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गुरु के वचन को मानना ही गुरु भक्ति है : कंवर हुजूर

जागरण संवाददाता भिवानी पहली भक्ति गुरु भक्ति है क्योंकि हमारी आत्मा पर पड़े बंधंनों को

By JagranEdited By: Published: Tue, 16 Jul 2019 07:57 PM (IST)Updated: Wed, 17 Jul 2019 06:36 AM (IST)
गुरु के वचन को मानना ही गुरु भक्ति है : कंवर हुजूर
गुरु के वचन को मानना ही गुरु भक्ति है : कंवर हुजूर

जागरण संवाददाता, भिवानी : पहली भक्ति गुरु भक्ति है, क्योंकि हमारी आत्मा पर पड़े बंधंनों को गुरु भक्ति से ही काटा जा सकता है। गुरु के वचन को मानना ही गुरु भक्ति है,जो निश्चय करके गुरु के वचनों की पालना करेगा व गुरु पूर्णिमा पर पूर्णता को प्राप्त कर लेगा। गुरु की शरणाई लेकर आप अपनी सारी चिताओं को पूर्ण विराम लगा सकते हो। जीवन रूपी भवसागर से गुरु की बांह पकड़ कर ही पार जाया जा सकता है। यह रूहानी बानी राधास्वामी दिनोद के हुजूर कंवर साहेब महाराज ने गुरु पूर्णिमा के अवसर पर लाखों की संख्या में उमड़ी संगत को सत्संग फरमाते हुए कही।

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गुरु महाराज ने कहा गुरु पूर्णिमा भी पाखंड से निवृत कर आपको पूर्ण बनाने का पर्व है। पूर्ण वहीं हो सकता है, जो सच्चा हो। सत्य ही केवल पूर्ण हो सकता है क्योंकि सत्य कभी घटता नहीं है। उन्होंने कहा कि पांव लगो तो ऐसे गुरु के लगो जो नि:स्वार्थ भाव से आपके कल्याण का वचन फरमाता है। उन्होंने फरमाया कि जब से सृष्टि बनी है मानव के साथ दानव, पाप के साथ पुण्य, लाभ के साथ हानि भी आई। किसी के दिन एक जैसे नही रहे। लेकिन जो इन चीजों से ऊपर उठकर सतगुरु की शरणाई लेकर परमात्मा की भक्ति कमा ली। केवल वही इस दुनिया से शहंशाह की तरह रुखसत हुआ वरना तो सिकंदर जैसे दुनिया के बादशाह भी अंत समय में खाली हाथ गए। उन्होंने फरमाया कि अगर गुरु राजी है तो आपका युक्ति का रास्ता निश्चित है लेकिन जो गुरु को इंसान समझते हैं वो अक्ल के अंधे लोग है। ऐसे लोगों के लिए यमराज का फंदा तैयार रहता है। हमारे लिए गुरु का दर्जा सबसे बड़ा है। गुरु नानक जी ने भी गुरु को परमात्मा से भी बड़ा बताया। जिस प्रकार बारिश से धरती की तपन बुझती है, वैसे ही गुरु के वचनों से अज्ञान रूपी तपन समाप्त हो जाती है। गुरु की दुकान पर जो सामान मिलता है उसका कोई मोल नहीं है फिर भी वो आपको सस्ते में मिल जाता है।

आवन जान के भटकाव पर विराम गुरु का मंत्र लगाता है। ये मंत्र इसी जीवन में हासिल करना है। गुरु का मंत्र हमारे अंतर के दरवा•ो खोलता है। उन्होंने कहा कि जीव जन्म से इच्छा वासना तृष्णा, काम, क्रोध को लेकर पैदा होता है। कुछ भाग्यशाली लोग ही इनसे छुटकारा पाते हैं। किसी भी कीमती ची•ा को प्राप्त करने के लिए आपको मेहनत करनी पड़ेगी। जैसे किसी जोहरी की दुकान पर सोना चांदी के आभूषण तो शीशे में रखे ही मिल जाएंगे, लेकिन हीरे को हर किसी के सामने नहीं रखा जाता। सत्संग आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि मन का संकल्प आपको सफलता दिलाता है। मन में नाम रूपी दौलत का संकल्प बनाओ। उन्होंने कहा कि जिस को सतगुरु मिल गया उनका लेखा निमड़ गया। गुरु का मंत्र ही सबसे बड़ी मंत्रणा है। जो मंत्रणा करना सीख गया वो तैरना भी सीख गया। सूरमा केवल वहीं है, जिसने अपने मन को मारना सिख लिया।


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