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बच्चों को तीरंदाजी करते देख जागा जुनून, दिव्यांगता को मात दे बना नेशनल चैंपियन

रतन चंदेल, रोहतक डेढ़ साल पहले राजीव गांधी स्टेडियम में आए एक दिव्यांग युवा ने यहां 15 स

By JagranEdited By: Published: Fri, 18 Jan 2019 07:32 AM (IST)Updated: Fri, 18 Jan 2019 07:32 AM (IST)
बच्चों को तीरंदाजी करते देख जागा जुनून, दिव्यांगता को मात दे बना नेशनल चैंपियन
बच्चों को तीरंदाजी करते देख जागा जुनून, दिव्यांगता को मात दे बना नेशनल चैंपियन

रतन चंदेल, रोहतक

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डेढ़ साल पहले राजीव गांधी स्टेडियम में आए एक दिव्यांग युवा ने यहां 15 साल के बच्चों को तीरंदाजी करते देखा तो उसके मन में भी कुछ कर गुजरने का जुनून जागा। इसके बाद उसने दिव्यांगता को मात देते हुए तीरंदाजी की नेशनल चैंपियनशिप जीती। हम बात कर रहे हैं गद्दी खेड़ी गांव निवासी 30 वर्षीय तीरंदाज विनोद राठी की।

दरअसल, विनोद करीब डेढ़ साल पहले अपने दोस्तों के साथ यहां राजीव गांधी स्टेडियम में आए थे। उसी दौरान उन्होंने यहां तीरंदाजों को अभ्यास करते देखा और खुद भी उन्हीं की तरह बनने की ठानी। चूंकि परिवार की आर्थिक स्थित बहुत अच्छी नहीं थी, इसलिए उन्होंने लकड़ी के धनुष से ही अभ्यास शुरू किया। कुछ माह बाद ही उनकी मेहनत रंग लाई। उनको अभ्यास करते हुए अभी करीब छह महीने का समय ही हुआ था कि उनका चयन पैरा सीनियर नेशनल आर्चरी चैंपियनशिप के लिए हुआ। हैदराबाद में हुई इस चैंपियनशिप में विनोद ने गोल्ड मेडल जीतकर नेशनल चैंपियन का खिताब पाया।

विनोद ने बताया कि वे जन्म से ही बाएं पैर से दिव्यांग हैं, लेकिन दिव्यांगता को कभी जीवन में बाधा नहीं बनने दिया। विनोद का मानना है कि अगर व्यक्ति की इच्छा शक्ति प्रबल हो तो सफलता प्राप्ति के रास्ते में दिव्यांगता बाधा नहीं बन सकती। इसी इच्छा शक्ति के बल पर वे अब ओलंपिक के लिए कोच संजय सुहाग की देखरेख में विशेष अभ्यास कर रहे हैं। अब ओलंपिक में गोल्ड जीतने का लक्ष्य :

नेशनल चैंपियनशिप के बाद विनोद का अगला लक्ष्य ओलंपिक में देश के लिए गोल्ड मेडल जीतना है। इसके लिए वे रोजाना करीब 8 घंटे अभ्यास करते हैं। तीरंदाजी उनके लिए अब जुनून बन चुका है। इसी कारण रोजाना करीब 12 किलोमीटर का सफर तय कर गांव से राजीव गांधी स्टेडियम में अभ्यास करने आते हैं। वे अपना खाना भी साथ ही लेकर आते हैं। ब्याज पर रुपये लेकर अब खरीदा महंगा धनुष

चूंकि अंतरराष्ट्रीय स्तर के आर्चरी मुकाबले में लकड़ी का धनुष प्रयोग नहीं होता। इसलिए विनोद ने अपने जानकारों से दो लाख रुपये कर्ज लेकर उच्च गुणवत्ता का महंगा धनुष खरीदा है। वे इन दिनों इसी धनुष से अभ्यास करते हैं, ताकि देश के लिए गोल्ड मेडल जीत सकें। एक एकड़ में खेती करने वाले विनोद ने हालांकि कर्ज की काफी राशि चुका दी है।


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