अभी लाइब्रेरी में जगह की कमी होने के कारण पुस्तकों का रखरखाव नहीं हो पा रहा। हॉल में भी बैठने की जगह कम है। लड़कियां भी यहां आने में असुरक्षित महसूस करती हैं। शहर में एक बड़ी पब्लिक लाइब्रेरी की सख्त जरूरत
शहर में करीब 20 बड़े को¨चग सेंटर हैं। वहीं चार विश्वविद्यालयों समेत 11 बड़े कालेज हैं। 10000 के करीब विद्यार्थी रोजाना पढ़ने के लिए आते हैं। जिन्हें पढ़ाई करने के लिए प्राइवेट लाइब्रेरी के भरोसे रहना पड़ता है। प्राइवेट लाइब्रेरी प्रति महीने 500 से 600 रूपये चार्ज करती हैं। जिन विद्यार्थियों की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है वह लाइब्रेरी में पढ़ने से वंचित रह जाते हैं। ऐसे में जिला पुस्तकालय की जरूरत ओर भी बढ़ जाती है। एक बड़ी लाइब्रेरी में एक बार में 500 से 700 विद्यार्थी बैठकर पढ़ पाएंगे। मैंने दो माह पहले ही जिला पुस्तकालय का चार्ज संभाला है। पुस्तकालय को शिफ्ट करने की प्रक्रिया चल रही है। फंड व किताबों के प्रबंधन को लेकर भी प्रयास किए जा रहे हैं।
डा. पूनम भानावाला, डीडीओ एवं प्राचार्या, राजकीय महिला महाविद्यालय रोहतक