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रुड़की गांव में मिला औरंगजेब के काल का पत्थर

रतन चंदेल, रोहतक रोहतक से उत्तर-पूर्व दिशा में 16 किलोमीटर दूर स्थित रुड़की गांव में अ

By JagranEdited By: Published: Fri, 09 Nov 2018 11:33 PM (IST)Updated: Fri, 09 Nov 2018 11:33 PM (IST)
रुड़की गांव में मिला औरंगजेब के काल का पत्थर

रतन चंदेल, रोहतक

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रोहतक से उत्तर-पूर्व दिशा में 16 किलोमीटर दूर स्थित रुड़की गांव में औरंगजेब के काल का पत्थर मिला है। जो लोगों में कोतूहल का विषय बना हुआ है। यह पत्थर गांव में स्थित प्राचीन कुएं का पत्थर हैं। सफेद रंग के करीब डेढ़ फीट लंबे पत्थर पर उर्दू भाषा में कुछ पंक्तियां अंकित हैं। यह पत्थर करीब 800 साल पुराना पुराना माना जा रहा है। इस पत्थर को देख ग्रामीणों में गांव के प्राचीन इतिहास को लेकर उत्सुकता बढ़ी हुई है। हालांकि फिलहाल गांव के सरपंच शमशेर के पास यह पत्थर रखा है। ग्रामीण बोले गांव के कुएं की दीवार में मिला यह पत्थर मुगल काल का प्रमाण है। पत्थर पर लिखी पंक्तियां

पत्थर पर उर्दू-फारसी में कुछ पंक्तियां लिखी हुई है। जानकारों ने जिनका ¨हदी में इस प्रकार अनुवाद किया है। उनके अनुसार पत्थर पर लिखा है, बिस्मिल्लाह रहमान-ऐ-रहीम, मुन जानिब शेख अब्दुल लतीफ वल्द शेख मोहम्मद शाह, नूर मोहम्मद, अहद औरंगजेब बादशाह, आलमगीर। इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार पत्थर पर 1089 हिजरी अंकित है। मगर वह स्पष्ट रूप से दिखाई नहीं दे रहा है। ऐसे में वर्ष को लेकर जानकारों की अलग-अलग राय है। हालांकि इतिहासकारों के मुताबिक पत्थर पर वर्ष 1667 लिखा हुआ है। औरंगजेब का काल 1658 से 1707 तक रहा है। पानी से ठीक होते थे त्वचा रोग

गांव के बुजुर्ग राजेंद्र पंच, राजवीर, श्रीकृष्ण, माईराम का कहना है कि इस प्राचीन कुएं का पानी न केवल धार्मिक कार्यों में प्रयोग किया जाता था बल्कि इसके पानी से त्वचा रोग भी ठीक होते थे। हालांकि बाद में कुएं के प्रति उदासीनता के कारण इसका पानी खराब हो गया। और धीरे-धीरे यह आधुनिकता की भेंट चढ़ गया। ग्रामीणों में अब भी कुएं को लेकर चर्चाएं होती रहती है। ग्रामीणों का कहना है कि कुएं का संबंध मुगलकाल से था, लेकिन प्रशासन ने कभी इस ऐतिहासिक कुएं की सुध नहीं ली है। वर्ष 1305 में बसा था गांव रुड़की

सरपंच शमशेर हुड्डा में बताया कि रुड़की गांव वर्ष 1305 में बसा था। दादी रूडो देवी के नाम पर गांव का नाम रुड़की पड़ा। 713 वर्ष पहले चौधरी बल्लण ¨सह ने रुड़की गांव बसाया था। वर्ष 1305 में खिडवाली से आकर हनुमत ¨सह के पुत्र बल्लण ¨सह ने यहां आकर रहना शुरू किया था। बल्लण ¨सह की पत्नी रूडो देवी के नाम पर गांव का नाम रुड़की पड़ा है। गांव की जनसंख्या करीब 6500 है। गांव में 15 जातियों के लोग आपसी प्यार-प्रेम व भाईचारे से रहते हैं। मुगल काल में परंपरा थी कि जो कोई भी ऐसी वस्तु मस्जिद, कुआं या बावड़ी आदि बनवाते थे उस पर उस समय के बादशाह का नाम लिखवाते थे। रुड़की में मिला यह पत्थर ऐतिहासिक महत्व का है। इसे म्यूजियम में रखा जाना चाहिए।

- डा. मनमोहन कुमार, सेवानिवृत्त प्रोफेसर, इतिहास विभाग, महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय, रोहतक ।


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