Move to Jagran APP

पहले पर्ची से पार्षद का हुआ फैसला और बाद में बने चेयरमैन

अप्रैल 2005 में वार्ड-22 का चुनाव रोहतक के लिए यादगार बना था। वाड

By JagranEdited By: Published: Sat, 08 Dec 2018 06:41 PM (IST)Updated: Sat, 08 Dec 2018 06:41 PM (IST)
पहले पर्ची से पार्षद का हुआ फैसला और बाद में बने चेयरमैन
पहले पर्ची से पार्षद का हुआ फैसला और बाद में बने चेयरमैन

जागरण संवाददाता, रोहतक : अप्रैल 2005 में वार्ड-22 का चुनाव रोहतक के लिए यादगार बना था। वार्ड-22 में दो प्रत्याशी आमने-सामने थे। दोनों को बराबर वोट मिले थे। लेकिन किस्मत का ताला अजीत प्रसाद जैन का खुला। क्योंकि पार्षद का चुनाव पर्ची से जीता। बाद में अजीत नगर परिषद के चेयरमैन का चुनाव भी जीते। 2005 में हुए नगर परिषद के चुनाव की यादें दैनिक जागरण से अजीत जैन ने साझा की।

loksabha election banner

नगर परिषद के चुनाव की पुरानी यादें अजीत जैन ने बताईं। उन्होंने बताया कि पहले चेयरमैन का सीधे चुनाव नहीं होता था। जीते हुए पार्षदों में किसी एक को चेयरमैन बनाने के लिए मतदान होता था। इन्होंने बताया कि 16 अप्रैल 2005 में मतगणना हुई तो सभी चौंक गए। क्योंकि अजीत जैन के 560 वोट आए। इतने ही वोट इनके प्रतिद्वंद्वी को मिले। बराबर वोट पड़ने से सभी की धड़कन बढ़ गईं थी कि आखिर किसे विजेता घोषित किया जाएगा। हालांकि बाद में चुनाव अधिकारियों ने दोनों ही प्रत्याशियों ने वार्ता की। जिसमें तय हुआ कि पार्षदों के बराबर वोट के लिए पर्ची निकाली जाएगी। इसलिए बैचेनी बढ़ना लाजिमी थी। हालांकि जब पर्ची निकली तो अजीत जीत की किस्मत का ताला ही खुल गया। पर्ची में अजीत जैन का नाम विजेता बतौर घोषित किया गया। इसके बाद चेयरमैन पद के लिए कांग्रेस ने समर्थन दिया। जिसमें प्रतिद्वंद्वी सुरेश गुप्ता को 13 और अजीत जैन को 18 वोट मिले। इसके साथ ही नगर परिषद के चेयरमैन बतौर ताजपोशी हुई। 1000-500 रुपये में हो जाते थे चुनाव

साल 1964 और 1968 में पार्षद रहे भाजपा के नेता चमनलाल खनिजो के पास यादों का खजाना है। 96 वर्षीय चमनलाल खनिजो बताते हैं कि पैदल ही वोटरों तक पहुंचने का चलन था। वाहन किसी के पास होते नहीं थे। साइकिल से प्रचार करने पर भी पैसे वाला प्रत्याशी माना जाता था। चुनाव में 1000 या फिर 500 रुपये तक ही खर्च होते थे। इनका कहना है कि अब चुनाव में धनबल और प्रलोभन का बोलबाला है। यही कारण है कि जनता के मुद्दे गायब हो गए हैं।

पहले स्वस्थ राजनीति होती थी। वोटरों को प्रलोभन नहीं दिए जाते थे। जनता के मुद्दों पर चुनाव होता था। प्रत्याशी सीधे रूबरू होते थे। यही कारण था कि चुनाव के बाद भी प्रतिद्वंद्वियों से प्रतिस्पर्धा नहीं होती थी। चुनाव के बाद आपस के गिले-शिकवे भुला दिए जाते थे।

अजीत प्रसाद जैन, पूर्व चेयरमैन, नगर परिषद, विजय नगर निवासी।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.